Manu bhandari ke liya unki Ma unka adharsh kyu nhi ban saki

प्रिय मित्र!
लेखिका मन्नू भंडारी ने अपनी माँ की तुलना धरती से की है क्योंकि उनकी माँ धरती की तरह हमेशा दिया करती थी कभी कुछ माँगती नहीं थी। माँ का अपना कोई वजूद नहीं था। पिताजी ने जो कहा वो माँ के लिए ईश्वर का वाक्य था। लेखिका की माँ धैर्यवान और सहनशील महिला थी। लेखिका की माँ पढ़ी लिखी नहीं थी। पति के गुस्सैल और शक्की स्वभाव को चुपचाप सहती थी। पति और बच्चों की सही और गलत सभी मांगे पूरा करना अपना फ़र्ज़ समझती थी। पति के अत्याचारों के लिए कभी मुंह नहीं खोलती थी। वह स्वयं इस बात को स्वीकार करती हैं कि उनकी माँ का सारा जीवन पति की सेवा और बच्चों के लालन-पालन में व्यतीत हुआ। उन्होंने स्वयं के अस्तित्व को उनके जीवन के लिए होम कर दिया। परन्तु लेखिका के लिए उनकी माँ का चरित्र गौण रहा है। उनके अनुसार उनकी माँ का व्यक्तित्व प्रेरणा लेने योग्य नहीं है। 

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