meaning of the paragraph 1 and 2

Hi!
प्रथम दोहे में श्री कृष्ण अपनी माँ से शिकायत करते हैं कि माँ मेरी चोटी कब बढ़ेगी। तुम मुझे यही कह-कहकर दूध पिलाती रही की दूध पीने से तुम्हारी चोटी जल्दी बढ़ेगी, परन्तु यह तो आज भी छोटी की छोटी ही रह गई है। तुम तो कहती थी की जैसे बलराम भाईया की लम्बी व मोटी चोटी है, मेरी भी वैसे ही हो जाएगी। उनकी चोटी नहाते, धुलाते व कढ़ाते समय नागिन के समान प्रतित होती है परन्तु मेरी नहीं। तुमने मुझे मक्खन रोटी के स्थान पर कच्चा दूध इसलिए पिलाया था कि वह अवश्य बढेगी परन्तु यह आज भी वैसी की वैसी ही है। सूरदास जी कहते हैं श्री कृष्ण व बलराम दोनों भाईयों की जोड़ी लम्बे समय तक यूहीं बनी रहे।
 
दूसरे दोहे गोपियाँ यशोधा से कृष्ण की शिकायत करती हुई कहती हैं कि हे यशोधा! तेरे पुत्र कृष्ण ने हमारा मक्खन खा लिया है। दोपहर के समय घर को सूना जानकर ढूँढते- ढूँढते घर में आ गया। उसने दरवाजा खोलकर, मंदिर में रखा सारा दूध-दही स्वयं खाया व अपने मित्रों को भी खिलाया। पहले तो वह ओखली में चढ़ा फिर उसने सींके पर रखा हुआ सारा दूध-दही ले लिया, इतना ही नहीं उसने उसे जमीन पर भी गिरा दिया। इस तरह रोज़ गोरस (दूध) की हानि हो रही है, हमें समझ नहीं आता की यह कितना शैतान लड़का है। सूरदास जी कहते हैं कि गोपियाँ यशोधा को ताने मारते हुए कहती है तुने कैसे पुत्र को जन्म दिया है अर्थात यह तेरा कैसा पुत्र है जिस पर तेरा जरा-सा जोर नहीं है।
 
आशा करती हूँ कि आपको प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
 
ढ़ेरों शुभकामनाएँ!

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