बस की यात्रा का moral
मित्र
लेखक समाज के समक्ष उन बस मालिकों की हँसी उड़ाता है, जो बेकार बस को अपने लाभ के लिए चलाते हैं। इन्हें यह सोचते हुए भी संकोच नहीं होता कि इनके कारण कई जीवन संकट में पड़ सकते हैं। अपने प्राणों को भी यह दाव में लगाने से हिचकिचाते नहीं है। इनके कारण ऐसी विकट स्थिति बन पड़ती है कि जीवन-मृत्यु के बीच किस और जाएँगे पता नहीं चलता।
लेखक समाज के समक्ष उन बस मालिकों की हँसी उड़ाता है, जो बेकार बस को अपने लाभ के लिए चलाते हैं। इन्हें यह सोचते हुए भी संकोच नहीं होता कि इनके कारण कई जीवन संकट में पड़ सकते हैं। अपने प्राणों को भी यह दाव में लगाने से हिचकिचाते नहीं है। इनके कारण ऐसी विकट स्थिति बन पड़ती है कि जीवन-मृत्यु के बीच किस और जाएँगे पता नहीं चलता।