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मित्र
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता मातृ वंदना से यह वाक्य लिए गए हैं। इसमें मां की वंदना की गई है। कवि कहते हैं कि मनुष्य का जीवन तभी सफल है जब वह मां के चरणों में  अपना सब कुछ अर्पण कर दे। 

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