pet bharne aur tan dhankne ki ichcha manushy ki Sanskriti ki janani nhi h..
lekhak ka isse kya matlab h

पेट भरना तथा शरीर को ढकने से संस्कृति का जन्म नहीं होता है। यह कार्य तो जानवर भी कर रहे हैं, तो उन्होंने कोई संस्कृति का निर्माण नहीं किया है। जानवर शिकार करते हैं, पौधों तथा पत्तियों को खाकर पेट भरते हैं। शरीर को गर्मी, बरसात तथा ठंड से बचाने के लिए वे बहुत कार्य करते हैं। गर्मी से बचने के लिए पानी में जाते हैं, छाया पाने के लिए पेड़ के नीचे जाते हैं। बरसात से बचने के लिए पेड़ की ओट लेते हैं, चट्टानों के नीचे सहारा लेते हैं। ठंड से बचने के लिए एक दूसरे से सटकर खड़े होते हैं, चट्टानों की दरारों में रहते हैं। तो इससे हम यह नहीं कहते हैं कि उन्होंने संस्कृति का निर्माण किया है। संस्कृति के लिए मनुष्य को और कार्य करने पड़ते हैं।

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