Please answer the questions.
प्रिय मित्र!
आपका उत्तर इस प्रकार है-
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली जुली संस्कृति के प्रतीक थे। उनका धर्म मुस्लिम था। मुस्लिम धर्म के प्रति उनकी सच्ची आस्था थी परन्तु वे हिंदु धर्म का भी सम्मान करते थे। मुहर्रम के महीने में आठवीं तारीख के दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते थे व दालमंडी मे फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते जाते थे।
इसी तरह इनकी श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते थे। तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते थे और उसी ओर शहनाई बजाते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि काशी छोड़कर कहाँ जाए, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ। मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ एक सच्चे इंसान थे। वे धर्मों से अधिक मानवता को महत्व देते थे, हिंदु तथा मुस्लिम धर्म दोनों का ही सम्मान करते थे, भारत रत्न से सम्मानित होने पर भी उनमें घमंड नहीं था, दौलत से अधिक सुर उनके लिए ज़रुरी था।