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प्रदूषण और प्रकृति के बीच संवाद लिखें
प्रिय मित्र!
ऐसे प्रश्न स्व-रचनात्मक कौशल के अंतर्गत आते हैं, इन्हें स्वयं से करने की चेष्टा करनी चाहिए। हम आपको अपने विचार दे रहा हैं जिनके माध्यम से आप अपना उत्तर पूरा कर सकते हैं-
प्रकृति - अरे! अब तो हद हो गई। थोड़ा कम सताओ प्रदूषण जी!
प्रदूषण - हा.. हा.. हा... मेरा प्रकोप कम नहीं होगा ।
प्रकृति - अरे तुम्हारा प्रकोप कम नही होगा तो मैं नष्ट हो जाऊँगी।
प्रदूषण - तुम्हारे नष्ट होने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
प्रकृति - हाँ! लेकिन मनुष्यों को तो पड़ता है।
प्रदूषण - मनुष्य मेरा परम मित्र है, उसी की वजह से मैं मजबूत हो रहा हूं।
प्रकृति - अरे मूर्ख प्रदूषण मनुष्य अगर तेरा साथ नहीं देता तो तेरी कोई औकात नहीं थी, मैं तुझे अपने पेड़- पौधों से ही मार देती।
प्रदूषण - जब तक मनुष्य मेरा साथ दे रहा है तब तक रे प्रकृति! तेरी कोई औकात नहीं।
प्रकृति - लेकिन मनुष्य यह नहीं जानता कि वह जो कुछ कर रहा है अपने ही अंत के लिए कर रहा है। एक दिन ऐसा होगा कि तू मुझ पर हावी हो जाएगा और मैं ही समाप्त हो जाऊंगी फिर यह मनुष्य कहां रहेगा।
सादर।