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उत्तर-
किसी देश में अमरसेन नाम का एक राजा था। वह बहुत वीर और प्रजा का हित चाहने वाला था। उसकी प्रजा भी उसे बहुत चाहती थी। एक बार किसी बात से नाराज़ होकर उसके पड़ोसी राजा ने उस पर आक्रमण कर दिया। राजा अमरसेन अपनी सेना के साथ बहुत वीरता से लड़ा परंतु भाग्य ने उसका साथ न दिया। युद्ध में उसकी पराजय हुई। उसके बहुत से सैनिक मारे गए। शत्रु के सैनिक उसे जीवित पकड़ना चाहते थे पर वह किसी तरह युद्धभूमि से बचकर वहाँ से भाग निकला। शत्रु से बचता-बचाता वह एक जंगल में जा पहुँचा। वह छिपकर एक गुफ़ा में रहने लगा। गुफ़ा में रहते-रहते उसे अपने परिवार व देश की बहुत याद आती था। वह किसी तरह अपना खोया राज्य पुनः पाना चाहता था, परंतु उसे कोई उपाय सूझ नहीं रहा था। वह मन हारकर बैठ गया। एक दिन वह गुफ़ा में बैठा कुछ सोच रहा था, तभी उसकी दृष्टि एक मकड़ी पर पड़ी। वह दीवार पर चढ़ने का प्रयास कर रही थी। राजा ने देखा मकड़ी ऊँचाई पर चढ़ती और फिसलकर नीचे गिर पड़ती। मकड़ी ने अनेक बार प्रयत्न किए। हर बार मकड़ी जब नीचे गिर जाती तो अमरसेन को उस पर दया आ जाती। वह सोचने लगा कि बहुत हो चुका अब शायद मकड़ी की हिम्मत ने जवाब दे दिया है। अब वह दीवार पर चढ़ने की कोशिश नहीं करेगी। पर वह यह देखकर हैरान रह गया कि मकड़ी ने फिर से हिम्मत जुटाई और इस बार दीवार पर चढ़ने में सफल हो गई। यह देखकर अमरसेन को सुखद आश्चर्य हुआ। इस घटना ने उस पर गहरा प्रभाव डाला। उसका खोया हुआ विश्वास फिर से जाग उठा। उसने सोचा, जब एक मकड़ी बार-बार गिरने पर भी कोशिश कर दीवार पर चढ़ सकती है, तो भला मैं अपने शत्रुओं को क्यों नहीं हरा सकता। राजा अमरसेन की आँखों में आशा की चमक आ गई। उसने नए जोश एवं साहस के साथ अपनी सेना तैयार की और शत्रु पर धावा बोल दिया। शत्रु अचानक हुए इस हमले के लिए तैयार नहीं था। शत्रु की हार हुई अमरसेन को अपना राज्य फिर से मिल गया। किसी ने ठीक कहा है- “मन के हारे हार है मन के जीते जीत।”
किसी देश में अमरसेन नाम का एक राजा था। वह बहुत वीर और प्रजा का हित चाहने वाला था। उसकी प्रजा भी उसे बहुत चाहती थी। एक बार किसी बात से नाराज़ होकर उसके पड़ोसी राजा ने उस पर आक्रमण कर दिया। राजा अमरसेन अपनी सेना के साथ बहुत वीरता से लड़ा परंतु भाग्य ने उसका साथ न दिया। युद्ध में उसकी पराजय हुई। उसके बहुत से सैनिक मारे गए। शत्रु के सैनिक उसे जीवित पकड़ना चाहते थे पर वह किसी तरह युद्धभूमि से बचकर वहाँ से भाग निकला। शत्रु से बचता-बचाता वह एक जंगल में जा पहुँचा। वह छिपकर एक गुफ़ा में रहने लगा। गुफ़ा में रहते-रहते उसे अपने परिवार व देश की बहुत याद आती था। वह किसी तरह अपना खोया राज्य पुनः पाना चाहता था, परंतु उसे कोई उपाय सूझ नहीं रहा था। वह मन हारकर बैठ गया। एक दिन वह गुफ़ा में बैठा कुछ सोच रहा था, तभी उसकी दृष्टि एक मकड़ी पर पड़ी। वह दीवार पर चढ़ने का प्रयास कर रही थी। राजा ने देखा मकड़ी ऊँचाई पर चढ़ती और फिसलकर नीचे गिर पड़ती। मकड़ी ने अनेक बार प्रयत्न किए। हर बार मकड़ी जब नीचे गिर जाती तो अमरसेन को उस पर दया आ जाती। वह सोचने लगा कि बहुत हो चुका अब शायद मकड़ी की हिम्मत ने जवाब दे दिया है। अब वह दीवार पर चढ़ने की कोशिश नहीं करेगी। पर वह यह देखकर हैरान रह गया कि मकड़ी ने फिर से हिम्मत जुटाई और इस बार दीवार पर चढ़ने में सफल हो गई। यह देखकर अमरसेन को सुखद आश्चर्य हुआ। इस घटना ने उस पर गहरा प्रभाव डाला। उसका खोया हुआ विश्वास फिर से जाग उठा। उसने सोचा, जब एक मकड़ी बार-बार गिरने पर भी कोशिश कर दीवार पर चढ़ सकती है, तो भला मैं अपने शत्रुओं को क्यों नहीं हरा सकता। राजा अमरसेन की आँखों में आशा की चमक आ गई। उसने नए जोश एवं साहस के साथ अपनी सेना तैयार की और शत्रु पर धावा बोल दिया। शत्रु अचानक हुए इस हमले के लिए तैयार नहीं था। शत्रु की हार हुई अमरसेन को अपना राज्य फिर से मिल गया। किसी ने ठीक कहा है- “मन के हारे हार है मन के जीते जीत।”