please explain line no.16, 17 and 18of poem- naye elake mein
नमस्कार मित्र,
वह कहते हैं, "हमारे यहाँ रोज़ कुछ-न-कुछ नया बनता रहता है, जिसके कारण में अपनी समृति पर विश्वास नहीं कर सकता हूँ।" उसके अनुसार समय बदलता रहता है। यदि हम उसके साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलते हैं, तो हमें किसी तरह की असुविधा नहीं होती है। लेकिन अगर हम उसके साथ नहीं चल पाते, तो हम पिछड़ जाते हैं। इस प्रकार हम भ्रमित होकर भटकते रहते हैं। कवि के अनुसार दुनिया रोज़ ही बदल रही है। रोज़ उसमें नित नए बदलाव आते रहते हैं। तब ऐसा लगता है कि दुनिया का स्वरूप रोज़ नया हो रहा है। वह आगे कहते हैं कि मेरी स्थिति तो ऐसे व्यक्ति के समान है, जो अपना घर छोड़कर परदेश चला गया था। जब वह गया था, तब वसंत का मौसम था। अब जब वापस लौटा है, तो मानो पतझड़ का मौसम है। अर्थात ये परिवर्तन मनुष्य को हैरान करने वाले हैं।