Please explain the internal meaning of the following lines -
मित्र !
इतना बड़े अनुच्छेद का आंतरिक भाव देना संभव नहीं है, हम यहाँ संक्षेप में अपने विचार दे रहे हैं :
गरीबी में भी तुमने अपने स्वाभिमान को बनाए रखा है । हम लोग ऐसे नहीं रह सकते । साधारण लोग कभी स्वाभिमान बनाए रखने के लिए गरीबी को नहीं अपनाएँगे । तुम इस हालत में रह कर भी मुस्कुराते हो । तुम्हारी गरीबी में तुम्हारा आत्मसम्मान झलकता है । तुम्हारा स्वाभिमान कितना अधिक है । तुम तो इतने बड़े लेखक हो । जनसाधारण की बातें लिखते हो । फिर तुम्हारे हालात फटेहाल क्यों है । लेखक ने समाज पर कटाक्ष किया है । समाज में फैली बुराइयों तथा भेदभाव पर व्यंग्य किया जा रहा है । अवसरवादी और स्वार्थी लोगों पर व्यंग्य किया जा रहा है ।
इतना बड़े अनुच्छेद का आंतरिक भाव देना संभव नहीं है, हम यहाँ संक्षेप में अपने विचार दे रहे हैं :
गरीबी में भी तुमने अपने स्वाभिमान को बनाए रखा है । हम लोग ऐसे नहीं रह सकते । साधारण लोग कभी स्वाभिमान बनाए रखने के लिए गरीबी को नहीं अपनाएँगे । तुम इस हालत में रह कर भी मुस्कुराते हो । तुम्हारी गरीबी में तुम्हारा आत्मसम्मान झलकता है । तुम्हारा स्वाभिमान कितना अधिक है । तुम तो इतने बड़े लेखक हो । जनसाधारण की बातें लिखते हो । फिर तुम्हारे हालात फटेहाल क्यों है । लेखक ने समाज पर कटाक्ष किया है । समाज में फैली बुराइयों तथा भेदभाव पर व्यंग्य किया जा रहा है । अवसरवादी और स्वार्थी लोगों पर व्यंग्य किया जा रहा है ।