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उत्तर :-

भाग्य और पुरुषार्थ मनुष्य के  साथ हमेशा रहे हैं। परिश्रमी लोग अपने पुरुषार्थ के बल पर दुनिया को अपने समक्ष झुका देते हैं, तो आलसी लोग भाग्य के दम भरते हुए रहते हैं। भाग्य भी तब ही सहारा देता है, जब मनुष्य पुरुषार्थ से काम लेता है। यदि एक व्यक्ति यही मान ले की यदि रोटी उसके भाग्य में होगी, तो स्वयं मुँह में चलकर आएगी, तो यह हो नहीं सकता। उस रोटी को खाने के लिए पहले उसे मेहनत करनी पड़ेगी। आटा खरीदकर लाना पड़ेगा और पकाना भी पड़ेगा। तभी वह रोटी का स्वाद ले सकता है। 

भाग्य के बल को भी नकारा नहीं जा सकता है। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि मनुष्य भाग्य के भरोसे रह कर मेहनत करना छोड़ दे। मनुष्य का पुरुषार्थ उसके दोनों हाथों में है। इन्हीं के आधार पर वह पहाड़ों का सीना चीरकर रास्ता बना पाया है। समुद्र को भेद पाया है और आकाश को छू पाया है। आसमान से तारे तोड़ने के लिए भाग्य काफी नहीं है। पुरुषार्थ भी इसके बहुत आवश्यक है। भाग्य आपके रास्ते की मुश्किलों को कम अवश्य कर सकता है, परन्तु उन्हें समाप्त नहीं कर सकता। उसे मुश्किलों को काटने के लिए पुरुषार्थ का ही सहारा लेना पड़ता है। मनुष्य द्वारा किया गया परिश्रम उसे सफलता के सातंवे आयाम तक पहुँचा देता है। सचिन तेंदुलकर यदि परिश्रम नहीं करता, तो वह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज नहीं कहलाता। उसके भाग्य ने भी तभी उसका साथ दिया, जब उसने पुरुषार्थ से काम लिया है। 

इस आधार पर आप अपने उत्तर को लिख सकते हैं ।

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