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मित्र

बिहारी जी के 'दोहे' गागर में सागर के समान होते हैं। कहने के लिए वे बहुत छोटे  हैं मगर उनके अर्थ बहुत गहरे हैं। उनके दोहों में भक्ति और प्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। उनमें श्रृंगार रस का सुंदर रूप भी देखने को मिलता है। उनके कुछ सुंदर दोहों में यह देखने को मिलता है।  एक दोहे में उन्होंने पीताम्बर पहने सांवले कृष्ण की तुलना नीलमनि प्रर्वत से की है जिस पर सूर्य का प्रकाश पड़ रहा है। दूसरे दोहे में भक्ति की बात करते हुए मनुष्य को आडंबरों के स्थान पर सच्ची भक्ति करने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने ग्रीष्मऋतु में जंगल के सभी प्रणियों द्वारा साथ रहने की बात कही है। उनके अनुसार ऐसा लग रहा है मानो ऋषि के तपोबल के कारण सभी साथ रहने के लिए विवश हैं। एक अन्य एक अन्य दोहे में गोपियों ने कृष्ण को तंग करने के उद्देश्य से उनकी मुरली छुपा देना, परदेश गए प्रेमी को प्रेमिका अपने ह्दय का हाल लिखने में स्वयं को असमर्थ दिखाया जाना तथा एक प्रेमी जोड़े का बीच सभा में इशारों के द्वारा की गई बातों को दर्शाया जाना श्रृंगार रस का सुंदर उदाहरण है।

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