pls give me a beautiful poem on vidyarthi nama

थे हम कभी छरछरे -से
थे बेफिक्र ,मनचले -से|
वह ,पंडित जी की चाय,
वे कॉलेज के लॉन |
कॉलेज -स्पेशल की यात्रा,
वह अनूठी-सी मित्रता|
Ncc और Nss के फंडे ,
Annual day के झंडे|
कुछ वर्षों तक रहे ,
एक दूसरे से मौन |
पुरानी हवाएँ चलने लगी हैं ,
Whatsapp पर बातें
विचारने लगी हैं|
रहते कहीं- कहीं हैं,
पर मिलते सब यहीं हैं|
बालों में सफेदी
अब दिखनेे लगी है,
मोटापे की परतें
भी जमने लगी हैं |
ऐनक, अनिवार्य हो गयी है,
सबके कार्य हो गए हैं|
फुरसत के लम्हें ,
अब खो- से गए हैं |
थोड़े -से बूढे हम
हो से गए हैं |
कॉलेज ग्रुप को देख
ताजगी -सी आ जाती है|
सत्यवती की गालियाँ
फिर से बुलाती हैं |
काश !बीता कल लौट पाता,
दिल है यह गीत गाता-
" कॉलेज के दिन भी क्या दिन थे,
उड़ते फिरते पंछी बनके "

ममता भारद्वाज "मधु"

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