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मित्र गोपियाँ कहती हैं कि हमें ऐसे निर्गुण ब्रह्म से क्या लाभ जो सामने ही ना हो। आप ये शिक्षा उसे दो जिनकी इन्द्रियाँ व मन उनके बस में नहीं होते। वो हमारे किसी काम का नहीं है। हमें तो सगुण श्रीकृष्ण प्यारे हैं, जिन्हें हम देख कर अपने नैनों की इच्छा पूर्ण कर सकते हैं। हम तो अपने मन व इन्द्रियों को श्री कृष्ण के प्रेम के रस में डूबो चुकी हैं और अपना सबकुछ श्री कृष्ण में एकाग्र कर चुकी हैं।