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मित्र

पावस का अर्थ है वर्षा। इस ऋतु में पर्वतों का रूप बदल जाता है। पहाड़ों में वर्षा कभी भी हो जाती है। मौसम परिवर्तन होता रहता है।  वर्षा ऋतु में पहाड़ों के नीचे पानी एकत्रित हो जाता है। पानी नीचे की ओर भी बहने लगता है और तालाब या नदी में मिल जाता है। सारा पहाड़ पानी-पानी हो जाता है। अचानक काले-काले बादल घिर आते हैं। पहाड़ों में वर्षा ऋतु का अपना राज होता है। पर्वत शिखर पर बादल आपस में गर्जन करते हुए टकराते हैं और मौसम का भयंकर रूप दिखाई देता है।  

 मैदानी इलाकों में पावस ऋतु का रूप अलग होता है। सारा वातावरण ठंडक से भर जाता है। बादल आकाश में छा जाते हैं और घनघोर वर्षा होने लगती है। वन तथा उपवन, वर्षा से नव-जीवन पाते हैं। बागों में मोर तथा कोयल मचल उठते हैं। वर्षा की बौछार तपती धरती को शीतलता प्रदान करती है। जहाँ एक ओर लोगों के लिए यह मस्ती से भरी होती हैं, वहीं दूसरी ओर किसानों के लिए बुआई का अवसर लाती है। चावलों की खेती के लिए तो यह उपयुक्त मानी जाती है। गरमी से मुरझाए पेड़, लता-पुष्पों में बहार छा जाती है। जगलों व बागों में कोयलों के मधुर स्वर व मोरों का आकर्षक नृत्य दिखाई देने लगते हैं। मैदानी इलाकों में वर्षा ऋतु एक तरफ जहाँ तन व मन को प्रसन्नता से भर देती है। वहीं दूसरी तरफ इसके कारण पानी ही पानी भर जाता है। अधिक वर्षा से खड़ी फसलें खराब हो जाती हैं। नदियों में जल का स्तर बढ़ने से बाढ़ व बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। 

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