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प्रिय विद्यार्थी ,

आपके प्रश्न का उत्तर है -
7. 'भाव भगती जागीरी पास्यूँ' का अर्थ भाव और भक्ति रूपी जागीर है । मीरा कृष्ण की दासी बनने को तैयार है क्योंकि उसे कृष्ण की भावभक्ति चाहिए ।


8. कबीर ने हिरण और कस्तूरी के माध्यम से ईश्वर की उपस्थिति को समझाना चाहते हैं । जिस प्रकार कस्तूरी हिरण की नाभि में ही होता है और हिरण उसे पूरे वन में ढूँढता है , उसी प्रकार ईश्वर हर जगह व्याप्त हैं और हम उन्हें विभिन्न जगहों , तीर्थ स्थलों पर ढूंढते हैं ।


आभार ।

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प्रिय विद्यार्थी ,

7.
भाव-सौंदर्य-इन पंक्तियों में मीरा दासी बनकर अपने आराध्य श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहती हैं। इससे उन्हें प्रभु स्मरण, भक्ति रूपी जागीर तथा दर्शनों की अभिलाषा रूपी संपत्ति की प्राप्ति होगी अर्थात् श्रीकृष्ण की भक्ति को ही मीरा अपनी संपत्ति मानती हैं। 

शिल्प-सौंदर्य- 

1. प्रभावशाली राजस्थानी भाषा का प्रयोग हुआ है। 

2. ‘भाव भगती’ में भ’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है तथा ‘भाव भगती जागीरो’ में रूपक अलंकार है। 

3. मीराबाई की दास्य तथा अनन्य भक्ति को दर्शाया गया है। 

4. “खरची’, ‘सरसी’ में पद मैत्री है।

8.
हिरण की नाभि में कस्तूरी रहता है जिसकी सुगंध चारों ओर फैलती है। हिरण इससे अनभिज्ञ पूरे वन में कस्तूरी की खोज में मारा मारा फिरता है। इस दोहे में कबीर ने हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज में दर दर भटकता है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर तो हम सबके अंदर वास करते हैं लेकिन हम उस बात से अनजान होकर ईश्वर को तीर्थ स्थानों के चक्कर लगाते रहते हैं।

आभार ।
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8) हिरण की नाभि में ्तूरी रहता है जिसकी सुगंध चारों ओर फैलती है। हिरण इससे अनभिज्ञ पूरे वन में कस्तूरी की खोज में मारा मारा फिरता है। इस दोहे में कबीर ने हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज में दर दर भटकता है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर तो हम सबके अंदर वास करते हैं लेकिन हम उस बात से अनजान होकर ईश्वर को तीर्थ स्थानों के चक्कर लगाते रहते हैं।

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