ram laxman parshuram samvad ke piche jo rochak prasang hai use likhie?

नमस्कार मित्र!

राम-लक्ष्मण अपने गुरू विश्वामित्र के साथ स्वयंवर में आए थे। स्वयंवर में राजा जनक द्वारा सभी देशों के राजाओं को बुलाया गया था। स्वयंवर की शर्त थी कि जो भी शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा, वही राजा जनक की पुत्री सीता का भावी पति होगा। राजा जनक के पास पूर्वजों के समय से शिव धनुष धरोहर स्वरूप रखा गया था। इस धनुष को स्वयंवर में रखने के पीछे राजा जनक का विशेष कारण था। शिव धनुष भगवान शिव का धनुष था, इसे कोई भी दानव, मानव, देवता, गंधर्व उठा नहीं पाते थे। राजा जनक अपनी बेटी के लिए ऐसा वर चाहते थे, जो सभी मानवों, दानवों देवताओं और गंधर्व में शक्तिशाली हो। ऐसे श्रेष्ठ व्यक्ति की परख के लिए उन्हें शिव धनुष सबसे उचित लगा। बस उन्होंने सीता स्वयंवर की यही शर्त रख दी। स्वयंवर में वीर और महान योद्धा और राजा सभी आएँ। सभी ने इस धनुष को उठाने का प्रयास किया। यहाँ तक की राक्षस राज रावण भी आया था परन्तु उसे मुँह की खानी पड़ी। राजा जनक निराश हो गए। उन्होंने निराशा में आकर पृथ्वी को वीर क्षत्रियों से विहिन बताया। उनकी निराशा को देखते हुए विश्वामित्र ने राम को धनुष उठाने और प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए कहा। राम जो कि स्वयं सभा में उपस्थित सभी राजाओं से उम्र और वीरता में बहुत छोटे थे, क्षण में बिना किसी कठिनाई के धनुष को उठा लिया और उसमें प्रत्यंचा भी चढ़ा दी। प्रत्यंचा चढ़ाने के बाद उन्होंने धनुष की प्रत्यंचा को ज़ोर से खींचा और टंकार लगाई। धनुष उनके बल को सह नहीं पाया और भंयकर गर्जना के साथ टूट गया। उसकी गर्जना आकाश-पाताल और पृथ्वी के हर स्थान पर गूंज गई। धनुष टूटने की गर्जना सुन सभा में उपस्थित सभी लोग स्तब्ध रह गए। राजा जनक प्रसन्नता से भर गए और सीता के लिए उन्हें श्रेष्ठ पति मिल गया। सभा में उनकी जय-जयकार होने लगी। धनुष के टूटने का शब्द परशुराम को भी सुनाई दिया। बस वह उस व्यक्ति को दण्ड देने के उद्देश्य से बना क्षण गंवाएँ सभा में उपस्थित हो गए। यहीं से राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद आरंभ होता है। इस संवाद के पीछे यही रोचक प्रंसग है जो सीता स्वयंवर के नाम से भी जाना जाता है।

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