Saakhi ka pratipadya vishay likhiye
मित्र!
आपके प्रश्न के लिए हम अपने विचार दे रहे हैं। आप इनकी सहायता से अपना उत्तर पूरा कर सकते हैं।
कबीर दास जी की साखियों में नीति वाणी होती है। पहली साखी में मीठी वाणी बोलने के बारे में बताया गया है जिससे मनुष्य स्वयं तो आनंदित होता ही है, औरों को भी सुख प्राप्त होता है। दूसरी साखी में कबीर दास जी का भाव यह है कि ईश्वर हमारे भीतर ही है। उसको हम धर्मस्थलों या तीर्थस्थानों में ढूंढते हैं, जबकि वह हमारे भीतर ही विराजमान है। तीसरी साखी में कबीर दास जी कहते हैं कि ईश्वर की प्राप्ति अहंकार ना रहने की स्थिति में होती है। चौथी साखी में कबीर दास जी कहते हैं कि संसार में सुखी वही है जो खाते हैं और सोते हैं। सबसे दुखी व्यक्ति वह है जो प्रभु के दर्शनों के प्यासे हैं। पांचवी साखी में कबीर दास जी कहते हैं मनुष्य जब अपनों से बिछड़ता है तो बेचैन हो जाता है। उसी प्रकार ईश्वर प्राप्ति ना होने की स्थिति में मनुष्य की स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। छठी साखी में कबीर दास जी कहते हैं कि निंदक को हमेशा अपने साथ रखना चाहिए ताकि हम अपनी भूलों को सुधार सकें। सातवीं साखी में कबीर दास जी कहना चाहते हैं कि बड़ी-बड़ी किताबें पढ़ने से कोई फायदा नहीं है। यदि मनुष्य के अंदर ईश्वर के प्रति भक्ति नहीं है तो सब व्यर्थ है। आठवीं साखी में कबीर दास जी कहते हैं ज्ञान रूपी मशाल जलाने के लिए अपना घर चलाना होगा अर्थात अपने मन का अहंकार, माया और मोह त्यागना होगा। सांसारिक भौतिक बंधनों को छोड़ने पर ही ज्ञान की प्राप्ति होती है।
आपके प्रश्न के लिए हम अपने विचार दे रहे हैं। आप इनकी सहायता से अपना उत्तर पूरा कर सकते हैं।
कबीर दास जी की साखियों में नीति वाणी होती है। पहली साखी में मीठी वाणी बोलने के बारे में बताया गया है जिससे मनुष्य स्वयं तो आनंदित होता ही है, औरों को भी सुख प्राप्त होता है। दूसरी साखी में कबीर दास जी का भाव यह है कि ईश्वर हमारे भीतर ही है। उसको हम धर्मस्थलों या तीर्थस्थानों में ढूंढते हैं, जबकि वह हमारे भीतर ही विराजमान है। तीसरी साखी में कबीर दास जी कहते हैं कि ईश्वर की प्राप्ति अहंकार ना रहने की स्थिति में होती है। चौथी साखी में कबीर दास जी कहते हैं कि संसार में सुखी वही है जो खाते हैं और सोते हैं। सबसे दुखी व्यक्ति वह है जो प्रभु के दर्शनों के प्यासे हैं। पांचवी साखी में कबीर दास जी कहते हैं मनुष्य जब अपनों से बिछड़ता है तो बेचैन हो जाता है। उसी प्रकार ईश्वर प्राप्ति ना होने की स्थिति में मनुष्य की स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। छठी साखी में कबीर दास जी कहते हैं कि निंदक को हमेशा अपने साथ रखना चाहिए ताकि हम अपनी भूलों को सुधार सकें। सातवीं साखी में कबीर दास जी कहना चाहते हैं कि बड़ी-बड़ी किताबें पढ़ने से कोई फायदा नहीं है। यदि मनुष्य के अंदर ईश्वर के प्रति भक्ति नहीं है तो सब व्यर्थ है। आठवीं साखी में कबीर दास जी कहते हैं ज्ञान रूपी मशाल जलाने के लिए अपना घर चलाना होगा अर्थात अपने मन का अहंकार, माया और मोह त्यागना होगा। सांसारिक भौतिक बंधनों को छोड़ने पर ही ज्ञान की प्राप्ति होती है।