Shaam ko kissan kyu kha gaya hai?

मित्र कवि ने इस कविता में सर्दी की शाम की तुलना किसान से की है। यहाँ कवि ने प्रकृति को मानवीय रूप प्रदान किया है। किसान की दिनचर्या को इस कविता के माध्यम से बताया गया है। किसान शाम को सारे कामों से मुक्त होकर सिर पर साफा बाँधे तथा चादर ओढ़े चिलम पी रहा है। तभी उसकी पत्नी उसे आवाज़ देती है। वह जल्दबाज़ी में चिलम को गिरा देता है। इस प्रकार रात हो जाती है। 

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