summary of dharm ki aad
धर्म की आड़ नामक पाठ में लेखक ने समाज के उस स्वरुप का वर्णन किया है जो धर्म का नाम लेकर भोली-भाली जनता को मूर्ख बनाते हैं। वह उनको धर्म के नाम पर आपस में लड़वाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। लेखक ने पूरी कोशिश की है की इस तरह के लोगों की कुटिल इरादों और चालों को समाज के सम्मुख रखकर, लोगों को यह सोचने पर मजबुर किया है की वह आखिर कब तक इस तरह से उनके हाथों की कठपुतली बने रहेगें। उनके अनुसार धर्म पूजा-पाठ, व्रत-नमाज, मंदिर व मजिस्द में नहीं है अपितु सच्ची मानवता की सेवा में है। वह उन व्यक्तियों को ज्यादा अच्छा बताते हैं जो नास्तिक हैं परन्तु मानवता की सेवा के लिए हमेशा हाथ बांधे खड़े रहते है।