what is the bhavarth of the third kavitt of 3rdlesson written by dev ?

कवि देव जी कहते है कि चाँदनी रात में आकाश सुधा मन्दिर के समान लग रहा है। यह मन्दिर स्फटिक शिला से बना हुआ है। इसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानों दही का समुद्र उमड़ कर आया है। इस मन्दिर में बाहर से भीतर तक कोई दीवार कहीं भी दिखाई नहीं दे रही है। भाव यह कि चाँदनी रात में चाँदनी से नहाया हुआ आकाश सफेद संगमरमर से बना मन्दिर प्रतीत होता है। ऐसा लगता है मानों उसके तल में दही के समान सफेद समुद्र की लहरें लहरा रही हों। यह ऐसे मन्दिर के समान लगता है जिसमें कोई दीवार नहीं है। इस मन्दिर के आँगन में फ़र्श ऐसा लगता है मानो दूध का फेन फैल गया हो। अर्थात्‌ चाँदनी दूध के झाग के समान बिखरी हुई प्रतीत होती है। इस मंदिर में तारे के समान नायिका खड़ी झिलमिला रही है। मल्लिका नमक फूल का मकरंद मोतियों की आभा के समान प्रदर्शित कर रहा है। इसे देखकर ऐसा लगता है मानों नायिका ने अपने गले में मोतियों की माला पहन रखी है। देव जी कहते हैं कि रात में चाँदनी का उजलापन आभा के समान चमकता है। आसमान दर्पण के समान स्वच्छ व निर्मल है। ऐसा प्रतीत होता है मानों इस साफ दर्पण में चन्द्रमा रूपी प्यारी राधा का प्रतिबिंब पड़ रहा हो।

  • 0
What are you looking for?