what is the central idea of this poem?
Hi Nishkaarsh,
इस पूरी पृथ्वी में मानव ही भगवान के द्वारा बनाई गई ऐसी रचना है जिसके अंदर सोचने-समझने व उसको साकार रूप में ढालने की शक्ति है। वह अपने लिए ही नहीं अपितु दूसरों के बारे में अच्छा करने में समर्थ है। परन्तु आज वह स्वहित में पड़कर लोकहित व जनसेवा जैसे कामों को भुला चुका है। प्रस्तुत कविता में कवि मनुष्य के अन्दर समाप्त हो रहे उस गुण को बनाए रखने का प्रयास करता है। उनके अनुसार वही मनुष्य, मनुष्य कहलाता है जो अपना हित छोड़कर दूसरों के हितों के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देता है। कवि इस कविता के माध्यम से मनुष्य को लोक सेवा के लिए प्रेरित करता है। उसके अनुसार जिस मनुष्य का सारा जीवन स्वयं की सुख-सुविधा को बनाए रखने में निकल जाता है, वह इस संसार में पशु के समान है। अत: उसे चाहिए की दूसरों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहे।
मैं आशा करती हूँ की आपको आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
ढेरों शुभकामनाएँ !