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मित्र स्वभाषा प्रत्येक निवासी को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाती है और मानसिक गुलामी से स्वतंत्र करती है। स्वभाषा के कारण हम स्वाभिमान से अपना जीवन जीते हैं। अपने स्वभाव में अन्य भाषा को अमल में लाना परतंत्रता का प्रतीक है। स्वभाषा का हमारे दैनिक जीवन में ऐसा ही महत्व है, जैसे भोजन का। यदि हम हिन्दी नहीं बोल सकते और समझ सकते हैं, तो हमें लोगों के साथ विचारों का आदान-प्रदान करने में कठिनाई होगी। हर व्यक्ति अंग्रेज़ी भाषा जानता हो यह संभव नहीं है। इस कारण हम मित्र नहीं बना पाएँगे। लोगों से किसी विषय में पूछ नहीं पाएँगे। सामान खरीदने तक के लिए हमें कठिनाई होगी। हमारे पूर्वजों ने अपनी जान की बाजी लगाकर जिस स्वतंत्रता को प्राप्त किया है, वह पूर्णरूपेण स्वतंत्रता नहीं है क्योंकि आज भी हम विदेशी भाषा की सहायता ले रहे हैं। स्वभाषा को हमें अपनी कार्य की भाषा भी बनानी होगी तभी हम पूर्ण रुप से स्वतंत्र कहलाएंगे। 

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