i did not understand "madhur madur mere deepak jal" poem pls can anyone explain this poem to me in simple words..??

मित्र 'मधुर-मधुर मेरे दीपक जल' कविता में कवियत्री महादेवी वर्मा को अपने ईश्वर पर अपार विश्वास और श्रद्धा है। इसी विश्वास और श्रद्धा के सहारे वह अपने ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना चाहती हैं। उन्हें स्वयं से बहुत अपेक्षाएँ हैं। वह अपने कर्तव्यों को समझते हुए स्वयं को जलाने के लिए तैयार हैं क्योंकि वह जानती हैं, इस संसार का कल्याण उनके जलने में ही है। यदि वह चाहती हैं कि इस संसार के सभी प्राणी इस मार्ग का अनुसरण करें, तो उन्हें स्वयं को जलाना पड़ेगा। इस कविता में स्वहित के स्थान पर लोकहित को अधिक महत्व दिया गया है। कवियत्री अपने आस्था रूपी दीपक से आग्रह करती है कि वह निरंतर हर परिस्थिति में जलता रहे। क्योंकि उसके जलने से इन तारों रूपी संसार के लोगों को राहत मिलेगी। उनके अनुसार लोगों के अंदर भगवान को लेकर विश्वास धुंधला रहा है। थोड़ा-सा कष्ट आने पर वे परेशान हो जाते हैं। अत: तेरा जलना अति आवश्यक है। तुझे जलता हुआ देखकर उनका विश्वास बना रहेगा। उनके अनुसार एक आस्था के दीपक से सौ अन्य दीपकों को प्रकाश मिल सकता है।  

  • 3
What are you looking for?