i wanted the summary of bhed aur bhediya story  written by harishankar parsai in hindi

(आपने हरिशंकर परसाई जी की रचना भेड़ और भेड़िये  अवश्य पढ़ी होगी । अगर नहीं पढ़ी तो जरुर पढ़ें । प्रस्तुत कहानी उसी जंगल में चालीस साल बाद घटे घटनाक्रम पर आधारित है और परसाई जी की रचना के पात्रों ने प्रस्तुत कहानी में अपना योगदान देने से मना नहीं किया जिसके लिए हम उनके आभारी हैं । )   चालीस साल बाद जब भेड़ों को दिखने लगा कि भेड़ियों का जीवन दिन प्रतिदिन सुविधाओं से भरपूर होता जा रहा है और उनको बिना कुछ किये रोज आहार के लिए पौष्टिक भेड़ें मिल रही हैं, तो उन्हें लगा कि जिस उद्देश्य से जंगल में पशुतंत्र की स्थापना हुई थी, वो रास्ते से भटक गया है। भेड़ियों को जंगल की सबसे अच्छी गुफाओं में रहने को मिल रहा है, जबकि भेड़ें अभी भी जंगल में सर्दी, गर्मी, बरसात से लड़ती रहती हैं । भेड़िये सामान्य दिनों में अपनी गुफाओं से बाहर निकलते ही नहीं थे, भेड़ों को ही अपनी समस्याओं को लेकर उनकी आलीशान गुफाओं में जाना पड़ता था । उन गुफाओं कि साज-सजावट देखकर और वहाँ सेवा के लिए लगी हुई अनेक भेड़ों को देखकर उनकी आँखें आश्चर्यचकित रह जाती थी । जबकि चुनाव आते ही ये भेड़िये भी पेड़ों के इर्द-गिर्द दस भेड़ों को सम्बोधित करते हुए दिख जाते थे ।   चालीस साल तक ऐसा होता रहा और किसी भेड़ ने आवाज नहीं उठाई और अगर उठाई भी तो उसे ठिकाने लगा दिया गया । भेड़ों में असंतोष बढ़ता गया । बहुत दिनों के बाद जंगल के दूर दराज़ के इलाकों में खबर गई कि बूढ़े पीपल के पास एक भेड़, जो किसी दूर के जंगल से उच्च-शिक्षा ग्रहण करके आया है, भेड़ों को भेड़ियों के खिलाफ जागरूक कर रहा है । बूढ़ा पीपल एक तरह से जंगल की राजधानी हुआ करता था । जंगल के सारे बुद्धिजीवी पशु यहीं पर इकठ्ठा होकर सम-सामायिक विषयों पर चर्चा किया करते थे । उस पढ़े लिखे भेड़, जिसका नाम बुधई था, ने पूरे जंगल में घूम घूमकर भेड़ियों के खिलाफ भेड़ों को बताना शुरू किया और देखते ही देखते ही जंगल में एक लहर सी व्याप्त हो गई । इस अभियान में भेड़ों का नेतृत्व करने के लिए बुधई कि अगुवाई में एक समिति का गठन किया गया जिसमें जंगल के विभिन्न क्षेत्रों के भेड़ों को प्रतिनिधित्व मिला ।   नियत समय पर समिति ने बूढ़े पीपल के पास एक विशाल विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया, जिसमें भेड़ों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया । भेड़ों से मिले समर्थन को देखकर अभिभूत होते हुए बुधई ने भेड़ों ने सम्बोधित करना शुरू किया, “मित्रों ! आज हमारे लिए बहुत बड़ा दिन है । आज हर एक भेड़ अपने अधिकारों के लिए जाग चुकी है। हम इन भेड़ियों को भेड़ों कि असली ताकत दिखाकर रहेंगे । आज तक भेड़ियों ने जो भी सुविधाएं ली हैं उसके लिए जांचपाल नाम की एक संस्था बनाई जाये जो कि यह फैसला करेगी कि ये सुविधाएं वैध हैं या अवैध। बस यही हमारी मांग हैं । और हम यह मांग मनवाकर रहेंगे । ”  भेड़ों ने एक स्वर में क्रन्तिकारी नारे लगाकर अपनी हामी भरी ।   लेकिन इतना प्रयास करने के बाद भी भेड़ियों ने सिर्फ आश्वासन दिया और कोई ठोस प्रगति नहीं हुई । इससे समिति के सदस्यों में रोष व्याप्त हो गया और उन्होंने दोबारा विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने की घोषणा की । इस बार भी पहले की तरह भेड़ों का व्यापक समर्थन मिला लेकिन इस बार भी भेड़िये टस से मस नहीं हुए । जब समिति को लगा कि बार बार के विरोध प्रदर्शनों से कुछ नहीं होगा तो उन्होंने अगला चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी । बुधई ने भेड़ों से कहा, “एक आम भेड़ कि आवाज कोई नहीं सुनता । इस जंगल की  सारी  समस्याओं कि जड़ दो मुख्य भेड़िया दल, जंगलदेश और जंगल भेड़ पार्टी (‘जे बी पी’ ) हैं । हमें इनको उखाड़ फेंकना है । भेड़ियों को लगता है कि जांचपाल के आने के बाद उनके कारनामों की पोल खुल जायेगी इसीलिए वो यह मांग मानने को तैयार नहीं हैं लेकिन मित्रों जब जंगल की हर एक आम भेड़ जाग जायेगी तो हमें कोई रोक नहीं सकता । इस जंगल की समस्याएं तभी दूर होंगी जब एक ईमानदार भेड़ चुन कर जायेगी । आप हमें अपना बहुमूल्य मत दीजिये और हमको जांचपाल और भेड़राज देंगे । ” बुधई ने जंगल के लिए जो नयी व्यवस्था सोची थी उसका नाम भेड़राज था और उसको विस्तार से बताने के लिए ‘भेड़राज’ नामक एक पुस्तक भी लिखी थी । जब नया दल बनाया गया तो उसका नाम रखा गया : ‘आम भेड़ दल’, जिसको संछेप में ‘अभेद’ नाम से जाना गया । जब किसी ने इंगित किया कि संछेप में उसे ‘अभेद’ नहीं बल्कि ‘आभेद’ नाम से जाना जायेगा तो उसे ‘जे बी पी’ का एजेंट बताकर चुप करा दिया गया ।   जैसे जैसे चुनाव नजदीक आता गया, अपने प्रचार के लिए समिति ने नए नए तरीके खोजने शुरू किये । सबसे पहले यह फैसला किया गया कि हर एक भेड़ अपने गले में एक पट्टा बांधेगी जिसपे लिखा होगा : “मैं हूँ आम भेड़ । ” चूँकि बन्दर एक डाल से दूसरी डाल तक बहुत जल्दी पहुच जाते हैं इसलिए उनको जंगल के हर एक कोने में ‘अभेद’ का सन्देश पहुंचाने का काम दिया गया । और स्वयं बुधई अपने समर्थकों और स्वयंसेवकों के साथ हर भेड़ के इलाके में पहुंचे और उनसे ‘अभेद’ के लिए मतदान करने का आग्रह किया। चुनाव हुआ और चुनाव में ‘अभेद’ थोड़े से अंतर से दूसरा सबसे बड़ा दल बनके उभरी । सबसे बड़े दल के सरकार बनाने से मना करने के बाद ‘अभेद’ से सरकार बनाने की अपेक्षा की जाने लगी । ‘अभेद’ की समिति ने सोचा कि चूँकि उन्होंने भेड़ों से पूँछकर ही सब काम करने का वादा किया था अतः उनकी राय ली जानी चाहिए । उन्होंने फैसला किया कि कल सुबह बूढ़े पीपल के आगे इस प्रस्ताव पर भेड़मत संग्रह किया जायेगा । जो भेड़ इससे सहमत हैं वो गुलाब का फूल लेकर आएंगी और जो इससे असहमत हैं वो चमेली का फूल लेकर आएंगी ।  उनका मानना था भेड़ें भेड़ियों से बहुत त्रस्त हैं इसलिए कभी उनके साथ जाने का समर्थन नहीं करेंगी । लेकिन परिणाम इससे ठीक विपरीत निकला । गुलाब के फूलों की संख्या चमेली के फूलों से कहीं ज्यादा निकली ।   इसके बाद बुधई ने मुख्य शाषक की शपथ ली । बुधई ने आते ही अपने लिए एक बड़ी गुफा की मांग की । जैसे ही भेड़ों को ये पता चला, हाहाकार मच गया । भेड़ों ने चुनाव के पहले और चुनाव के बाद के बुधई में काफी अंतर पाया । इतना होने के बाद बुधई ने कहा ,”मुझे पुरे जंगल का सञ्चालन करने के लिए एक गुफा तो चाहिए ही लेकिन आम भेड़ अगर इससे सहमत नहीं हैं तो मैं गुफा नहीं लूंगा, यहीं आपके बीच में रहूँगा । ” बुधई के पद सँभालते ही लोग अपनी मांगो का पुलिंदा लेकर उसके पास पहुँचने लगे । बुधई ने घोषणा की भेड़ों को सप्ताह के पहले तीन दिन चारा मुफ्त में दिया जायेगा । भेड़ों को सरकारी तालाब से पीने के लिए कर चुकाना पड़ता है, अब से उन्हें दिन में सात लीटर पानी मुफ्त दिया जायेगा।  चूँकि भेड़ों के बालों को काटने से उन्हें ठण्ड लगने कि सम्भावना अधिक रहती है अतः आज के बाद से उनके बालों को काटने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया जायेगा । बंदरों ने पेड़ों पर अधिक ऊपर तक जाकर उछलकूद करने की मांग की तो उनकी मांग भी मान ली गयी। इस पर पेड़ों पर अधिक ऊंचाई पर रहने वाले पक्षियों ने जब व्यवधान की शिकायत की तो बंदरों को उनके बच्चों की कसम दिलाई गयी कि वो अधिक ऊंचाई तक जाकर उत्पात नहीं करेंगे ।   ऐसे ही रोज रोज नयी शिकायतों और मांगो का अम्बार बुधई और उसकी सरकार के आगे आने लग गया । इसमें कुछ मांगे मान ली गई और कुछ पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने का आश्वासन दिया गया । इस बीच कुछ अप्रिय घटनाएं घटी जिससे भेड़ों में ‘आम भेड़ दल’ के बारे में गलत सन्देश गया । समिति ने फैसला किया इस जंगल में शाषन करते हुए बाकी जंगलों में हो रहे चुनावों में हिस्सा ले पाना सम्भव नहीं है । अतः सरकार छोड़ने का कोई तरीका खोजा जाए। यहाँ पर फिर जांचपाल ‘आम भेड़ दल’ के काम आया। सरकार में इतने दिन रहने के बाद भी भेड़ों को ‘जांचपाल अधिनियम’ के बारे में विस्तारपूर्वक नहीं बताया गया ।  समिति ने फैसला किया जांचपाल के नाम से फिर से भेड़ों से मत माँगा जायेगा और इसी के नाम पर सरकार की बलि दे दी जाये । और ‘अभेद’ ने ठीक वैसा ही किया भी । भेड़ों ने जो एक बदलाव की उम्मीद देखी थी, वह उम्मीद धूमिल हो गयी । भेड़िये अपनी गुफाओं में जमे रहे ।   (लेखकीय टिप्पणी : भेड़ और भेड़ियों के संघर्ष की कहानी आगे भी जारी रहेगी । इस कहानी का वर्तमान राजनीतिक स्थिति से कोई सम्बन्ध नहीं है ।  
  • -9

भेड़ें और भेड़िए श्री हरिशंकर परसाई जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कहानी है . इन्होने व्यंगात्मक शैली में वर्तमान लोकतांत्रिक व्यव्स्था का उपहास किया है.कहानी के आरम्भ में वन के पशुओं को लगा कि अब वे प्रजातंत्र की शासन व्यवस्था संभाल सकते हैं .उन्हें लगने लगा की उनका जीवन इतना विकसित हो गया है कि अब उन्हें लोकतंत्र की शासन व्यवस्था को अपना लेना चाहिए . जहाँ पर सभी नियम एवं कानून लागू होने चाहिए . सभी ने मिलकर नीचे किया की वन - प्रदेश में प्रजातंत्र में प्रजातंत्र की स्थापना हो .पशु समाज में आनंद की लहर दौड़ पड़ी .

वन प्रदेश में भेड़ों की संख्या अधिक थी . उन्होंने सोचा कि अब उनका भय दूर हो जाएगा .वे अपने प्रतिनिधित्व द्वारा नियम - कानून बनवाएंगी जिससे की कोई भी जीवधारी किसी अन्य जीव को न मारे .उधर दूसरी तरफ भेड़िये यह सोचकर दुखी हो रहे थे की अब उन पर संकट आने वाला है क्योंकि उनकी संख्या कम थी .भेड़ों को संख्या अधिक होने के कारण पंचायत में उन्ही का बहुमत होगा .यदि बहुमत से भेड़ें यह कानून बनवा देंगी कि कोई पशु किसी को न मारे ,न खाए तो उनका क्या होगा ? वे क्या खायेंगे ,भेड़िये तो भूखें मर जायेंगे . एक बूढ़े सियार को भेड़िये की चिंता का कारण समझ में आ गया .उसने भेड़िये को बहुमत में आने का मार्ग दिखाया .उसने भेड़िये को रूप बदलकर भेड़ों के सामने पेश किया .बूढ़े सियार ने तीन रेंज सियोर्ण की सहायता से भेड़िये के लिए प्रचार किया . उन चारों सियारों से रंग बदल कर ऐसा समां बाधा की सभी भेड़ों को विश्वास हो गया की भेड़िये परमात्मा के रूप हैं,त्यागी हैं ,परोपकारी हैं ,दयावान है. वे भेड़ें की बातों में आकर भेड़ियों की सरकार बनवा देती है .बहुमत पाने के बाद भेड़िये ने भेड़ों के भलाई ने लिए पहला कानून बनवाया . इसमें कहा गया कि

हर भेड़िये को सवेरे नाश्ते के लिए भेड़ का एक मुलायम बच्चा दिया जाए , दोपहर के भोजन में एक पूरी भेड़ तथा शाम को स्वास्थ्य के ख्याल से कम खाना चाहिए, इसलिए आधी भेड़ दी जाए |

 

भेड़ें और भेड़िए कहानी शीर्षक की सार्थकता

 

किसी भी कहानी का शीर्षक उसका सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है .हम उसके सहारे कथा के विस्तार को जान पाते हैं . प्रस्तुत कहानी एक प्रतीकात्मक कहानी है जिसमें भेड़ों को जनता तथा सियार को भेड़ियों को चालक नेताओं का प्रतिक बना कर व्यंगात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है . कहानी में भेड़ें आम जनता की तरह हमेशा अपने नेताओं पर विश्वास कर लेती हैं और अंत में ठगी जाती है . दूसरी तरह संत का रूप धरे नेतागण है जो ढोंग और चल करके जनता को हमेशा धोखा देते रहते हैं . रंगे हुए सियार नेताओं के आसपास बने रहने वाले कवि ,पत्रकार ,नेता और धर्मगुरु आदि के रूप में रहते हैं . जो भ्रष्ट नेताओं का सहयोग देते हैं तथा उनका प्रचार करते हैं . अतः इस कहानी के माध्यम से लेखक ने आज की राजनीति पर करारा व्यंग किया है . शीर्षक की दृष्टि से देखा जाए तो यह अत्यंत उचित व साथक है .

  • 1
What are you looking for?