mudo prakriti ki aur , bado manushyata ki aur ab kha dusro ke dukh mein dukhi hone vale path ke aadhar par spachth karo

मित्र!
आपके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है।-
मनुष्य ने अपने स्वार्थवश प्रकृति का दोहन किया है। विकास के नाम पर वह ऐसा आगे बड़ा कि उसने प्रकृति को बहुत नुकसान पहुँचाया है। इस तरह उसने प्रकृति के अस्तित्व को तहस-नहस कर दिया है। यह मनुष्य ने स्वार्थ के वश होकर किया है। अतः हमें अपने स्वार्थ को छोड़कर प्रकृति की ओर बढ़ना चाहिए। उस मानवता के भाव को पुनः जीवित करना है, जिसे हमने स्वार्थ के कारण समाप्त कर दिया है। मानवता ही हमें प्रत्येक जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, पेड़-पौधों तथा साथी मनुष्यों के प्रति दयाभाव रखने के लिए प्रेरित करती है।

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