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Board Paper of Class 10 2007 Hindi (SET 1) - Solutions

(i) इस प्रश्न-पत्र के चार खण्ड हैं क, ख, ग और घ।
(ii) चारों खण्डों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
(iii) यथासंभव प्रत्येक खण्ड के उत्तर क्रमश: दीजिए।


  • Question 1

    निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

    यहाँ के लोगों को अपनी खूबसूरती नज़र नहीं आती, मगर पराए के सौंदर्य को देखकर मोहित हो जाते हैं। जिस देश में जन्म पाने के लिए मैक्समूलर ने जीवन-भर प्रार्थना की उस देश के निवासी आज जर्मनी और विलायत जाना –स्वर्ग जाना –जैसा अनुभव करते हैं। ऐसे लोगों को प्राचीन 'गुरू शिष्य संबंध' की महिमा सुनाना गधे को गणित सिखाने जैसा व्यर्थ प्रयास ही हो सकता है।

    एक बार सुप्रसिद्ध भारतीय पहलवान गामा मुंबई आए। उन्होंने विश्व के सारे पहलवानों को कुश्ती में चैलेंज दिया। अखबारों में यह समाचार प्रकाशित होते ही एक फ़ारसी पत्रकार ने उत्सुकतावश उनके निकट पहुँच कर उनसे पूछा - "साहब, विश्व के किसी भी पहलवान से लड़ने के लिए आप तैयार हैं तो आप अपने अमुक शिष्य से ही लड़कर विजय प्राप्त करके दिखाएँ?" गामा आजकल के शिक्षा-क्रम में रँगे नहीं थे। इसलिए उन्हें इन शब्दों ने हैरान कर दिया। वे मुँह फाड़कर उस पत्रकार का चेहरा ताकते ही रह गए। बाद में धीरे से कहा - "भाई साहब मैं हिंदुस्तानी हूँ। हमारा अपना एक निजी रहन-सहन है। शायद आप इससे परिचित नहीं हैं। जिस लड़के का आपने नाम लिया, वह मेरे पसीने की कमाई, मेरा खून है और मेरे बेटे से भी अधिक प्यारा है। इसमें और मुझमें फर्क ही कुछ नहीं है। मैं लड़ा या वह लड़ा दोनों बराबर ही होगा। हमारी अपनी इस परंपरा को आप समझने की चेष्टा कीजिए। हम लोगों को वंश-परंपरा ही अधिक प्रिय है। ख्याति और प्रभाव में हम सदा यही चाहते हैं कि हम अपने शिष्यों से कम प्रमुख रहें। यानी हम यही चाहेंगे कि संसार में जितना नाम मैंने कमाया उससे कहीं अधिक मेरे शिष्य कमाएँ। मुझे लगता है, आप हिंदुस्तानी नहीं हैं।"

    भारत में गुरू-शिष्य संबंध का वह भव्य रूप आज साधुओं, पहलवानों और संगीतकारों में ही थोड़ा ही सही, पाया जाता है। भगवान रामकृष्ण बरसों योग्य शिष्य को पाने के लिए प्रार्थना करते रहें। उनके जैसे व्यक्ति को भी उत्तम शिष्य के लिए रो-रो कर प्रार्थना करनी पड़ी। इसी से समझा जा सकता है कि एक गुरू के लिए उत्तम शिष्य कितना महँगा और महत्वपूर्ण है। संतानहीन रहना उन्हें दु:ख नहीं देता पर बगैर शिष्य के रहने के लिए वे एकदम तैयार नहीं होते। इस संबंध में भगवान ईसा का एक कथन सदा स्मरणीय है। उन्होंने कहा था, "मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूँ वह भी करेगा, वरन् इससे भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूँ।" यही बात है, गांधी जी बनने की क्षमता जिनमें है, जिन्हें गांधी जी अच्छे लगते हैं और वे ही उनके पीछे चलते हैं। विवेकानंद की रचना सिर्फ उन्हें पसंद आएगी जिनमें विवेकानंद बनने की अद्भुत शक्ति निहित है। 

    कविता के मर्मज्ञ और रसिक स्वयं कवि से अधिक महान होते हैं। संगीत के पागल सुनने वाले ही स्वयं संगीतकार से अधिक संगीत का रसास्वादन करते हैं। यहाँ पूज्य नहीं, पुजारी ही श्रेष्ठ है। यहाँ सम्मान पाने वाले नहीं, सम्मान देने वाले महान हैं। स्वयं पुष्प में कुछ नहीं है, पुष्प का सौंदर्य उसे देखने वाले की दृष्टि में है। दुनिया में कुछ नहीं है। जो कुछ भी है हमारी चाह में, हमारी दृष्टि में है। यह अद्भुत भारतीय व्याख्या अजीब-सी लग सकती है पर हमारे पूर्वज सदा इसी पथ के यात्री रहे हैं।


    उत्तम गुरू में जाति-भावना भी नहीं रहती। कितने ही मुसलमान पहलवानों के हिंदू चेले हैं और हिंदू संगीतकारों के मुसलमान शिष्य रहे हैं। यहाँ परख गुण की, साधना की और प्रतिभा की होती है। भक्ति और श्रद्धा की ही कीमत है, न कि जाति संप्रदाय, आचार-विचार या धर्म की। मुझे पढ़ाया-लिखाया था –एक विद्वान मुसलमान ने ही। उन्होंने कभी नहीं सोचा कि यह हिंदू है और इसे मुसलमान बनाना चाहिए। पुराने ज़माने में मौलवी लोग बड़े-बड़े रामायणी होते थे और आज भी देहातों में भरत मियां, रामू मियां, रंजीत मियां आदि अधिक संख्या में दिखाई देते हैं।


    (i) किन लोगों को गुरू-शिष्य संबंध की महिमा समझाना असंभव कार्य है? (2)

    (ii) गामा ने पत्रकार को हैरान होकर क्यों देखा? (2)

    (iii) सच्चा गुरू अपने शिष्य के विषय में किस प्रकार का विचार रखता है? (2)

    (iv) वर्तमान समय में गुरू-शिष्य संबंध का थोड़ा-बहुत भव्य रूप कहाँ दिखाई देता है? (2)

    (v) कविता के मर्मज्ञ और रसिक कवि से भी महान क्यों होते हैं? (2)

    (vi) सच्चे गुरू के लिए किस चीज़ का अधिक महत्त्व होता है? (2)

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  • Question 2

    निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –

    देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं।
    रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं।।
    काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं।
    भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं।।
    हो गए इक आन में उनके बुरे दिन भी भले।
    सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।।
    व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर।
    वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर।।
    गरजती जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर।
    आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लहर।।
    भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं।।
    चिलचिलाती धूप को जो चाँदनी देवें बना।
    काम पड़ने पर करें जो शेर का भी सामना।।
    जो कि हँस-हँस के चबा लेते हैं लोहे का चना।
    है कठिन कुछ भी नहीं जिनके है जी में यह ठना।।
    कोस कितने ही चलें पर वे कभी थकते नहीं।
    कौन सी है गाँठ जिसको खोल वे सकते नहीं।।
    पर्वतों को काटकर सड़कें बना देते हैं वे।।
    गर्भ में जल-राशि के बेड़ा चला देते हैं वे।
    जंगलों में भी महा-मंगल रचा देते हैं वे।।
    भेद नभ-तल का उन्होंने बहुत बतला दिया।
    है उन्होंने ही निकाली तार की सारी क्रिया।।

    (i) किस प्रकार के व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं? (2)

    (ii) कर्मवीर या परिश्रमी व्यक्ति को कौन-सी परिस्थितियाँ विचलित नहीं कर सकतीं? (2)

    (iii) 'चिलचिलाती धूप को जो चाँदनी देवें बना' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (2)

    (iv) उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने क्या सन्देश दिया है? (1)

    (v) इन पंक्तियों में से कोई दो मुहावरे छाँटकर लिखिए। (1)

    अथवा

    बहुत रोकता था सुखिया को,
    'न जा खेलने को बाहर'
    नहीं खेलना रूकता उसका
    नहीं ठहरती वह पल-भर।
    मेरा हृदय काँप उठता था,
    बाहर गई निहार उसे।
    यही मनाता था कि बचा लूँ
    किसी भाँति इस बार उसे।
    भीतर जो डर रहा छिपाए,
    हाय! वही बाहर आया।
    एक दिवास सुखिया के तन को,
    ताप-तप्त मैंने पाया।
    ज्वर में विह्वल हो बोली वह,
    क्या जानूँ किस डर से डर।
    मुझको देवी के प्रसाद का,
    एक फूली ही दो लाकर।
    क्रमश: कंठ क्षीण हो आया,
    शिथिल हुए अवयव सारे।
    दीप-धूप से आमोदित था
    मंदिर का आँगन सारा,
    गूँज रही थी भीतर-बाहर
    मुखरित उत्सव की धारा।
    भक्त-वृंद मधुर कंठ से,
    गाते थे सभक्ति मुद-मय
    'पतित-तारिणी, पाप-हारिणी
    माता तेरी जय-जय-जय!'
    'पतित-तारिणी, तेरी जय-जय'
    मेरे मुख से भी निकला,
    बिना बढ़े ही मैं आगे को
    जाने किस बल से ढिकला।
    मेरे दीप-फूल लेकर व
    अंबा को अर्पित करके,
    दिया पुजारी ने प्रसाद जब
    आगे को अंजलि भरके,
    भूल गया उसका लेना झट,
    परम लाभ-सा पाकर मैं।
    सोचा बेटी को माँ के ये
    पुण्य पुष्प दूँ जाकर मैं।
    सिंहिपौर तक भी आंगन से,
    नहीं पहुंचने मैं पाया,
    सहसा यह सुन पड़ा कि – 'कैसे
    यह अछूत भीतर आया?
    पकड़ो, देखो भाग न जाए,
    बना धूर्त यह है कैसा,
    साफ-स्वच्छ परिधान किए है,
    भले मानुषों के जैसा!
    पापी ने मंदिर में घुसकर
    किया अनर्थ बड़ा भारी,
    कलुषित कर दी है मंदिर की
    चिरकालिक शुचिता सारी।'
    कुछ न सुना भक्तों ने, झट से
    मुझे घेरकर पकड़ लिया,
    मार-मराकर मुक्के-घूंसे
    धम-से नीचे गिरा दिया।
    मेरे हाथों से प्रसाद भी
    बिखर गया हा! सब-का-सब,
    हाय! अभागी बेटी, तुझ तक
    कैसे पहुँच सके यह अब!
    अंतिम बार गोद में बेटी,
    तुझको ले न सका मैं हा!
    एक फूल माँ के प्रसाद का
    तूझको दे न सका मैं हा!

    (i) सुखिया के पिता के मन में किस प्रकार का भय विद्यमान था? (1)
    (ii) ज्वर की स्थिति में सुखिया ने अपने पिता से क्या कहा? (1)
    (iii) पुजारी से प्रसाद लेकर सुखिया के पिता ने क्या सोचा? (2)
    (iv) भक्तों ने सुखिया के पिता की पिटाई क्यों की? (2)
    (v) प्रसाद धरती पर बिखर जाने पर सुखिया के पिता के मन में क्या विचार उभरा? (2)

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  • Question 3

    किसी एक विषय पर निबन्ध 300 शब्दों में निबन्ध लिखिए –


    (क) जीवन में अवसर का उपयोग करने वाले व्यक्ति ही सफलता प्राप्त करते हैं। अवसर की पहचान कर उसका सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए। अच्छे अवसर बार-बार लौटकर नहीं आते वास्तव में अवसर का सदुपयोग ही सफलता का मूल मंत्र है।

    (ख) भोर का सौन्दर्य सबसे निराला होता है। भोर के विविध दृश्य मानव मन को आनंद से भर देते हैं। भोर में प्रकृत्ति का रूप सर्वाधिक मनमोहक होता है। यह समय भ्रमण के लिए उपयुक्त होता है। भोर में जागने वाले व्यक्ति आलस्य से दूर रहते हैं तथा अपना प्रत्येक कार्य समय पर करते हैं।

    (ग) परोपकार ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है। परोपकारी को परोपकार करते समय स्वयं भी सुख की अनुभूति होती है। व्यक्ति को परोपकार करते समय भेदभाव नहीं करना चाहिए। वस्तुत: परोपकार करने वाला व्यक्ति ही मनुष्य कहलाने का अधिकारी होता है।

    (घ) हमारे समाज में अनेक बुरी प्रथाएँ प्रचलित हैं। दहेज प्रथा सर्वाधिक निंदनीय कुप्रथा है। यह एक प्राचीन प्रथा है। परन्तु आधुनिक युग में इसका स्वरूप बहुत विकृत हो गया है। इस प्रथा के अनेक दुष्परिणाम हैं। कानून की दृष्टि में दहेज लेना और देना अपराध है। इसे रोकने के लिए हमें कटिबद्ध होना चाहिए।

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  • Question 4

    'नवभारत टाइम्स' नई दिल्ली के संपादक को दीक्षा की ओर से एक पत्र लिखिए, जिसमें सड़क-परिवहन के नियमों की उपेक्षा करने वालों के प्रति पुलिस के ढीले-ढाले रवैये पर चिंता व्यक्त की गई हो।


    अथवा


    फैशन में समय और धन का अपव्यय करने वाली छोटी बहन को बड़ी बहन सुषमा की ओर से एक प्रेरणाप्रद पत्र लिखिए।

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  • Question 5

    निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त क्रियाओं के भेद लिखिए –

    (i) श्याम सोता है।

    (ii) वह पत्र लिखेगा।

    (iii) अध्यापक ने विद्यार्थियों से प्राचार्य को राष्ट्रगीत सुनवाया।

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  • Question 6

    निर्देशानुसार उत्तर दीजिए –

    (i) खूब मन लगाकर पढ़ो ताकि परीक्षा में प्रथम आओ।

    (समुच्चय बोधक शब्द छाँटिए)

    (ii) वह प्रात: उठकर स्नान करता है।

    (क्रिया विशेषण छाँटिए)

    (iii) आज धन के बिना कोई नहीं पूछता।

    (संबंध बोधक अव्यय छाँटिए)

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  • Question 7

    निम्नलिखित वाक्यों को मिलाकर एक-एक सरल, संयुक्त और मिश्र वाक्य बना कर लिखिए –

    (i) रमन के खेत में गायें चर रही थीं।

    (ii) उसने उन्हें खेत से निकाल दिया।

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  • Question 8

    निर्देशानुसार वाच्य परिवर्तन कीजिए –

    (i) हम इतनी दूर नहीं रह सकते। (भाववाच्य में)

    (ii) मुझसे पत्र नहीं लिखा गया। (कर्तृवाच्य में)

    (iii) भारतवासी महात्मा गांधी को भूल नहीं सकता। (कर्मवाच्य में)

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  • Question 9

    (i) निम्नलिखित समासों का विग्रह करते हुए उनका भेद भी लिखिए – (2)

    महाकालेश्वर, दासी पुत्र

    (ii) निम्नलिखित शब्दों के एकाधिक अर्थ लिखिए – (1)

    हरि, मित्र

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  • Question 10

    निम्नलिखित काव्याशों में से किसी एक के नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

    (क) ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।

    अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।

    पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।

    ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।

    प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोर्यौ, दृष्टि न रूप परागी।

    'सुरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।।

    (i) गोपियों ने उद्धव को 'बड़भागी' क्यों कहा है? (2)

    (ii) गोपियों ने उद्धव की भाग्यहीनता को स्पष्ट करने के लिए कौन से उदाहरण दिए? (2)

    (iii) अन्तिम पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार बताइए। (2)

    अथवा

    (ख) कितना प्रामाणिक था उसका दुख

    लड़की को दान में देते वक्त

    जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो 

    लड़की अभी सयानी नहीं थी

    अभी इतनी भोली सरल थी

    कि उसे सुख का आभास तो होता था

    लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था

    पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की

    कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

    (i) माँ का दुख प्रामाणिक क्यों था? (2)

    (ii) लड़की को माँ की अन्तिम पूँजी क्यों कहा गया है? (2)

    (iii) लड़की की मानसिक स्थिति का वर्णन कीजिए। (2)


     

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  • Question 11

    निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं तीन का उत्तर दीजिए – (3 + 3 + 3)

    (i) लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?

    (ii) देव कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?

    (iii) फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है? 'अट नहीं रही है' कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

    (iv) 'छाया मत छूना' कविता में कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?

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  • Question 12

    निम्नलिखित काव्यांशों में से किसी एक को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –


    (क) यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उडाऊँ मैं।

    भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।

    उज्जवल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।

    अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।

    मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।

    आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

    (i) अन्य लोगों ने कवि के साथ कैसा व्यवहार किया? (1)

    (ii) इन पंक्तियों में से कोई दो तत्सम शब्द छाँटकर लिखिए। (1)

    (iii) 'अरे खिल-खिलाकर हँसते होने वाली उन बातों की' पंक्ति में किस अलंकार का प्रयोग किया गया है? (1)

    (iv) इन पंक्तियों का सम्बन्ध आधुनिक काल की किस काव्यधारा से है? (1)

    (v) 'मधुर चाँदनी रातों की उज्जवल गाथा' से कवि का क्या आशय है? (1)

    अथवा

    (ख) नाथ संभुधनु भंजनिहारा।

    होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।

    आयेसु काह कहिअ किन मोही।

    सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।

    सेवकु सो जो करै सेवकाई।

    अरिकरनी करि करिअ लराई।।

    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा।

    सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।

    (i) इन पंक्तियों में किस छन्द का प्रयोग किया गया है? (1)

    (ii) इन पंक्तियों में किस भाषा का प्रयोग किया गया है? (1)

    (iii) 'आयेसु काह कहिअ किन मोही' में किस अलंकार का प्रयोग किया गया है? (1)

    (iv) अन्तिम पंक्ति में किस अलंकार का प्रयोग किया गया है? (1)

    (v) परशुराम ने श्रीराम से क्या कहा? (1)

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  • Question 13

    निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक गद्यांश के नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

    (क) मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची। जिसे कहते हैं बस्ट। और सुंदर थी। नेताजी सुंदर लग रहे थे। कुछ-कुछ मासूम और कमसिन। फ़ौजी वर्दी में। मूर्ति को देखते ही 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो...' वगैरह याद आने लगते थे। इस दृष्टि से यह सफ़ल और सराहनीय प्रयास था। केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे से गुज़रे और चौराहे पर पान खाने रूके तभी उन्होंने इसे लक्षित किया और उनके चेहरे पर एक कौतुकभरी मुसकान फैल गई। वाह भई! यह आइडिया भी ठीक है। मूर्ति पत्थर की, लेकिन चश्मा रियल!

    जीप कस्बा छोड़कर आगे बढ़ गई तब भी हालदार साहब इस मूर्ति के बारे में ही सोचते रहे, और अंत में इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कुल मिलाकर कस्बे के नागरिकों का यह प्रयास सराहनीय ही कहा जाना चाहिए। महत्त्व मूर्ति के रंग-रूप या कद का नहीं, उस भावना का है वरना तो देश-भक्ति भी आजकल मज़ाक की चीज़ होती जा रही है।

    (i) नेताजी की मूर्ति को देखकर क्या याद आने लगता था? (2)

    (ii) नेताजी की मूर्ति की कौन-सी कमी खटकती थी? (2)

    (iii) हालदार साहब किस निष्कर्ष पर पहुँचे? (2)

    अथवा

    (ख) पर यह पितृ-गाथा मैं इसलिए नहीं गा रही कि मुझे उनका गौरव-गान करना है, बल्कि मैं तो यह देखना चाहती हूँ कि उनके व्यक्तित्व की कौन-सी खूबी और खामियाँ मेरे व्यक्तित्व के ताने-बाने में गुँथी हुई हैं या कि अनजाने-अनचाहे किए उनके व्यवहार ने मेरे भीतर किन ग्रंथियों को जन्म दे दिया। मैं काली हूँ। बचपन में दुबली और मरियल भी थी। गोरा रंग पिता जी की कमज़ोरी थी सो बचपन में मुझसे दो साल बड़ी, खूब गोरी स्वस्थ और हँसमुख बहिन सुशीला से हर बात में तुलना और फिर उसकी प्रशंसा ने ही क्या मेरे भीतर ऐसे गहरे हीन-भाव की ग्रंथि पैदा नहीं कर दी कि नाम, सम्मान और प्रतिष्ठा पाने के बावजूद आज तक मैं उससे उबर नहीं पाई? आज भी परिचय करवाते समय जब कोई कुछ विशेषता लगाकर मेरी लेखकीय उपलब्धियों का ज़िक्र करने लगता है तो मैं संकोच से सिमट ही नहीं जाती बल्कि गड़ने-गड़ने को हो आती हूँ। शायद अचेतन की किसी पर्त के नीचे दबी इसी हीन-भावना के चलते मैं अपनी किसी भी उपलब्धि पर भरोसा नहीं कर पाती.... सब कुछ मुझे तुक्का ही लगता है। पिता जी के जिस शक्की स्वभाव पर मैं कभी भन्ना-भन्ना जाती थी, आज एकाएक अपने खंडित विश्वासों की व्यथा के नीचे मुझे उनके शक्की स्वभाव की झलक ही दिखाई देती है.... बहुत 'अपनों' के हाथों विश्वासघात की गहरी व्यथा से उपजा शक। होश सँभालने के बाद से ही जिन पिता जी से किसी-न-किसी बात पर हमेशा मेरी टक्कर ही चलती रही, वे तो न जाने कितने रूपों में मुझमें हैं... कहीं कुँठाओं के रूप में, कहीं प्रतिक्रिया के रूप में, तो कहीं प्रतिच्छाया के रूप में। केवल बाहरी भिन्नता के आधार पर अपनी परंपरा और पीढ़ियों को नकारने वालों को क्या सचमुच इस बात का बिलकुल अहसास नहीं होता कि उनका आसन्न अतीत किस कदर उनके भीतर जड़ जमाए बैठा रहता है! समय का प्रवाह भले ही हमें दूसरी दिशाओं से बहाकर ले जाए... स्थितियों का दवाब भले ही हमारा रूप बदल दे, हमें पूरी तरह उससे मुक्त तो नहीं कर सकता!

    (i) लेखिका द्वारा अपने पिता के स्वभाव और जीवन की घटनाओं का वर्णन करना अर्थात् पितृगाथा गाने का क्या उद्येश्य है? (2)

    (ii) पिताजी की किस बात ने लेखिका में हीनता की ग्रन्थि उत्पन्न कर दी? (2)

    (iii) होश संभालने के बाद से ही लेखिका के अपने पिता से किस प्रकार के सम्बन्ध थे? (2)

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  • Question 14

    निम्नलिखित में से किन्ही तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए – (3 + 3 + 3)

    (i) "फटा, सुर न बख्शे, लुंगिया का क्या है, आज फटी है कल सी जाएगी।" बिस्मिल्ला खाँ ने यह शब्द किससे और क्यों कहे?

    (ii) भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?

    (iii) फ़ादर की उपस्थिति लेखक को देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?

    (iv) कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?

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  • Question 15

    (i) "एक कहानी यह भी" की लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का और किस रूप में प्रभाव पड़ा? (3)

    (i) "एम.ए., बी.ए., शास्त्री और आचार्य होकर पुरूष जो स्त्रियों पर हंटर फटकारते हैं और डंडों से उनकी खबर लेते हैं, वह सारा सदाचार पुरूषों की पढ़ाई का सुफल है।" लेखक के इस कथन में तत्कालीन समाज के पूरूषों की मानसिकता पर अपने विचार लिखिए।  (2)

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  • Question 16

    निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर दीजिए –

    (i) प्राकृतिक सौन्दर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?

    (ii) हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरूपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरूपयोग कहाँ-कहाँ और किस तरह हो रहा है?

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  • Question 17

    निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्ही तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए – (2 + 2 + 2)

    (i) 'साना साना हाथ जोड़ि...' रचना के आधार पर बताइए कि प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?

    (ii) 'एही ठैंया झुलनी हेरानी हो रामा।' का प्रतीकार्थ समझाइए।

    (iii) जार्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है?

    (iv) कठोर हृदय समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?

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