Board Paper of Class 10 2010 Hindi (SET 3) - Solutions
(ii) चारों खण्डों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
(iii) यथासंभव प्रत्येक खण्ड के उत्तर क्रमश: दीजिए।
- Question 1
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
पृथ्वी के समस्त मनुष्यों की जाति एक ही है – मनुष्य जाति। मानव का मानव से न कोई भेद होता है, न हो सकता है। संसार के किसी भी भाग का रहने वाला क्यों न हो वह, उसका एक मात्र परिचय यह है कि वह मानव है, इन्सान है। प्रारंभ में मानव में किसी प्रकार की भेदभावना नहीं थी। स्वयं मानव ने पारस्परिक भेद की रचना की है। अधिकार-बोध से उसमें स्वार्थ की भावना का जन्म हुआ, फिर इससे अन्य अनेक भेदों की दीवारें उठ खड़ी हो गईं। दुनिया के तमाम झगड़ों की जड़ में यही स्वार्थ भावना है, जिससे अपने पराए बन जाते हैं।
गौतम बुद्ध, ईसामसीह, मुहम्मद, चैतन्य, नानक आदि महापुरुषों ने संसार में शान्ति व्यवस्था एवं सद्भावना के प्रसार के लिए धर्म के माध्यम से मनुष्य को परमकल्याण के पथ का निर्देश किया, किन्तु बाद में यही धर्म मनुष्य के हाथ में एक अस्त्र बन गया। धर्म के नाम पर रक्तपात हुआ। मनुष्य जाति विपन्न हो गई। पर धीरे-धीरे मनुष्य शुभबुद्धि से धर्मोन्माद के नशे से हुए और हो सकने वाले अनर्थ को समझने लग गया है।
धार्मिक विश्वासजनित भेदभावना अब धरती पर से धीरे-धीरे मिटती जा रही है। विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ संचार के साधनों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। फलत: देशों में दूरियाँ कम हो गई हैं। अब एक देश दूसरे देश को अच्छी तरह जानने लग गया है। और विभिन्न देशों के आपसी मनमुटाव दूर होने लगे हैं। फिर भी संसार में वर्णभेद की समस्या आज भी किसी न किसी रुप में वर्तमान है। कभी नस्ल, कभी रंग, कभी वर्ण, कभी जाति के नाम पर कुछ लोग बर्बरतापूर्ण व्यवहार करते रहे हैं। भेदभाव के इस कलंक को भी मिटाना होगा।
जो हो, संसार के सब मनुष्य एक हैं। समस्त भेद कृत्रिम हैं और मिट सकते हैं। अमृत की संतान है मानव। विश्व के समस्त जीवों में श्रेष्ठतम है और उसमें असीम शक्ति है। अपेक्षा है, शिक्षा के व्यापक प्रसार की। शिक्षा मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरुकता उत्पन्न करने का एक मात्र साधन है। इससे हम अपने को सब प्रकार की संकीर्णता के कलुष से मुक्त करके अपनी दृष्टि को निर्मल और विस्तीर्ण बना सकते हैं।
(i) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए। (1)
(ii) मानव में पारस्परिक भेद की भावना कैसे आई? (1)
(iii) महापुरुषों ने मनुष्य को कल्याण पथ का निर्देश कैसे और क्यों दिया? (2)
(iv) धर्म मनुष्य के हाथ में एक अस्त्र कैसे बन गया? (1)
(v) धार्मिक भेदभावना अब क्यों मिटती जा रही है? (1)
(vi) आज वर्णभेद किन रुपों में दिखाई पड़ता है? (1)
(vii) शिक्षा के व्यापक प्रसार की अपेक्षा क्यों है? (1)
(viii) देशों में दूरियाँ कम क्यों हो गई हैं? (1)
(ix) संधि-विच्छेद कीजिए – धर्मोन्माद, स्वार्थ (1)
(x) उपसर्ग और प्रत्यय अलग कीजिए – संकीर्ण, महत्त्व (1)
(xi) मिश्र वाक्य में बदलिए – समस्त भेद कृत्रिम हैं और मिट सकते हैं। (1)
- Question 2
निम्नलिखित काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
साँझ-सकारे चंदा-सूरज करते जिसकी आरती
उस मिट्टी में मन का सोना घोल दो –
ग्रह-नक्षत्रों! भारत की जय बोल दो।
वह माली है, वह खुशबू है, हम चमन हैं,
वह मंदिर है, वह मूरत है, हम नमन हैं,
छाया है माथे पर आशीर्वाद-सा,
वह संस्कृतियों के मीठे संवाद-सा,
उसकी देहरी अपना माथा टेककर
हम उन्नत होते हैं उसको देखकर।
ऋतुओ! उसको नित नूतन परिधान दो,
झुलस रही है धरती, सावन दान दो।
सरल नहीं परिवर्तन में मन ढालना
हर पत्थर से भागीरथी निकालना
हम अनेकता में भी तो हैं एक ही,
हर संकट में जीता सदा विवेक ही
कृति, आकृति, संस्कृति, भाषा के वास्ते
बने हुए हैं मिलते-जुलते रास्ते
आस्थाओं की टकराहट से लाभ क्या?
मंज़िल को हम देंगे भला जवाब क्या?
एक हार में गूँथे मणि-माणिक हैं हम –
बिखरे फूलों को भी इसमें जोड़ दो,
ग्रह-नक्षत्रों! भारत की जय बोल दो।(i) चाँद और सूरज कब, किसकी आरती करते हैं? (1)
(ii) 'वह' शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है? (1)
(iii) ऋतुओं से क्या निवेदन किया गया है? (1)
(iv) कवि को भारत किन-किन रुपों में दिखाई देता है? (1)
(v) परिवर्तन आसान नहीं होता – यह समझाने के लिए कवि ने किसका उदाहरण दिया है? (1)
(vi) उन पंक्तियों को उद्धृत कीजिए, जिनका आशय है – 'यदि हमारी एकता पर कोई संकट आता है तो हम विवेक-बुद्धि से उस पर विजय प्राप्त करते हैं'। (1)
(vii) आशय स्पष्ट कीजिए – एक हार में गूँथे मणि-माणिक हैं हम
बिखरे फूलों को भी इसमें जोड़ दो। (2)
अथवा
जिसमें स्वदेश का मान भरा,
आजादी का अभिमान भरा,
जो निर्भय पथ पर बढ़ आए,
जो महाप्रलय में मुस्काए,
जो अंतिम दम तक रहे डटे,
दे दिए प्राण, पर नहीं हटे,
जो देश-राष्ट्र की वेदी पर,
देकर मस्तक हो गए अमर,
दे रक्त-तिलक भारत ललाट –
उनको मेरा पहला प्रणाम।
फिर वे जो आँधी बन भीषण,
कर रहे आज दुश्मन से रण,
बाणों के पवि-संधान बने,
जो ज्वालामुख-हिमवान बने,
हैं टूट रहे रिपु के गढ़ पर,
बाधाओं के पर्वत चढ़कर,
जो न्याय-नीति को अर्पित हैं,
भारत के लिए समर्पित हैं,
कीर्तित जिससे यह धरा-धाम,
उन वीरों को मेरा प्रणाम।
श्रद्धानत कवि का नमस्कार,
दुर्लभ है छंद-प्रसून हार,
इसको बस वे ही पाते हैं,
जो चढ़े काल पर आते हैं,
हुंकृति से विश्व कँपाते हैं,
पर्वत का दिल दहलाते हैं,
रण में त्रिपुरान्तक बने शर्व,
कर ले जो रिपु का गर्व खर्व,
जो अग्नि-पुत्र, त्यागी, अकाम–
उनको अर्पित मेरा प्रणाम।(i) कवि सबसे पहला प्रणाम किन्हें करता है? (2)
(ii) निडर होकर रणक्षेत्र में डटे रहने वालों की किन विशेषताओं को कवि ने बताया है? (1)
(iii) रक्त-तिलक देने का क्या तात्पर्य है? (1)
(iv) दुश्मन से वीर किन रुपों में लड़ते हैं? (1)
(v) धरती का यश फैलने की बात किन पंक्तियों में कही गई है? (1)
(vi) कवि की कवितारुपी फूलों का हार कौन पाते हैं? (1)
(vii) आशय स्पष्ट कीजिए – जो ज्वालामुख हिमवान बने। (1)
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- Question 10
निम्नलिखित काव्यांशों में से किसी एक को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले
फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है
ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले
बाँध लो पने सर से कफ़न साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।(क) कौन, किससे अपेक्षा कर रहा है? (1)
(ख) कवि किनकी राहें वीरान नहीं होने की बात कहता है? (1)
(ग) "ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले" से कवि का क्या तात्पर्य है? (2)
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए – (2)
बाँध लो अपने सर से कफ़न साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।अथवा
सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही,
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
अहा! वही उदार है परोपकार जो करे
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।(क) कवि किसे वास्तव में मनुष्य मानता है? (1)
(ख) महाविभूति किसे कहा गया है और क्यों? (2)
(ग) उदार किसे कहा जाएगा? (1)
(घ) भाव स्पष्ट कीजिए – विरुद्धवाद बुद्ध का दया प्रवाह में बहा
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विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहा? (2)
- Question 11
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
तताँरा एक नेक और मददगार व्यक्ति था। सदैव दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहता। अपने गाँव वालों को ही नहीं अपितु समूचे दीपवासियों की सेवा करना अपना कर्त्तव्य समझता था। उसके इस त्याग की वजह से वह चर्चित था। सभी उसका आदर करते। वक्त मुसीबत में उसे स्मरण करते और वह भागा-भागा वहाँ पहुँच जाता। उसका व्यक्तित्व तो आकर्षक था ही, साथ ही आत्मीय स्वभाव की वजह से लोग उसके करीब रहना चाहते। पारंपरिक पोशाक के साथ वह अपनी कमर में सदैव एक लकड़ी की तलवार बाँधे रहता। लोगों का मत था, बावजूद लकड़ी की होने पर, उस तलवार में अद्भुत दैवीय शक्ति थी।
(क) तताँरा का आदर सभी लोग क्यों करते थे?
(ख) लोग उसके करीब क्यों रहना चाहते थे?
(ग) तताँरा की तलवार के बारे में लोगों का क्या विश्वास था?
अथवा
पहले ही दिन उसकी अवहेलना शुरु हो जाती। मैदान की वह सुखद हरियाली, हवा के हलके-हलके झोंके, फुटबाल की वह उछलकूद, कबड्डी के वह दाँव-घात, वॉलीबाल की वह तेज़ी और फ़ुरती, मुझे अज्ञात और अनिवार्य रुप से खींच ले जाती और वहाँ जाते ही मैं सब कुछ भूल जाता। वह जानलेवा टाइम-टेबिल, वह आँखफोड़ पुस्तकें, किसी की याद न रहती और भाई साहब को नसीहत और फ़जीहत का अवसर मिल जाता। मैं उनके साये से भागता, उनकी आँखों से दूर रहने की चेष्टा करता, कमरे में इस तरह दबे पाँव आता कि उन्हें खबर न हो। उनकी नज़र मेरी ओर उठी और मेरे प्राण निकले। हमेशा सिर पर एक नंगी तलवार-सी लटकती मालूम होती। फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेलकूद का तिरस्कार न कर सकता था।
(क) टाइम टेबिल की अवहेलना के क्या-क्या कारण थे?
(ख) भाईसाहब को नसीहत और फज़ीहत का अवसर क्यों मिल जाता था?
(ग) लेखक भाईसाहब के साए से क्यों भागना चाहता था?
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