निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
संसार में शान्ति, व्यवस्था और सद्भावना के प्रसार के लिए बुद्ध, ईसामसीह, मुहम्मद, चैतन्य, नानक आदि महापुरूषों ने धर्म के माध्यम से मनुष्य को परम कल्याण के पथ पर निर्देश किया, किन्तु बाद में यही धर्म मनुष्य के हाथ में एक अस्त्र बन गया। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि धर्म के नाम पर पृथ्वी पर जितना रक्तपात हुआ है उतना और किसी कारण से नहीं। मनुष्य जाति विपन्न हो गई। पर धीरे-धीरे मनुष्य सहज शुभ बुद्धि से धर्मोन्माद तथा धर्म के नशे से हो चुके और हो सकने वाले अनर्थ को समझने लग गया है। यह आशाप्रद बात है।
भौगोलिक सीमा और धार्मिक विश्वास जनित भेदभाव अब धरती से शनै: शनै: मिटते जा रहे हैं। विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ संचार के साधनों में अभूतपूर्व अभिवृद्धि हुई है, जिससे देशों के बीच दूरियाँ कम हो गई हैं। अब एक देश दूसरे देश को अच्छी तरह जानने लग गया है। फिर, संयुक्त राष्ट्र संघ, जो संसार के 159 देशों का एक मिलाजुला मंच है, अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना को फैलाने तथा विभिन्न देशों के आपसी मनमुटाव को दूर करने में पर्यत्नशील है। फिर भी संसार में वर्णभेद की समस्या आज भी वर्तमान है। यह बड़े दुख की बात है कि जब हम इक्कीसवीं सदी की ओर अग्रसर हो रहे हैं और पृथ्वी के सभी प्रगतिशील देस अखण्ड विश्व की कल्पना के कार्यान्वयन में लगे हैं, तब भी वर्णभेद का यह कलंक दुनिया से दूर नहीं हुआ।
जो, हो, संसार के सब मनुष्य एक हैं। समस्त भेद कृत्रिम हैं और वे मिटाए जा सकते हैं। अमृत संतान है मानव! विश्व के समस्त जीवों में श्रेष्ठतम है। असीम शक्ति है उसमें। अपनी बुद्धि और मन से वह असाध्य-साधन कर सकता है। आवश्यकता है शिक्षा के व्यापक प्रसार की, जो मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरुकता उत्पन्न करने का एक मात्र साधन है। इसी बोध के द्वारा वह अपने को सब प्रकार की संकीर्णता के कलुष से मुक्त करके अपनी दृष्टि को निर्मल और विस्तीर्ण बना सकता है। संसार के सभी विकासशील व्यक्ति इस दिशा में सक्रिय हैं।
(i) धर्म की भूमिका के बारे में अपने अनुभव से मनुष्य ने क्या सीखा? (2)
(ii) संचार साधनों की अभिवृद्धि का क्या परिणाम हुआ है? (2)
(iii) वर्णभेद की समस्या का संसार पर क्या प्रभाव पड़ा है? (2)
(iv) गद्यांश में कुछ महापुरूषों का उल्लेख क्यों किया गया है? (1)
(v) मनुष्य को समस्त जीवों में श्रेष्ठ क्यों माना जाता है? (2)
(vi) मानवीय मूल्यों के प्रति जागरूकता कैसे बढ़ाई जा सकती है? (1)
(vii) 'अत्याचार' शब्द से विशेषण बनाकर लिखिए। (1)
(viii) इस गद्यांश को उपयुक्त शीर्षक दीजिए। (1)
VIEW SOLUTIONनिम्नलिखित काव्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर संक्षेप मे लिखिए –
(क) अपने नहीं अभाव मिटा पाया जीवन भर
पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता हूँ।
तूफानों-भूचालों की भयप्रद छाया में,
मेरे 'मैं' की संज्ञा भी इतनी व्यापक है
इसमें मुझ-से अगणित प्राणी आ जाते हैं।
मुझको अपने पर अदम्य विश्वास रहा है
मैं खंडहर को फिर से महल बना सकता हूँ।
जब-जब भी मैंने खंडहर आबाद किए हैं,
प्रलय-मेघ भूचाल देख मुझको शरमाए।
मैं मज़दूर मुझे देवों की बस्ती से क्या
मैंने अगणित बार धरा पर स्वर्ग बनाए।
(i) उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में किसका महत्त्व प्रतिपादित किया गया है? (1)
(ii) स्वर्ग के प्रति मजदूर की विरक्ति का क्या कराण है? (2)
(iii) किन कठिन परिस्थितियों में भी उसने अपनी निर्भयता प्रकट की है? (2)
(iv) 'मेरे 'मैं' की संज्ञा भी इतनी व्यापक है, इसमें मुझसे अगणित प्राणी आ जाते हैं।'
उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट करके लिखिए। (2)
(v) अपनी शक्ति और क्षमता के प्रति उसने क्या कहकर अपना आत्म विश्वास प्रकट किया है? (1)
अथवा
(ख) निर्भय स्वागत करो मृत्यु का,
मृत्यु एक है विश्राम-स्थल।
जीव जहाँ से फिर चलता है,
धारण कर नव जीवन संबल।
मृत्यु एक सरिता है, जिसमें
श्रम से कातर जीव नहाकर
फिर नूतन धारण करता है,
काया रूपी वस्त्र बहाकर।
सच्चा प्रेम वही है जिसकी–
तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर।
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर।
(i) कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय बने रहने के लिए क्यों कहा है? (1)
(ii) मृत्यु को विश्राम-स्थल क्यों कहा गया है? (1)
(iii) कवि ने मृत्यु की तुलना किससे और क्यों की है? (2)
(iv) मृत्यु रूपी सरिता में नहाकर जीव में क्या परिवर्तन आ जाता है? (2)
(v) सच्चे प्रेम की क्या विशेषता बताई गई है और उसे कब निष्प्राण कहा गया है? (2)
प्रधानाचार्य को आवेदन पत्र लिखिए जिसमें पुस्तकालय में कुछ और हिन्दी पत्रिकाएँ मँगाने के लिए निवेदन किया गया हो
अथवा
अपने घर चोरी हो जाने की सूचना देते हुए पुलिस थाना-अधिकारी को पत्र लिखिए।
दिए गए संकेत-बिन्दुओं के आधार पर लगभग 100 शब्दों में एक सुगठित अनुच्छेद लिखिए।
(क) भारत के राष्ट्रीय पर्वः
(i) पर्व और उनके अनेक रूप; जातीय, सामाजिक, राष्ट्रीय आदि।
(ii) राष्ट्रीय पर्व-उनके मनाने के ढंग (स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, महात्मा गांधी का जन्म-दिवस)
(iii) इन पर्वों का संदेश
(ख) मित्रताः
(i) मित्रता क्या है?इसका महत्व-सच्ची मित्रता,
(ii) अच्छे मित्र, बुरे मित्र की पहचान।
(iii) मित्रता से लाभ
(ग) कम्प्यूटरः
(i) कम्प्यूटर क्या है?
(ii) भारत में कम्प्यूटर- इसका उपयोग तथा इससे लाभ।
(iii) दैनिक जीवन में कम्पूयटर।
VIEW SOLUTIONनिम्नलिखित काव्यांशों में से किसी एक को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।
मनौ नीलमनि-सल पर आतपु पर्यौ प्रभात।।
कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।।
बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ।।
1. पीला वस्त्र धारण करने के बाद, श्रीकृष्ण के सौंदर्य पर कवि ने क्या कल्पना की है? (2)
2. गोपियों ने श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा ली? (2)
3. भयंकर गरमी ने संसार को तपोवन कैसे बना दिया? (2)
अथवा
केवल इतना रखना अनुनय –
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
मत शिर होकर सुख के दिन में
तब सुख पहचानूँ छिन-छिन में।
दु:ख रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करूणामय
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।।
1. कवि और कविता का नाम लिखिए। (1)
2. कवि किससे 'अनुनय' कर रहा है? (1)
3. दुख की स्थिति आने पर कवि ईश्वर से क्या प्रार्थना करता है? (2)
4. 'वहन कर सकूँ इसको निर्भय' का अर्थ स्पष्ट कीजिए। (2)
निम्नलिखित गद्याशों में से किसी एक को ध्यान पूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) सूरज समुद्र से लगे क्षितिज तले डूबने को था। समुद्र से ठंडी बयारें आ रही थीं। पक्षियों की सायंकालीन चहचहाहटें शनै: शनै: क्षीण होने को थीं। उसका मन शांत था। विचारमग्न तताँरा समुद्री बालू पर बैठकर सूरज की अंतिम रंग-बिरंगी किरणों को समुद्र पर निहारने लगा। तभी कहीं पास से उसे मधुर गीत गूँजता सुनाई दिया। गीत मानो बहता हुआ उसकी तरफ़ आ रहा हो। बीच-बीच में लहरों का संगीत सुनाई देता। गायन इतना प्रभावी था कि वह अपनी सुध-बुध खोने लगा। लहरों के एक प्रबल वेग ने उसकी तंद्रा भंग की। चैतन्य होते ही वह उधऱ बढ़ने को विवश हो उठा जिधर से अब भी गीत के स्वर बह रहे थे। वह विकल-सा उस तरफ़ बढ़ता गया। अंतत: उसकी नज़र एक युवती पर पड़ी जो ढलती हुई शाम के सौंदर्य में बेसुध, एकटक समुद्र की देह पर डूबते आकर्षक रंगों को निहारते हुए गा रही थी। यह एक श्रृंगारगीत था।
(i) समुद्र तट का प्राकृतिक वातावरण कैसा था? (2)
(ii) किसकी तंद्रा कैसे भंग हो गई? (2)
(iii) विकलता में आगे बढ़कर तताँरा ने क्या देखा? (2)
अथवा
(ख)
ग्वालियर से बंबई की दूरी ने संसार को काफी कुछ बदल दिया है। वर्सोवा में जहाँ आज मेरा घर है, पहले यहाँ दूर तक जंगल था। पेड़ थे, परिंदे थे और दूसरे जानवर थे। अब यहाँ समंदर के किनारे लंबी-चौड़ी बस्ती बन गई है। इस बस्ती ने न जानें कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा डाल लिया है। इनमें से दो कबूतरों ने मेरे फ्लैट के एक मचान में घोंसला बना लिया है। बच्चे अभी छोटे हैं। उनके खिलाने-पिलाने की ज़िम्मेदारी अभी बड़े कबूतरों की है। वे दिन में कई-कई बार आते-जाते हैं। और क्यों न आएँ जाएँ! आखिर उनका भी घर है। लेकिन उनके आने-जाने से हमें परेशानी भी होती है। वे कभी किसी चीज़ को गिराकर तोड़ देते हैं। कभी मेरी लाइब्रेरी में घुसकर कबीर या मिर्ज़ा गालिब को सताने लगते हैं। इस रोज़-रोज़ की परेशानी से तंग आकर मेरी पत्नी ने उस जगह, जहाँ उनका आशियाना था, एक जाली लगा दी है, उनके बच्चों को दूसरी जगह कर दिया है। उनके आने की खिड़की को भी बंद किया जाने लगा है। खिड़की के बाहर अब दोनों कबूतर रात भर खामोश और उदास बैठे रहते हैं।
(i) वर्सोवा में अब क्या बदलाव आ गए हैं? (2)
(ii) दो कबूतरों की वजह से लेखक को क्या परेशानी होने लगी? (2)
(iii) लेखक की पत्नी ने कबूतरों से परेशान होकर क्या किया? (2)
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