Board Paper of Class 10 Hindi (B) Term-I 2021 Delhi(SET 4) (Series: JSK/2)- Solutions
सामान्य निर्देश :
निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पूरी तरह से पालन कीजिए :
(i) इस प्रश्न-पत्र में कुल 55 प्रश्न दिये गए हैं जिनमें से केवल 40 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
(ii) सभी प्रश्न समान अंक के हैं।
(iii) प्रश्न-पत्र में तीन खंड हैं - खंड - क, ख और ग।
(iv) खंड-क में 20 प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्न संख्या 1 से 20 में से 10 प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार देने हैं।
(v) खंड-ख में 21 प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्न संख्या 21 से 41 में से 16 प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार देने हैं।
(vi) खंड-ग में 14 प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्न संख्या 41 से 55 तक सभी प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार देने हैं।
(vii) प्रत्येक खंड में निर्देशानुसार परीक्षार्थियों द्वारा पहले उत्तर किए गए वांछित प्रश्नों का ही मूल्यांकन किया जाएगा।
(viii) प्रत्येक प्रश्न के लिए केवल एक ही सही विकल्प है । एक विकल्प से अधिक उत्तर देने पर अंक नहीं दिये जाएंगे।
(ix) ऋणात्मक अंकन नहीं होगा।
निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पूरी तरह से पालन कीजिए :
(i) इस प्रश्न-पत्र में कुल 55 प्रश्न दिये गए हैं जिनमें से केवल 40 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
(ii) सभी प्रश्न समान अंक के हैं।
(iii) प्रश्न-पत्र में तीन खंड हैं - खंड - क, ख और ग।
(iv) खंड-क में 20 प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्न संख्या 1 से 20 में से 10 प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार देने हैं।
(v) खंड-ख में 21 प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्न संख्या 21 से 41 में से 16 प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार देने हैं।
(vi) खंड-ग में 14 प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्न संख्या 41 से 55 तक सभी प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार देने हैं।
(vii) प्रत्येक खंड में निर्देशानुसार परीक्षार्थियों द्वारा पहले उत्तर किए गए वांछित प्रश्नों का ही मूल्यांकन किया जाएगा।
(viii) प्रत्येक प्रश्न के लिए केवल एक ही सही विकल्प है । एक विकल्प से अधिक उत्तर देने पर अंक नहीं दिये जाएंगे।
(ix) ऋणात्मक अंकन नहीं होगा।
- Question 1
‘प्रबुद्ध भारत’, दिसंबर 1898, को दिए एक साक्षात्कार में विवेकानंदजी ने बताया कि मैंने पृथ्वी के दोनों गोलार्धों का पर्यटन किया है। मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि जिस जाति ने सीता को उत्पन्न किया, चाहे वह उसकी कल्पना ही क्यों न हो, उस जाति में स्त्री जाति के लिए इतना अधिक सम्मान और श्रद्दा है, जिसकी तुलना संसार में हो ही नहीं सकती। पाश्चात्य स्त्रियाँ ऐसे कई कानूनी बंधनों से जकड़ी हुई हैं, जिनसे भारतीय स्त्रियाँ सर्वधा मुक्त एवं अपरिचित हैं। भारतीय समाज में निश्चय ही दोष और अपवाद दोनों हैं। पर यही स्थिति पाश्चात्य समाज की भी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार के सभी भागों में प्रीती, कोमलता और साधुता को अभिव्यक्त करने के प्रयत्न चल रहे हैं। भारतीय स्त्री-जीवन में बहुत सी समस्याएँ हैं और ये समस्याएँ बड़ी गंभीर हैं। परन्तु इनमें से कोई भी ऐसी नहीं हैं जो ‘शिक्षा’ रूपी मंत्र-बल से हल न हो सके। पर हाँ, शिक्षा की सच्ची कल्पना हममें से कदाचित ही किसी ने की हो। मैं मानता हूँ कि सच्ची शिक्षा वह है जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। वह शब्दों का केवल रटना मात्र न हो। यह व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का ऐसा विकास हो जिससे वह स्वयमेव स्वतंत्रतापूर्वक विचार करके उचित निर्णय कर सके। भारतीय स्त्रियों की ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को बली-भाँति निभा सकें और संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई और मीरा आदि महान भारतीय देवियों की परंपरा को आगे बढ़ा सकें, ‘वीर-प्रसूता’ बन सकें।
गद्यांश में समस्त विश्व द्वारा किए जाने वाले किन प्रयत्नों का उल्लेख है ?
VIEW SOLUTION
(a) स्त्रियों को धार्मिक-सामाजिक शिक्षा दिए जाने के लिए किए जाने वाले प्रयास ।
(b) लोगो में प्रेम, सज्जनता एवं संवेदनशीलता के विकास के लिए किए गए प्रयास ।
(c) मानव जाति को धर्म-राजनिति की शिक्षा हेतु किए जाने वाले प्रयास ।
(d) समस्त समस्याओं का समाधान धर्म में तलाशने हेतु किए जाने वाले प्रयास ।
- Question 2
‘प्रबुद्ध भारत’, दिसंबर 1898, को दिए एक साक्षात्कार में विवेकानंदजी ने बताया कि मैंने पृथ्वी के दोनों गोलार्धों का पर्यटन किया है। मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि जिस जाति ने सीता को उत्पन्न किया, चाहे वह उसकी कल्पना ही क्यों न हो, उस जाति में स्त्री जाति के लिए इतना अधिक सम्मान और श्रद्दा है, जिसकी तुलना संसार में हो ही नहीं सकती। पाश्चात्य स्त्रियाँ ऐसे कई कानूनी बंधनों से जकड़ी हुई हैं, जिनसे भारतीय स्त्रियाँ सर्वधा मुक्त एवं अपरिचित हैं। भारतीय समाज में निश्चय ही दोष और अपवाद दोनों हैं। पर यही स्थिति पाश्चात्य समाज की भी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार के सभी भागों में प्रीती, कोमलता और साधुता को अभिव्यक्त करने के प्रयत्न चल रहे हैं। भारतीय स्त्री-जीवन में बहुत सी समस्याएँ हैं और ये समस्याएँ बड़ी गंभीर हैं। परन्तु इनमें से कोई भी ऐसी नहीं हैं जो ‘शिक्षा’ रूपी मंत्र-बल से हल न हो सके। पर हाँ, शिक्षा की सच्ची कल्पना हममें से कदाचित ही किसी ने की हो। मैं मानता हूँ कि सच्ची शिक्षा वह है जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। वह शब्दों का केवल रटना मात्र न हो। यह व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का ऐसा विकास हो जिससे वह स्वयमेव स्वतंत्रतापूर्वक विचार करके उचित निर्णय कर सके। भारतीय स्त्रियों की ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को बली-भाँति निभा सकें और संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई और मीरा आदि महान भारतीय देवियों की परंपरा को आगे बढ़ा सकें, ‘वीर-प्रसूता’ बन सकें।
“भारतीय समाज में निश्चय ही दोष और अपवाद दोनों हैं ।” विवेकानंद ने ऐसा क्यों कहा ?
(a) भारतीय समाज में महिलाओं के शोषित और सशक्त दोनों रुप होने के कारण ।
(b) भारतीय समाज में महिलाओं का बहुत अधिक शोषण होने के कारण ।
(c) भारतीय समाज में महिलाओं के अत्यधिक धार्मिक होने के कारण ।
(d) भारतीय समाज में महिलाओं के अत्यधिक अशिक्षित होने के कारण । VIEW SOLUTION
- Question 3
‘प्रबुद्ध भारत’, दिसंबर 1898, को दिए एक साक्षात्कार में विवेकानंदजी ने बताया कि मैंने पृथ्वी के दोनों गोलार्धों का पर्यटन किया है। मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि जिस जाति ने सीता को उत्पन्न किया, चाहे वह उसकी कल्पना ही क्यों न हो, उस जाति में स्त्री जाति के लिए इतना अधिक सम्मान और श्रद्दा है, जिसकी तुलना संसार में हो ही नहीं सकती। पाश्चात्य स्त्रियाँ ऐसे कई कानूनी बंधनों से जकड़ी हुई हैं, जिनसे भारतीय स्त्रियाँ सर्वधा मुक्त एवं अपरिचित हैं। भारतीय समाज में निश्चय ही दोष और अपवाद दोनों हैं। पर यही स्थिति पाश्चात्य समाज की भी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार के सभी भागों में प्रीती, कोमलता और साधुता को अभिव्यक्त करने के प्रयत्न चल रहे हैं। भारतीय स्त्री-जीवन में बहुत सी समस्याएँ हैं और ये समस्याएँ बड़ी गंभीर हैं। परन्तु इनमें से कोई भी ऐसी नहीं हैं जो ‘शिक्षा’ रूपी मंत्र-बल से हल न हो सके। पर हाँ, शिक्षा की सच्ची कल्पना हममें से कदाचित ही किसी ने की हो। मैं मानता हूँ कि सच्ची शिक्षा वह है जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। वह शब्दों का केवल रटना मात्र न हो। यह व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का ऐसा विकास हो जिससे वह स्वयमेव स्वतंत्रतापूर्वक विचार करके उचित निर्णय कर सके। भारतीय स्त्रियों की ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को बली-भाँति निभा सकें और संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई और मीरा आदि महान भारतीय देवियों की परंपरा को आगे बढ़ा सकें, ‘वीर-प्रसूता’ बन सकें।
‘सच्ची शिक्षा’ की परिकल्पना मे शामिल नही हैं –
(a) धर्म-शिक्षा के माध्यम से सामाजिक समस्याओं का समाधान।
(b) महिलाओं की शिक्षा-प्राप्ति में समान रुप से भागीदारी।
(c) अभय, सजगता एवं कर्तव्यबोध के विकास हेतु शिक्षा।
(d) स्वतंत्र सोच एवं निर्णय क्षमता के विकास हेतु शिक्षा। VIEW SOLUTION
- Question 4
‘प्रबुद्ध भारत’, दिसंबर 1898, को दिए एक साक्षात्कार में विवेकानंदजी ने बताया कि मैंने पृथ्वी के दोनों गोलार्धों का पर्यटन किया है। मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि जिस जाति ने सीता को उत्पन्न किया, चाहे वह उसकी कल्पना ही क्यों न हो, उस जाति में स्त्री जाति के लिए इतना अधिक सम्मान और श्रद्दा है, जिसकी तुलना संसार में हो ही नहीं सकती। पाश्चात्य स्त्रियाँ ऐसे कई कानूनी बंधनों से जकड़ी हुई हैं, जिनसे भारतीय स्त्रियाँ सर्वधा मुक्त एवं अपरिचित हैं। भारतीय समाज में निश्चय ही दोष और अपवाद दोनों हैं। पर यही स्थिति पाश्चात्य समाज की भी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार के सभी भागों में प्रीती, कोमलता और साधुता को अभिव्यक्त करने के प्रयत्न चल रहे हैं। भारतीय स्त्री-जीवन में बहुत सी समस्याएँ हैं और ये समस्याएँ बड़ी गंभीर हैं। परन्तु इनमें से कोई भी ऐसी नहीं हैं जो ‘शिक्षा’ रूपी मंत्र-बल से हल न हो सके। पर हाँ, शिक्षा की सच्ची कल्पना हममें से कदाचित ही किसी ने की हो। मैं मानता हूँ कि सच्ची शिक्षा वह है जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। वह शब्दों का केवल रटना मात्र न हो। यह व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का ऐसा विकास हो जिससे वह स्वयमेव स्वतंत्रतापूर्वक विचार करके उचित निर्णय कर सके। भारतीय स्त्रियों की ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को बली-भाँति निभा सकें और संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई और मीरा आदि महान भारतीय देवियों की परंपरा को आगे बढ़ा सकें, ‘वीर-प्रसूता’ बन सकें।
हर समस्या के समाधान का राम-बाग है –
(a) सर्व शिक्षा
(b) स्त्री शिक्षा
(c) सामाजिक शिक्षा
(d) राजनैतिक शिक्षा VIEW SOLUTION
- Question 5
‘प्रबुद्ध भारत’, दिसंबर 1898, को दिए एक साक्षात्कार में विवेकानंदजी ने बताया कि मैंने पृथ्वी के दोनों गोलार्धों का पर्यटन किया है। मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि जिस जाति ने सीता को उत्पन्न किया, चाहे वह उसकी कल्पना ही क्यों न हो, उस जाति में स्त्री जाति के लिए इतना अधिक सम्मान और श्रद्दा है, जिसकी तुलना संसार में हो ही नहीं सकती। पाश्चात्य स्त्रियाँ ऐसे कई कानूनी बंधनों से जकड़ी हुई हैं, जिनसे भारतीय स्त्रियाँ सर्वधा मुक्त एवं अपरिचित हैं। भारतीय समाज में निश्चय ही दोष और अपवाद दोनों हैं। पर यही स्थिति पाश्चात्य समाज की भी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार के सभी भागों में प्रीती, कोमलता और साधुता को अभिव्यक्त करने के प्रयत्न चल रहे हैं। भारतीय स्त्री-जीवन में बहुत सी समस्याएँ हैं और ये समस्याएँ बड़ी गंभीर हैं। परन्तु इनमें से कोई भी ऐसी नहीं हैं जो ‘शिक्षा’ रूपी मंत्र-बल से हल न हो सके। पर हाँ, शिक्षा की सच्ची कल्पना हममें से कदाचित ही किसी ने की हो। मैं मानता हूँ कि सच्ची शिक्षा वह है जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। वह शब्दों का केवल रटना मात्र न हो। यह व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का ऐसा विकास हो जिससे वह स्वयमेव स्वतंत्रतापूर्वक विचार करके उचित निर्णय कर सके। भारतीय स्त्रियों की ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को बली-भाँति निभा सकें और संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई और मीरा आदि महान भारतीय देवियों की परंपरा को आगे बढ़ा सकें, ‘वीर-प्रसूता’ बन सकें।
‘वीर-प्रसूता’ का आशय है –
(a) अपना निर्णय स्वयं लेने वाली
(b) परंपराओं का निर्वाह करने वाली
(c) वीरों को जन्म देने वाली
(d) कर्तव्य का बोध रखने वाली VIEW SOLUTION
- Question 6
सोना तपने पर कंचन बनता है। ठीक यही बात आदमी के साथ भी है। हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि दुनिया में सबसे दुर्लभ आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आदमी को ऊँचा माना गया है और वह इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है, विवेक है। संसार में जितनी चीजें आविष्कृत हुई हैं, सब बुद्धि के ज़ोर पर हुई है। आज हज़ारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से ही संभव हुआ है। जिसके पास इतनी चीज़ें हों वह धन या दुनियादारी की चीज़ों के पीछे भटके, यह उचित नहीं है। बुद्धि का प्रयोग उसे बराबर आगे बढ़ने के लिए करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्होंने मानवता की बड़ी सेवा की है। उनका नाम अमर हो गया है। धन का खोट आदमी का तब मालूम होता है, जब वह खरा बनने लगता है। खरा बनने का अर्थ यह नहीं है कि इंसान घर-बार छोड़ दे, जंगल में चला जाए और भगवान के चरणों में लौ लगाकर बैठा रहे। बहतु-से लोग ऐसा करते भी है, पर यह रास्ता सबका रास्ता नहीं है। दुनिया में ज़्यादातर लोगों का वास्ता अपने घर के लोगों से ही नहीं, दूसरों के साथ भी पड़ता है। उत्तम पुरुष वह है, जो अपनी बुराइयों को दूर करता है और नीति का जीवन बिताते हुए अपने देश और समाज के काम आता है, सबसे प्रेम करता है और सबके सुख-दुःख में काम आता है।
बुद्धि-विवेक का प्रयोग किस कार्य में होना चाहिए?
(a) सफर को आसान बनाने वाली खोजों में।
(b) अधिक से अधिक धन-दौलत जुटान में।
(c) निरंतर स्वयं का विकास करते रहने में।
(d) भौतिक सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने में।
VIEW SOLUTION
- Question 7
सोना तपने पर कंचन बनता है। ठीक यही बात आदमी के साथ भी है। हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि दुनिया में सबसे दुर्लभ आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आदमी को ऊँचा माना गया है और वह इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है, विवेक है। संसार में जितनी चीजें आविष्कृत हुई हैं, सब बुद्धि के ज़ोर पर हुई है। आज हज़ारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से ही संभव हुआ है। जिसके पास इतनी चीज़ें हों वह धन या दुनियादारी की चीज़ों के पीछे भटके, यह उचित नहीं है। बुद्धि का प्रयोग उसे बराबर आगे बढ़ने के लिए करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्होंने मानवता की बड़ी सेवा की है। उनका नाम अमर हो गया है। धन का खोट आदमी का तब मालूम होता है, जब वह खरा बनने लगता है। खरा बनने का अर्थ यह नहीं है कि इंसान घर-बार छोड़ दे, जंगल में चला जाए और भगवान के चरणों में लौ लगाकर बैठा रहे। बहतु-से लोग ऐसा करते भी है, पर यह रास्ता सबका रास्ता नहीं है। दुनिया में ज़्यादातर लोगों का वास्ता अपने घर के लोगों से ही नहीं, दूसरों के साथ भी पड़ता है। उत्तम पुरुष वह है, जो अपनी बुराइयों को दूर करता है और नीति का जीवन बिताते हुए अपने देश और समाज के काम आता है, सबसे प्रेम करता है और सबके सुख-दुःख में काम आता है।
सभी प्राणियों में मानव को सर्वश्रेष्ठ क्यों माना गया है?
(a) उसके पास मौजूद बुद्धि और विवेक के कारण।
(b) पशुओं से भिन्न विशेष शारीरिक संरचना के कारण।
(c) उसके पास मौजूद धन और दौलत के कारण।
(d) उसके द्वारा की गई विविध खोजों के कारण। VIEW SOLUTION
- Question 8
सोना तपने पर कंचन बनता है। ठीक यही बात आदमी के साथ भी है। हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि दुनिया में सबसे दुर्लभ आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आदमी को ऊँचा माना गया है और वह इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है, विवेक है। संसार में जितनी चीजें आविष्कृत हुई हैं, सब बुद्धि के ज़ोर पर हुई है। आज हज़ारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से ही संभव हुआ है। जिसके पास इतनी चीज़ें हों वह धन या दुनियादारी की चीज़ों के पीछे भटके, यह उचित नहीं है। बुद्धि का प्रयोग उसे बराबर आगे बढ़ने के लिए करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्होंने मानवता की बड़ी सेवा की है। उनका नाम अमर हो गया है। धन का खोट आदमी का तब मालूम होता है, जब वह खरा बनने लगता है। खरा बनने का अर्थ यह नहीं है कि इंसान घर-बार छोड़ दे, जंगल में चला जाए और भगवान के चरणों में लौ लगाकर बैठा रहे। बहतु-से लोग ऐसा करते भी है, पर यह रास्ता सबका रास्ता नहीं है। दुनिया में ज़्यादातर लोगों का वास्ता अपने घर के लोगों से ही नहीं, दूसरों के साथ भी पड़ता है। उत्तम पुरुष वह है, जो अपनी बुराइयों को दूर करता है और नीति का जीवन बिताते हुए अपने देश और समाज के काम आता है, सबसे प्रेम करता है और सबके सुख-दुःख में काम आता है।
धन की निरर्थकता का अहसास कब होता है?
(a) जब उससे मनचाही वस्तु नहीं मिल पाती है।
(b) घर-संसार का त्याग कर संन्यास ग्रहण करने पर।
(c) यह पता चलने पर कि इससे प्राप्त सुख वास्तविक नहीं है।
(d) यह पता चलने पर कि इसकी मौजूदगी खतरे का कारण हे। VIEW SOLUTION
- Question 9
सोना तपने पर कंचन बनता है। ठीक यही बात आदमी के साथ भी है। हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि दुनिया में सबसे दुर्लभ आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आदमी को ऊँचा माना गया है और वह इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है, विवेक है। संसार में जितनी चीजें आविष्कृत हुई हैं, सब बुद्धि के ज़ोर पर हुई है। आज हज़ारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से ही संभव हुआ है। जिसके पास इतनी चीज़ें हों वह धन या दुनियादारी की चीज़ों के पीछे भटके, यह उचित नहीं है। बुद्धि का प्रयोग उसे बराबर आगे बढ़ने के लिए करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्होंने मानवता की बड़ी सेवा की है। उनका नाम अमर हो गया है। धन का खोट आदमी का तब मालूम होता है, जब वह खरा बनने लगता है। खरा बनने का अर्थ यह नहीं है कि इंसान घर-बार छोड़ दे, जंगल में चला जाए और भगवान के चरणों में लौ लगाकर बैठा रहे। बहतु-से लोग ऐसा करते भी है, पर यह रास्ता सबका रास्ता नहीं है। दुनिया में ज़्यादातर लोगों का वास्ता अपने घर के लोगों से ही नहीं, दूसरों के साथ भी पड़ता है। उत्तम पुरुष वह है, जो अपनी बुराइयों को दूर करता है और नीति का जीवन बिताते हुए अपने देश और समाज के काम आता है, सबसे प्रेम करता है और सबके सुख-दुःख में काम आता है।
धर्मग्रंथ किसे दुर्लभ बताते हैं?
(a) अमर होने को
(b) बुद्धि-विवेक को
(c) भौतिक उपलब्धि को
(d) मानव तन को VIEW SOLUTION
- Question 10
सोना तपने पर कंचन बनता है। ठीक यही बात आदमी के साथ भी है। हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि दुनिया में सबसे दुर्लभ आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आदमी को ऊँचा माना गया है और वह इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है, विवेक है। संसार में जितनी चीजें आविष्कृत हुई हैं, सब बुद्धि के ज़ोर पर हुई है। आज हज़ारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से ही संभव हुआ है। जिसके पास इतनी चीज़ें हों वह धन या दुनियादारी की चीज़ों के पीछे भटके, यह उचित नहीं है। बुद्धि का प्रयोग उसे बराबर आगे बढ़ने के लिए करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्होंने मानवता की बड़ी सेवा की है। उनका नाम अमर हो गया है। धन का खोट आदमी का तब मालूम होता है, जब वह खरा बनने लगता है। खरा बनने का अर्थ यह नहीं है कि इंसान घर-बार छोड़ दे, जंगल में चला जाए और भगवान के चरणों में लौ लगाकर बैठा रहे। बहतु-से लोग ऐसा करते भी है, पर यह रास्ता सबका रास्ता नहीं है। दुनिया में ज़्यादातर लोगों का वास्ता अपने घर के लोगों से ही नहीं, दूसरों के साथ भी पड़ता है। उत्तम पुरुष वह है, जो अपनी बुराइयों को दूर करता है और नीति का जीवन बिताते हुए अपने देश और समाज के काम आता है, सबसे प्रेम करता है और सबके सुख-दुःख में काम आता है।
‘श्रेष्ठ’ कौन है?
(a) प्रेम और मानवता में विश्वास करने वाला।
(b) निरंतर अपना आर्थिक विकास करने वाला।
(c) भक्ति और शक्ति में विश्वास करने वाला।
(d) निरंतर अपना शैक्षणिक विकास करने वाला।
VIEW SOLUTION
- Question 11
मध्यप्रदेश के देवास जनपद में लोगों के संकल्प और पुरुषार्थ से 1067 तालाब बनाए गए। पर्याप्त संख्या में तालाब न होने से मध्यप्रदेश में पानी की कमी बनी रहती है लेकिन देवास में पानी की किल्लत खत्म हो गई है। ऐसा ही संकल्प् अगर देश के हर गाँव और कस्बे में रहने वाले लोगों में आ जाए तो पानी को लेकर हाहाकार की स्थिति किसी गाँव में नहीं होगी। परंपरागत तालाब संस्कृति को पुर्नजीवित किए बिना हर गाँव में तालाब संस्कृति का पुनर्वास नहीं हो सकता। आज देश के 254 जिलों में पानी की भारी किल्लत है। इससे यहाँ की आबादी को उसकी जरूरत के मुताबिक पानी नहीं मिल पा रहा है। पानी का अत्यधिक दोहन और पानी की खपत बढ़ने के कारण पिछले 30-40 वर्षों में पानी की समस्या तेजी से बढ़ी है। एक तरफ तो पानी की प्रति व्यक्ति माँग निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर देश की आबादी भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में पानी की माँग बढ़ेगी और उसकी उपलब्धता कम होती जाएगी। केंद्रीय मौसम विज्ञान के अनुसार देश की कुल वार्षिक वर्षा 1170 मि.मी. होती है, वह भी महज़ तीन महीने में लेकिन इस अकूत पानी का इस्तेमाल हम महज़ 20% ही कर पाते है अर्थात 80% पानी बिना इस्तेमाल यों ही बह जाता है। अगर बरसात के पानी को संरक्षित करने की योजना पर अमल करें तो पानी की कमी से ही छुटकारा नहीं मिलेगा बल्कि पानी को लेकर होने वाली राजनीति से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।
(a) जल को लेकर कोरी राजनीति करके।
(b) जल को लेकर राजनीति न करके।
(c) जल संबंधी कानूनों का निर्माण करके।
(d) जल संरक्षण की योजना पर अमल करके। VIEW SOLUTION
- Question 12
मध्यप्रदेश के देवास जनपद में लोगों के संकल्प और पुरुषार्थ से 1067 तालाब बनाए गए। पर्याप्त संख्या में तालाब न होने से मध्यप्रदेश में पानी की कमी बनी रहती है लेकिन देवास में पानी की किल्लत खत्म हो गई है। ऐसा ही संकल्प् अगर देश के हर गाँव और कस्बे में रहने वाले लोगों में आ जाए तो पानी को लेकर हाहाकार की स्थिति किसी गाँव में नहीं होगी। परंपरागत तालाब संस्कृति को पुर्नजीवित किए बिना हर गाँव में तालाब संस्कृति का पुनर्वास नहीं हो सकता। आज देश के 254 जिलों में पानी की भारी किल्लत है। इससे यहाँ की आबादी को उसकी जरूरत के मुताबिक पानी नहीं मिल पा रहा है। पानी का अत्यधिक दोहन और पानी की खपत बढ़ने के कारण पिछले 30-40 वर्षों में पानी की समस्या तेजी से बढ़ी है। एक तरफ तो पानी की प्रति व्यक्ति माँग निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर देश की आबादी भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में पानी की माँग बढ़ेगी और उसकी उपलब्धता कम होती जाएगी। केंद्रीय मौसम विज्ञान के अनुसार देश की कुल वार्षिक वर्षा 1170 मि.मी. होती है, वह भी महज़ तीन महीने में लेकिन इस अकूत पानी का इस्तेमाल हम महज़ 20% ही कर पाते है अर्थात 80% पानी बिना इस्तेमाल यों ही बह जाता है। अगर बरसात के पानी को संरक्षित करने की योजना पर अमल करें तो पानी की कमी से ही छुटकारा नहीं मिलेगा बल्कि पानी को लेकर होने वाली राजनीति से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।
देवास निवासियों की जल-समस्या का समाधान हुआ–
(a) जल संरक्षण हेतू व्यापक रूप से तालाबों का निर्माण करके।
(b) जल संरक्षण हेतू व्यापक रूप से धरना-प्रदर्शन करके।
(c) जल संरक्षण हेतू व्यापक रूप से राजनीति करके।
(d) जल संरक्षण हेतू व्यापक रूप से कानून-निर्माण करके। VIEW SOLUTION
- Question 13
मध्यप्रदेश के देवास जनपद में लोगों के संकल्प और पुरुषार्थ से 1067 तालाब बनाए गए। पर्याप्त संख्या में तालाब न होने से मध्यप्रदेश में पानी की कमी बनी रहती है लेकिन देवास में पानी की किल्लत खत्म हो गई है। ऐसा ही संकल्प् अगर देश के हर गाँव और कस्बे में रहने वाले लोगों में आ जाए तो पानी को लेकर हाहाकार की स्थिति किसी गाँव में नहीं होगी। परंपरागत तालाब संस्कृति को पुर्नजीवित किए बिना हर गाँव में तालाब संस्कृति का पुनर्वास नहीं हो सकता। आज देश के 254 जिलों में पानी की भारी किल्लत है। इससे यहाँ की आबादी को उसकी जरूरत के मुताबिक पानी नहीं मिल पा रहा है। पानी का अत्यधिक दोहन और पानी की खपत बढ़ने के कारण पिछले 30-40 वर्षों में पानी की समस्या तेजी से बढ़ी है। एक तरफ तो पानी की प्रति व्यक्ति माँग निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर देश की आबादी भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में पानी की माँग बढ़ेगी और उसकी उपलब्धता कम होती जाएगी। केंद्रीय मौसम विज्ञान के अनुसार देश की कुल वार्षिक वर्षा 1170 मि.मी. होती है, वह भी महज़ तीन महीने में लेकिन इस अकूत पानी का इस्तेमाल हम महज़ 20% ही कर पाते है अर्थात 80% पानी बिना इस्तेमाल यों ही बह जाता है। अगर बरसात के पानी को संरक्षित करने की योजना पर अमल करें तो पानी की कमी से ही छुटकारा नहीं मिलेगा बल्कि पानी को लेकर होने वाली राजनीति से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।
वार्षिक वर्षा का कितना प्रतिशत जल बर्बाद हो जाता है ?
(a) 80 प्रतिशत
(b) 20 प्रतिशत
(c) 30 प्रतिशत
(d) 40 प्रतिशत VIEW SOLUTION
- Question 14
मध्यप्रदेश के देवास जनपद में लोगों के संकल्प और पुरुषार्थ से 1067 तालाब बनाए गए। पर्याप्त संख्या में तालाब न होने से मध्यप्रदेश में पानी की कमी बनी रहती है लेकिन देवास में पानी की किल्लत खत्म हो गई है। ऐसा ही संकल्प् अगर देश के हर गाँव और कस्बे में रहने वाले लोगों में आ जाए तो पानी को लेकर हाहाकार की स्थिति किसी गाँव में नहीं होगी। परंपरागत तालाब संस्कृति को पुर्नजीवित किए बिना हर गाँव में तालाब संस्कृति का पुनर्वास नहीं हो सकता। आज देश के 254 जिलों में पानी की भारी किल्लत है। इससे यहाँ की आबादी को उसकी जरूरत के मुताबिक पानी नहीं मिल पा रहा है। पानी का अत्यधिक दोहन और पानी की खपत बढ़ने के कारण पिछले 30-40 वर्षों में पानी की समस्या तेजी से बढ़ी है। एक तरफ तो पानी की प्रति व्यक्ति माँग निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर देश की आबादी भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में पानी की माँग बढ़ेगी और उसकी उपलब्धता कम होती जाएगी। केंद्रीय मौसम विज्ञान के अनुसार देश की कुल वार्षिक वर्षा 1170 मि.मी. होती है, वह भी महज़ तीन महीने में लेकिन इस अकूत पानी का इस्तेमाल हम महज़ 20% ही कर पाते है अर्थात 80% पानी बिना इस्तेमाल यों ही बह जाता है। अगर बरसात के पानी को संरक्षित करने की योजना पर अमल करें तो पानी की कमी से ही छुटकारा नहीं मिलेगा बल्कि पानी को लेकर होने वाली राजनीति से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।
देश की जल संबंधी समस्या का सर्वोपयुक्त समाधान है —
(a) वर्षा के जल को संरक्षित करने की योजना बनाना ।
(b) वर्षा के जल को संरक्षित करने हेतु कानून बनाना ।
(c) वर्षा के जल को संरक्षित करने पर विचार–विमर्श करना ।
(d) वर्षा के जल को संरक्षित करने की योजना पर अमल करना । VIEW SOLUTION
- Question 15
मध्यप्रदेश के देवास जनपद में लोगों के संकल्प और पुरुषार्थ से 1067 तालाब बनाए गए। पर्याप्त संख्या में तालाब न होने से मध्यप्रदेश में पानी की कमी बनी रहती है लेकिन देवास में पानी की किल्लत खत्म हो गई है। ऐसा ही संकल्प् अगर देश के हर गाँव और कस्बे में रहने वाले लोगों में आ जाए तो पानी को लेकर हाहाकार की स्थिति किसी गाँव में नहीं होगी। परंपरागत तालाब संस्कृति को पुर्नजीवित किए बिना हर गाँव में तालाब संस्कृति का पुनर्वास नहीं हो सकता। आज देश के 254 जिलों में पानी की भारी किल्लत है। इससे यहाँ की आबादी को उसकी जरूरत के मुताबिक पानी नहीं मिल पा रहा है। पानी का अत्यधिक दोहन और पानी की खपत बढ़ने के कारण पिछले 30-40 वर्षों में पानी की समस्या तेजी से बढ़ी है। एक तरफ तो पानी की प्रति व्यक्ति माँग निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर देश की आबादी भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में पानी की माँग बढ़ेगी और उसकी उपलब्धता कम होती जाएगी। केंद्रीय मौसम विज्ञान के अनुसार देश की कुल वार्षिक वर्षा 1170 मि.मी. होती है, वह भी महज़ तीन महीने में लेकिन इस अकूत पानी का इस्तेमाल हम महज़ 20% ही कर पाते है अर्थात 80% पानी बिना इस्तेमाल यों ही बह जाता है। अगर बरसात के पानी को संरक्षित करने की योजना पर अमल करें तो पानी की कमी से ही छुटकारा नहीं मिलेगा बल्कि पानी को लेकर होने वाली राजनीति से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।
निम्नलिखित में से क्या, जल की बढ़ती किल्लत का कारण नहीं है ?
(a) जल की बढ़ती खपत
(b) देश की बढ़ती आबादी
(c) तालाबों का संरक्षण
(d) जल का अत्यधिक दोहन VIEW SOLUTION
- Question 16
ईश्वर का नाम लेकर उस पर विश्वास कर हम मन में शक्ति का एकीकरण कर कार्यरत होते हैं । हमारा विश्वास मज़बूत होता है कि हमारे साथ ईश्वर है । हम इस कार्य में सफल होंगे । आत्मविश्वास को दृढ़ बनाने के लिए ईश्वर का अस्तित्व बनाया गया है । इसके साथ–साथ ‘ईश्वर’ की कल्पना मनुष्य को भयभीत भी करती है । एकांत में भी मनुष्य कोई पाप या गलत काम न कर सके, इसी आधार पर उसे सर्वव्यापी, सर्वद्रष्टा बतलाया है । कण–कण में उसका निवास माना गया है । मनुष्य पर नियंत्रण रखने के लिए किसी न किसी शक्ति की आवश्यकता तो है ही । इसी आधार पर ईश्वर की संकल्पना की गई और इसी प्रकार असफलताओं को रोकने के लिए, अपने दोष पर परदा डालने के लिए ‘भाग्य’ की भी कल्पना की गई । हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं । जैसा कार्य करेंगे, वैसा फल पाएँगे । अतएव भाग्य को आप दोष न दें । चींटी को देखों । वह कितनी बार चढ़ती–गिरती है । आगर वह भाग्यवादी होती तो फिर चढ़ ही न पाती । निरंतर प्रयास करके ही वह सफल होती है । वह भाग्य पर निर्भर नहीं, कर्म करके दिखलाती है । इस कारण बराबर कार्य में लगे रहें । सफलता हाथ आए या फिर असफलता …, सफलता पर प्रसन्न होकर अपनी प्रगति धीमी न करें । असफलता पर घबराकर या निराश होकर मैदान छोड़कर न भागें । अपना कार्य बराबर आगे बढ़ाते रहें । जो उद्यम करते हैं, परिश्रमरत रहते हैं, निरंतर अपने कदम का ध्यान रखते हैं, ये अवश्य ही जो भी इच्छा करते हैं, पा जाया करते हैं ।
अकर्मण्य अपनी असफलता का कारण किसे मानते हैं ?
(a) ईश्वर को
(b) दुर्भाग्य को
(c) सौभाग्य को
(d) परिश्रम को VIEW SOLUTION
- Question 17
ईश्वर का नाम लेकर उस पर विश्वास कर हम मन में शक्ति का एकीकरण कर कार्यरत होते हैं । हमारा विश्वास मज़बूत होता है कि हमारे साथ ईश्वर है । हम इस कार्य में सफल होंगे । आत्मविश्वास को दृढ़ बनाने के लिए ईश्वर का अस्तित्व बनाया गया है । इसके साथ–साथ ‘ईश्वर’ की कल्पना मनुष्य को भयभीत भी करती है । एकांत में भी मनुष्य कोई पाप या गलत काम न कर सके, इसी आधार पर उसे सर्वव्यापी, सर्वद्रष्टा बतलाया है । कण–कण में उसका निवास माना गया है । मनुष्य पर नियंत्रण रखने के लिए किसी न किसी शक्ति की आवश्यकता तो है ही । इसी आधार पर ईश्वर की संकल्पना की गई और इसी प्रकार असफलताओं को रोकने के लिए, अपने दोष पर परदा डालने के लिए ‘भाग्य’ की भी कल्पना की गई । हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं । जैसा कार्य करेंगे, वैसा फल पाएँगे । अतएव भाग्य को आप दोष न दें । चींटी को देखों । वह कितनी बार चढ़ती–गिरती है । आगर वह भाग्यवादी होती तो फिर चढ़ ही न पाती । निरंतर प्रयास करके ही वह सफल होती है । वह भाग्य पर निर्भर नहीं, कर्म करके दिखलाती है । इस कारण बराबर कार्य में लगे रहें । सफलता हाथ आए या फिर असफलता …, सफलता पर प्रसन्न होकर अपनी प्रगति धीमी न करें । असफलता पर घबराकर या निराश होकर मैदान छोड़कर न भागें । अपना कार्य बराबर आगे बढ़ाते रहें । जो उद्यम करते हैं, परिश्रमरत रहते हैं, निरंतर अपने कदम का ध्यान रखते हैं, ये अवश्य ही जो भी इच्छा करते हैं, पा जाया करते हैं ।
मनुष्य का भाग्य विधाता कौन है ?
(a) उसके अपने कर्म
(b) उसका अपना भाग्य
(c) उसकी अपनी शिक्षा
(d) उसका अपना ज्ञान VIEW SOLUTION
- Question 18
ईश्वर का नाम लेकर उस पर विश्वास कर हम मन में शक्ति का एकीकरण कर कार्यरत होते हैं । हमारा विश्वास मज़बूत होता है कि हमारे साथ ईश्वर है । हम इस कार्य में सफल होंगे । आत्मविश्वास को दृढ़ बनाने के लिए ईश्वर का अस्तित्व बनाया गया है । इसके साथ–साथ ‘ईश्वर’ की कल्पना मनुष्य को भयभीत भी करती है । एकांत में भी मनुष्य कोई पाप या गलत काम न कर सके, इसी आधार पर उसे सर्वव्यापी, सर्वद्रष्टा बतलाया है । कण–कण में उसका निवास माना गया है । मनुष्य पर नियंत्रण रखने के लिए किसी न किसी शक्ति की आवश्यकता तो है ही । इसी आधार पर ईश्वर की संकल्पना की गई और इसी प्रकार असफलताओं को रोकने के लिए, अपने दोष पर परदा डालने के लिए ‘भाग्य’ की भी कल्पना की गई । हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं । जैसा कार्य करेंगे, वैसा फल पाएँगे । अतएव भाग्य को आप दोष न दें । चींटी को देखों । वह कितनी बार चढ़ती–गिरती है । आगर वह भाग्यवादी होती तो फिर चढ़ ही न पाती । निरंतर प्रयास करके ही वह सफल होती है । वह भाग्य पर निर्भर नहीं, कर्म करके दिखलाती है । इस कारण बराबर कार्य में लगे रहें । सफलता हाथ आए या फिर असफलता …, सफलता पर प्रसन्न होकर अपनी प्रगति धीमी न करें । असफलता पर घबराकर या निराश होकर मैदान छोड़कर न भागें । अपना कार्य बराबर आगे बढ़ाते रहें । जो उद्यम करते हैं, परिश्रमरत रहते हैं, निरंतर अपने कदम का ध्यान रखते हैं, ये अवश्य ही जो भी इच्छा करते हैं, पा जाया करते हैं ।
ईश्वर की संकल्पना क्यों की गई है ?
(a) हमें कुमार्ग पर जाने से रोकने के लिए ।
(b) हमें पुण्य करने का महत्तव समझाने के लिए ।
(c) हमें भाग्य में विश्वास करना सिखाने के लिए ।
(d) जीवन में डर–डर कर आगे बढ़ने के लिए । VIEW SOLUTION
- Question 19
ईश्वर का नाम लेकर उस पर विश्वास कर हम मन में शक्ति का एकीकरण कर कार्यरत होते हैं । हमारा विश्वास मज़बूत होता है कि हमारे साथ ईश्वर है । हम इस कार्य में सफल होंगे । आत्मविश्वास को दृढ़ बनाने के लिए ईश्वर का अस्तित्व बनाया गया है । इसके साथ–साथ ‘ईश्वर’ की कल्पना मनुष्य को भयभीत भी करती है । एकांत में भी मनुष्य कोई पाप या गलत काम न कर सके, इसी आधार पर उसे सर्वव्यापी, सर्वद्रष्टा बतलाया है । कण–कण में उसका निवास माना गया है । मनुष्य पर नियंत्रण रखने के लिए किसी न किसी शक्ति की आवश्यकता तो है ही । इसी आधार पर ईश्वर की संकल्पना की गई और इसी प्रकार असफलताओं को रोकने के लिए, अपने दोष पर परदा डालने के लिए ‘भाग्य’ की भी कल्पना की गई । हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं । जैसा कार्य करेंगे, वैसा फल पाएँगे । अतएव भाग्य को आप दोष न दें । चींटी को देखों । वह कितनी बार चढ़ती–गिरती है । आगर वह भाग्यवादी होती तो फिर चढ़ ही न पाती । निरंतर प्रयास करके ही वह सफल होती है । वह भाग्य पर निर्भर नहीं, कर्म करके दिखलाती है । इस कारण बराबर कार्य में लगे रहें । सफलता हाथ आए या फिर असफलता …, सफलता पर प्रसन्न होकर अपनी प्रगति धीमी न करें । असफलता पर घबराकर या निराश होकर मैदान छोड़कर न भागें । अपना कार्य बराबर आगे बढ़ाते रहें । जो उद्यम करते हैं, परिश्रमरत रहते हैं, निरंतर अपने कदम का ध्यान रखते हैं, ये अवश्य ही जो भी इच्छा करते हैं, पा जाया करते हैं ।
चींटी हमें क्या संदेश देती है ?
(a) उठने के लिए गिरना आवश्यक है |
(b) सफलता बार-बार गिरने से मिलती है |
(c) सफलता हेतु सतत प्रयास आवश्यक है |
(d) गिरने के लिए उठना आवश्यक है |
VIEW SOLUTION
- Question 20
ईश्वर का नाम लेकर उस पर विश्वास कर हम मन में शक्ति का एकीकरण कर कार्यरत होते हैं । हमारा विश्वास मज़बूत होता है कि हमारे साथ ईश्वर है । हम इस कार्य में सफल होंगे । आत्मविश्वास को दृढ़ बनाने के लिए ईश्वर का अस्तित्व बनाया गया है । इसके साथ–साथ ‘ईश्वर’ की कल्पना मनुष्य को भयभीत भी करती है । एकांत में भी मनुष्य कोई पाप या गलत काम न कर सके, इसी आधार पर उसे सर्वव्यापी, सर्वद्रष्टा बतलाया है । कण–कण में उसका निवास माना गया है । मनुष्य पर नियंत्रण रखने के लिए किसी न किसी शक्ति की आवश्यकता तो है ही । इसी आधार पर ईश्वर की संकल्पना की गई और इसी प्रकार असफलताओं को रोकने के लिए, अपने दोष पर परदा डालने के लिए ‘भाग्य’ की भी कल्पना की गई । हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं । जैसा कार्य करेंगे, वैसा फल पाएँगे । अतएव भाग्य को आप दोष न दें । चींटी को देखों । वह कितनी बार चढ़ती–गिरती है । आगर वह भाग्यवादी होती तो फिर चढ़ ही न पाती । निरंतर प्रयास करके ही वह सफल होती है । वह भाग्य पर निर्भर नहीं, कर्म करके दिखलाती है । इस कारण बराबर कार्य में लगे रहें । सफलता हाथ आए या फिर असफलता …, सफलता पर प्रसन्न होकर अपनी प्रगति धीमी न करें । असफलता पर घबराकर या निराश होकर मैदान छोड़कर न भागें । अपना कार्य बराबर आगे बढ़ाते रहें । जो उद्यम करते हैं, परिश्रमरत रहते हैं, निरंतर अपने कदम का ध्यान रखते हैं, ये अवश्य ही जो भी इच्छा करते हैं, पा जाया करते हैं ।
गद्यांश में समर्थन किया गया है –
(a) धर्मवाद का |
(b) ईश्वरवाद का |
(c) भाग्यवाद का |
(d) कर्मवाद का |
VIEW SOLUTION
More Board Paper Solutions for Class 10 Hindi
-
Board Paper of Class 10 2023 Hindi (A) Delhi(SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2023 Hindi (A) Delhi(SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2023 Hindi (A) Delhi(SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 Hindi (A) Term-II 2022 Delhi(SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 Hindi (B) Term-II 2022 Delhi(SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 Hindi (B) Term-II 2022 Delhi(SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 Hindi (A) Term-I 2021 Delhi(SET 4) (Series: JSK/2)- Solutions
-
Board Paper of Class 10 2020 Hindi (A) Delhi(SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2020 Hindi (B) Delhi(SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2019 Hindi (A) Delhi(SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2019 Hindi (A) Delhi(SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2019 Hindi (A) Delhi(SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2019 Hindi (B) Delhi(SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2018 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2018 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2018 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2018 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2017 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2017 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2017 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2017 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2017 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2017 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2017 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2017 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2017 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2017 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2016 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2016 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2016 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2016 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2016 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2016 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2016 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2015 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2015 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2015 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2015 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2014 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2014 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2014 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2014 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2013 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2012 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2011 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2010 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2010 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2010 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2010 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2010 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2010 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2009 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2009 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2009 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2009 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2009 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2009 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2009 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2009 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2009 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2009 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2009 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2009 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2008 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2008 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2008 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2008 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2008 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2008 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2008 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2008 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2008 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2008 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2008 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2007 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2007 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2007 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2007 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2007 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2007 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2006 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2006 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2006 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2006 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2006 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2006 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2005 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2005 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2005 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2004 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2004 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2004 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2004 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2004 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2004 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2003 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2003 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2003 Hindi (SET 3) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2002 Hindi (SET 1) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2002 Hindi (SET 2) - Solutions
-
Board Paper of Class 10 2002 Hindi (SET 3) - Solutions