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Board Paper of Class 10 Hindi (B) Term-I 2021 Delhi(SET 4) (Series: JSK/2)- Solutions

सामान्य निर्देश : 
निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पूरी तरह से पालन कीजिए :
(i) इस प्रश्न-पत्र में कुल 55 प्रश्न दिये गए हैं जिनमें से केवल 40 प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
(ii) सभी प्रश्न समान अंक के हैं।
(iii) प्रश्न-पत्र में तीन खंड हैं - खंड - , और
(iv) खंड-क में 20 प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्न संख्या 1 से 20 में से 10 प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार देने हैं।
(v) खंड-ख में 21 प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्न संख्या 21 से 41 में से 16 प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार देने हैं।
(vi) खंड-ग में 14 प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्न संख्या 41 से 55 तक सभी प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार देने हैं।
(vii) प्रत्येक खंड में निर्देशानुसार परीक्षार्थियों द्वारा पहले उत्तर किए गए वांछित प्रश्नों का ही मूल्यांकन किया जाएगा।
(viii) प्रत्येक प्रश्न के लिए केवल एक ही सही विकल्प है । एक विकल्प से अधिक उत्तर देने पर अंक नहीं दिये जाएंगे।
(ix) ऋणात्मक अंकन नहीं होगा।


  • Question 1
    ‘प्रबुद्ध भारत’, दिसंबर 1898, को दिए एक साक्षात्कार में विवेकानंदजी ने बताया कि मैंने पृथ्वी के दोनों गोलार्धों का पर्यटन किया है। मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि जिस जाति ने सीता को उत्पन्न किया, चाहे वह उसकी कल्पना ही क्यों न हो, उस जाति में स्त्री जाति के लिए इतना अधिक सम्मान और श्रद्दा है, जिसकी तुलना संसार में हो ही नहीं सकती। पाश्चात्य स्त्रियाँ ऐसे कई कानूनी बंधनों से जकड़ी हुई हैं, जिनसे भारतीय स्त्रियाँ सर्वधा मुक्त एवं अपरिचित हैं। भारतीय समाज में निश्चय ही दोष और अपवाद दोनों हैं। पर यही स्थिति पाश्चात्य समाज की भी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार के सभी भागों में प्रीती, कोमलता और साधुता को अभिव्यक्त करने के प्रयत्न चल रहे हैं। भारतीय स्त्री-जीवन में बहुत सी समस्याएँ हैं और ये समस्याएँ बड़ी गंभीर हैं। परन्तु इनमें से कोई भी ऐसी नहीं हैं जो ‘शिक्षा’ रूपी मंत्र-बल से हल न हो सके। पर हाँ, शिक्षा की सच्ची कल्पना हममें से कदाचित ही किसी ने की हो। मैं मानता हूँ कि सच्ची शिक्षा वह है जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। वह शब्दों का केवल रटना मात्र न हो। यह व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का ऐसा विकास हो जिससे वह स्वयमेव स्वतंत्रतापूर्वक विचार करके उचित निर्णय कर सके। भारतीय स्त्रियों की ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को बली-भाँति निभा सकें और संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई और मीरा आदि महान भारतीय देवियों की परंपरा को आगे बढ़ा सकें, ‘वीर-प्रसूता’ बन सकें।

    गद्यांश में समस्त विश्व द्वारा किए जाने वाले किन प्रयत्नों का उल्लेख है ? 
    (a) स्त्रियों को धार्मिक-सामाजिक शिक्षा दिए जाने के लिए किए जाने वाले प्रयास ।
    (b) लोगो में प्रेम, सज्जनता एवं संवेदनशीलता के विकास के लिए किए गए प्रयास ।
    (c) मानव जाति को धर्म-राजनिति की शिक्षा हेतु किए जाने वाले प्रयास ।
    (d) समस्त समस्याओं का समाधान धर्म में तलाशने हेतु किए जाने वाले प्रयास ।

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  • Question 2
    ‘प्रबुद्ध भारत’, दिसंबर 1898, को दिए एक साक्षात्कार में विवेकानंदजी ने बताया कि मैंने पृथ्वी के दोनों गोलार्धों का पर्यटन किया है। मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि जिस जाति ने सीता को उत्पन्न किया, चाहे वह उसकी कल्पना ही क्यों न हो, उस जाति में स्त्री जाति के लिए इतना अधिक सम्मान और श्रद्दा है, जिसकी तुलना संसार में हो ही नहीं सकती। पाश्चात्य स्त्रियाँ ऐसे कई कानूनी बंधनों से जकड़ी हुई हैं, जिनसे भारतीय स्त्रियाँ सर्वधा मुक्त एवं अपरिचित हैं। भारतीय समाज में निश्चय ही दोष और अपवाद दोनों हैं। पर यही स्थिति पाश्चात्य समाज की भी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार के सभी भागों में प्रीती, कोमलता और साधुता को अभिव्यक्त करने के प्रयत्न चल रहे हैं। भारतीय स्त्री-जीवन में बहुत सी समस्याएँ हैं और ये समस्याएँ बड़ी गंभीर हैं। परन्तु इनमें से कोई भी ऐसी नहीं हैं जो ‘शिक्षा’ रूपी मंत्र-बल से हल न हो सके। पर हाँ, शिक्षा की सच्ची कल्पना हममें से कदाचित ही किसी ने की हो। मैं मानता हूँ कि सच्ची शिक्षा वह है जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। वह शब्दों का केवल रटना मात्र न हो। यह व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का ऐसा विकास हो जिससे वह स्वयमेव स्वतंत्रतापूर्वक विचार करके उचित निर्णय कर सके। भारतीय स्त्रियों की ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को बली-भाँति निभा सकें और संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई और मीरा आदि महान भारतीय देवियों की परंपरा को आगे बढ़ा सकें, ‘वीर-प्रसूता’ बन सकें।

    “भारतीय समाज में निश्चय ही दोष और अपवाद दोनों हैं ।” विवेकानंद ने ऐसा क्यों कहा ?
    (a) भारतीय समाज में महिलाओं के शोषित और सशक्त दोनों रुप होने के कारण ।
    (b) भारतीय समाज में महिलाओं का बहुत अधिक शोषण होने के कारण ।
    (c) भारतीय समाज में महिलाओं के अत्यधिक धार्मिक होने के कारण ।
    (d) भारतीय समाज में महिलाओं के अत्यधिक अशिक्षित होने के कारण । VIEW SOLUTION


  • Question 3
    ‘प्रबुद्ध भारत’, दिसंबर 1898, को दिए एक साक्षात्कार में विवेकानंदजी ने बताया कि मैंने पृथ्वी के दोनों गोलार्धों का पर्यटन किया है। मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि जिस जाति ने सीता को उत्पन्न किया, चाहे वह उसकी कल्पना ही क्यों न हो, उस जाति में स्त्री जाति के लिए इतना अधिक सम्मान और श्रद्दा है, जिसकी तुलना संसार में हो ही नहीं सकती। पाश्चात्य स्त्रियाँ ऐसे कई कानूनी बंधनों से जकड़ी हुई हैं, जिनसे भारतीय स्त्रियाँ सर्वधा मुक्त एवं अपरिचित हैं। भारतीय समाज में निश्चय ही दोष और अपवाद दोनों हैं। पर यही स्थिति पाश्चात्य समाज की भी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार के सभी भागों में प्रीती, कोमलता और साधुता को अभिव्यक्त करने के प्रयत्न चल रहे हैं। भारतीय स्त्री-जीवन में बहुत सी समस्याएँ हैं और ये समस्याएँ बड़ी गंभीर हैं। परन्तु इनमें से कोई भी ऐसी नहीं हैं जो ‘शिक्षा’ रूपी मंत्र-बल से हल न हो सके। पर हाँ, शिक्षा की सच्ची कल्पना हममें से कदाचित ही किसी ने की हो। मैं मानता हूँ कि सच्ची शिक्षा वह है जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। वह शब्दों का केवल रटना मात्र न हो। यह व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का ऐसा विकास हो जिससे वह स्वयमेव स्वतंत्रतापूर्वक विचार करके उचित निर्णय कर सके। भारतीय स्त्रियों की ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को बली-भाँति निभा सकें और संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई और मीरा आदि महान भारतीय देवियों की परंपरा को आगे बढ़ा सकें, ‘वीर-प्रसूता’ बन सकें।

    ‘सच्ची शिक्षा’ की परिकल्पना मे शामिल नही हैं –
    (a) धर्म-शिक्षा के माध्यम से सामाजिक समस्याओं का समाधान।
    (b) महिलाओं की शिक्षा-प्राप्ति में समान रुप से भागीदारी।
    (c) अभय, सजगता एवं कर्तव्यबोध के विकास हेतु शिक्षा।
    (d) स्वतंत्र सोच एवं निर्णय क्षमता के विकास हेतु शिक्षा। VIEW SOLUTION


  • Question 4
    ‘प्रबुद्ध भारत’, दिसंबर 1898, को दिए एक साक्षात्कार में विवेकानंदजी ने बताया कि मैंने पृथ्वी के दोनों गोलार्धों का पर्यटन किया है। मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि जिस जाति ने सीता को उत्पन्न किया, चाहे वह उसकी कल्पना ही क्यों न हो, उस जाति में स्त्री जाति के लिए इतना अधिक सम्मान और श्रद्दा है, जिसकी तुलना संसार में हो ही नहीं सकती। पाश्चात्य स्त्रियाँ ऐसे कई कानूनी बंधनों से जकड़ी हुई हैं, जिनसे भारतीय स्त्रियाँ सर्वधा मुक्त एवं अपरिचित हैं। भारतीय समाज में निश्चय ही दोष और अपवाद दोनों हैं। पर यही स्थिति पाश्चात्य समाज की भी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार के सभी भागों में प्रीती, कोमलता और साधुता को अभिव्यक्त करने के प्रयत्न चल रहे हैं। भारतीय स्त्री-जीवन में बहुत सी समस्याएँ हैं और ये समस्याएँ बड़ी गंभीर हैं। परन्तु इनमें से कोई भी ऐसी नहीं हैं जो ‘शिक्षा’ रूपी मंत्र-बल से हल न हो सके। पर हाँ, शिक्षा की सच्ची कल्पना हममें से कदाचित ही किसी ने की हो। मैं मानता हूँ कि सच्ची शिक्षा वह है जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। वह शब्दों का केवल रटना मात्र न हो। यह व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का ऐसा विकास हो जिससे वह स्वयमेव स्वतंत्रतापूर्वक विचार करके उचित निर्णय कर सके। भारतीय स्त्रियों की ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को बली-भाँति निभा सकें और संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई और मीरा आदि महान भारतीय देवियों की परंपरा को आगे बढ़ा सकें, ‘वीर-प्रसूता’ बन सकें।

    हर समस्या के समाधान का राम-बाग है –
    (a) सर्व शिक्षा 
    (b) स्त्री शिक्षा
    (c) सामाजिक शिक्षा 
    (d) राजनैतिक शिक्षा VIEW SOLUTION


  • Question 5
    ‘प्रबुद्ध भारत’, दिसंबर 1898, को दिए एक साक्षात्कार में विवेकानंदजी ने बताया कि मैंने पृथ्वी के दोनों गोलार्धों का पर्यटन किया है। मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि जिस जाति ने सीता को उत्पन्न किया, चाहे वह उसकी कल्पना ही क्यों न हो, उस जाति में स्त्री जाति के लिए इतना अधिक सम्मान और श्रद्दा है, जिसकी तुलना संसार में हो ही नहीं सकती। पाश्चात्य स्त्रियाँ ऐसे कई कानूनी बंधनों से जकड़ी हुई हैं, जिनसे भारतीय स्त्रियाँ सर्वधा मुक्त एवं अपरिचित हैं। भारतीय समाज में निश्चय ही दोष और अपवाद दोनों हैं। पर यही स्थिति पाश्चात्य समाज की भी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसार के सभी भागों में प्रीती, कोमलता और साधुता को अभिव्यक्त करने के प्रयत्न चल रहे हैं। भारतीय स्त्री-जीवन में बहुत सी समस्याएँ हैं और ये समस्याएँ बड़ी गंभीर हैं। परन्तु इनमें से कोई भी ऐसी नहीं हैं जो ‘शिक्षा’ रूपी मंत्र-बल से हल न हो सके। पर हाँ, शिक्षा की सच्ची कल्पना हममें से कदाचित ही किसी ने की हो। मैं मानता हूँ कि सच्ची शिक्षा वह है जिससे मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास हो। वह शब्दों का केवल रटना मात्र न हो। यह व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का ऐसा विकास हो जिससे वह स्वयमेव स्वतंत्रतापूर्वक विचार करके उचित निर्णय कर सके। भारतीय स्त्रियों की ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को बली-भाँति निभा सकें और संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई और मीरा आदि महान भारतीय देवियों की परंपरा को आगे बढ़ा सकें, ‘वीर-प्रसूता’ बन सकें।

    ‘वीर-प्रसूता’ का आशय है –
    (a) अपना निर्णय स्वयं लेने वाली
    (b) परंपराओं का निर्वाह करने वाली
    (c) वीरों को जन्म देने वाली 
    (d) कर्तव्य का बोध रखने वाली VIEW SOLUTION


  • Question 6
    सोना तपने पर कंचन बनता है। ठीक यही बात आदमी के साथ भी है। हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि दुनिया में सबसे दुर्लभ आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आदमी को ऊँचा माना गया है और वह इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है, विवेक है। संसार में जितनी चीजें आविष्कृत हुई हैं, सब बुद्धि के ज़ोर पर हुई है। आज हज़ारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से ही संभव हुआ है। जिसके पास इतनी चीज़ें हों वह धन या दुनियादारी की चीज़ों के पीछे भटके, यह उचित नहीं है। बुद्धि का प्रयोग उसे बराबर आगे बढ़ने के लिए करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्होंने मानवता की बड़ी सेवा की है। उनका नाम अमर हो गया है। धन का खोट आदमी का तब मालूम होता है, जब वह खरा बनने लगता है। खरा बनने का अर्थ यह नहीं है कि इंसान घर-बार छोड़ दे, जंगल में चला जाए और भगवान के चरणों में लौ लगाकर बैठा रहे। बहतु-से लोग ऐसा करते भी है, पर यह रास्ता सबका रास्ता नहीं है। दुनिया में ज़्यादातर लोगों का वास्ता अपने घर के लोगों से ही नहीं, दूसरों के साथ भी पड़ता है। उत्तम पुरुष वह है, जो अपनी बुराइयों को दूर करता है और नीति का जीवन बिताते हुए अपने देश और समाज के काम आता है, सबसे प्रेम करता है और सबके सुख-दुःख में काम आता है।

    बुद्धि-विवेक का प्रयोग किस कार्य में होना चाहिए?
    (a) सफर को आसान बनाने वाली खोजों में।
    (b) अधिक से अधिक धन-दौलत जुटान में।
    (c) निरंतर स्वयं का विकास करते रहने में।
    (d) भौतिक सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने में।
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  • Question 7
    सोना तपने पर कंचन बनता है। ठीक यही बात आदमी के साथ भी है। हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि दुनिया में सबसे दुर्लभ आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आदमी को ऊँचा माना गया है और वह इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है, विवेक है। संसार में जितनी चीजें आविष्कृत हुई हैं, सब बुद्धि के ज़ोर पर हुई है। आज हज़ारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से ही संभव हुआ है। जिसके पास इतनी चीज़ें हों वह धन या दुनियादारी की चीज़ों के पीछे भटके, यह उचित नहीं है। बुद्धि का प्रयोग उसे बराबर आगे बढ़ने के लिए करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्होंने मानवता की बड़ी सेवा की है। उनका नाम अमर हो गया है। धन का खोट आदमी का तब मालूम होता है, जब वह खरा बनने लगता है। खरा बनने का अर्थ यह नहीं है कि इंसान घर-बार छोड़ दे, जंगल में चला जाए और भगवान के चरणों में लौ लगाकर बैठा रहे। बहतु-से लोग ऐसा करते भी है, पर यह रास्ता सबका रास्ता नहीं है। दुनिया में ज़्यादातर लोगों का वास्ता अपने घर के लोगों से ही नहीं, दूसरों के साथ भी पड़ता है। उत्तम पुरुष वह है, जो अपनी बुराइयों को दूर करता है और नीति का जीवन बिताते हुए अपने देश और समाज के काम आता है, सबसे प्रेम करता है और सबके सुख-दुःख में काम आता है।

    सभी प्राणियों में मानव को सर्वश्रेष्ठ क्यों माना गया है?
    (a) उसके पास मौजूद बुद्धि और विवेक के कारण।
    (b) पशुओं से भिन्न विशेष शारीरिक संरचना के कारण।
    (c) उसके पास मौजूद धन और दौलत के कारण।
    (d) उसके द्वारा की गई विविध खोजों के कारण। VIEW SOLUTION


  • Question 8
    सोना तपने पर कंचन बनता है। ठीक यही बात आदमी के साथ भी है। हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि दुनिया में सबसे दुर्लभ आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आदमी को ऊँचा माना गया है और वह इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है, विवेक है। संसार में जितनी चीजें आविष्कृत हुई हैं, सब बुद्धि के ज़ोर पर हुई है। आज हज़ारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से ही संभव हुआ है। जिसके पास इतनी चीज़ें हों वह धन या दुनियादारी की चीज़ों के पीछे भटके, यह उचित नहीं है। बुद्धि का प्रयोग उसे बराबर आगे बढ़ने के लिए करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्होंने मानवता की बड़ी सेवा की है। उनका नाम अमर हो गया है। धन का खोट आदमी का तब मालूम होता है, जब वह खरा बनने लगता है। खरा बनने का अर्थ यह नहीं है कि इंसान घर-बार छोड़ दे, जंगल में चला जाए और भगवान के चरणों में लौ लगाकर बैठा रहे। बहतु-से लोग ऐसा करते भी है, पर यह रास्ता सबका रास्ता नहीं है। दुनिया में ज़्यादातर लोगों का वास्ता अपने घर के लोगों से ही नहीं, दूसरों के साथ भी पड़ता है। उत्तम पुरुष वह है, जो अपनी बुराइयों को दूर करता है और नीति का जीवन बिताते हुए अपने देश और समाज के काम आता है, सबसे प्रेम करता है और सबके सुख-दुःख में काम आता है।

    धन की निरर्थकता का अहसास कब होता है?
    (a) जब उससे मनचाही वस्तु नहीं मिल पाती है।
    (b) घर-संसार का त्याग कर संन्यास ग्रहण करने पर।
    (c) यह पता चलने पर कि इससे प्राप्त सुख वास्तविक नहीं है।
    (d) यह पता चलने पर कि इसकी मौजूदगी खतरे का कारण हे। VIEW SOLUTION


  • Question 9
    सोना तपने पर कंचन बनता है। ठीक यही बात आदमी के साथ भी है। हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि दुनिया में सबसे दुर्लभ आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आदमी को ऊँचा माना गया है और वह इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है, विवेक है। संसार में जितनी चीजें आविष्कृत हुई हैं, सब बुद्धि के ज़ोर पर हुई है। आज हज़ारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से ही संभव हुआ है। जिसके पास इतनी चीज़ें हों वह धन या दुनियादारी की चीज़ों के पीछे भटके, यह उचित नहीं है। बुद्धि का प्रयोग उसे बराबर आगे बढ़ने के लिए करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्होंने मानवता की बड़ी सेवा की है। उनका नाम अमर हो गया है। धन का खोट आदमी का तब मालूम होता है, जब वह खरा बनने लगता है। खरा बनने का अर्थ यह नहीं है कि इंसान घर-बार छोड़ दे, जंगल में चला जाए और भगवान के चरणों में लौ लगाकर बैठा रहे। बहतु-से लोग ऐसा करते भी है, पर यह रास्ता सबका रास्ता नहीं है। दुनिया में ज़्यादातर लोगों का वास्ता अपने घर के लोगों से ही नहीं, दूसरों के साथ भी पड़ता है। उत्तम पुरुष वह है, जो अपनी बुराइयों को दूर करता है और नीति का जीवन बिताते हुए अपने देश और समाज के काम आता है, सबसे प्रेम करता है और सबके सुख-दुःख में काम आता है।

    धर्मग्रंथ किसे दुर्लभ बताते हैं?
    (a) अमर होने को
    (b) बुद्धि-विवेक को
    (c) भौतिक उपलब्धि को 
    (d) मानव तन को VIEW SOLUTION


  • Question 10
    सोना तपने पर कंचन बनता है। ठीक यही बात आदमी के साथ भी है। हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि दुनिया में सबसे दुर्लभ आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आदमी को ऊँचा माना गया है और वह इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है, विवेक है। संसार में जितनी चीजें आविष्कृत हुई हैं, सब बुद्धि के ज़ोर पर हुई है। आज हज़ारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से ही संभव हुआ है। जिसके पास इतनी चीज़ें हों वह धन या दुनियादारी की चीज़ों के पीछे भटके, यह उचित नहीं है। बुद्धि का प्रयोग उसे बराबर आगे बढ़ने के लिए करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्होंने मानवता की बड़ी सेवा की है। उनका नाम अमर हो गया है। धन का खोट आदमी का तब मालूम होता है, जब वह खरा बनने लगता है। खरा बनने का अर्थ यह नहीं है कि इंसान घर-बार छोड़ दे, जंगल में चला जाए और भगवान के चरणों में लौ लगाकर बैठा रहे। बहतु-से लोग ऐसा करते भी है, पर यह रास्ता सबका रास्ता नहीं है। दुनिया में ज़्यादातर लोगों का वास्ता अपने घर के लोगों से ही नहीं, दूसरों के साथ भी पड़ता है। उत्तम पुरुष वह है, जो अपनी बुराइयों को दूर करता है और नीति का जीवन बिताते हुए अपने देश और समाज के काम आता है, सबसे प्रेम करता है और सबके सुख-दुःख में काम आता है।

    ‘श्रेष्ठ’ कौन है?
    (a) प्रेम और मानवता में विश्वास करने वाला।
    (b) निरंतर अपना आर्थिक विकास करने वाला।
    (c) भक्ति और शक्ति में विश्वास करने वाला।
    (d) निरंतर अपना शैक्षणिक विकास करने वाला।
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  • Question 11
    मध्यप्रदेश के देवास जनपद में लोगों के संकल्प और पुरुषार्थ से 1067 तालाब बनाए गए। पर्याप्त संख्या में तालाब न होने से मध्यप्रदेश में पानी की कमी बनी रहती है लेकिन देवास में पानी की किल्लत खत्म हो गई है। ऐसा ही संकल्प् अगर देश के हर गाँव और कस्बे में रहने वाले लोगों में आ जाए तो पानी को लेकर हाहाकार की स्थिति किसी गाँव में नहीं होगी। परंपरागत तालाब संस्कृति को पुर्नजीवित किए बिना हर गाँव में तालाब संस्कृति का पुनर्वास नहीं हो सकता। आज देश के 254 जिलों में पानी की भारी किल्लत है। इससे यहाँ की आबादी को उसकी जरूरत के मुताबिक पानी नहीं मिल पा रहा है। पानी का अत्यधिक दोहन और पानी की खपत बढ़ने के कारण पिछले 30-40 वर्षों में पानी की समस्या तेजी से बढ़ी है। एक तरफ तो पानी की प्रति व्यक्ति माँग निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर देश की आबादी भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में पानी की माँग बढ़ेगी और उसकी उपलब्धता कम होती जाएगी। केंद्रीय मौसम विज्ञान के अनुसार देश की कुल वार्षिक वर्षा 1170 मि.मी. होती है, वह भी महज़ तीन महीने में लेकिन इस अकूत पानी का इस्तेमाल हम महज़ 20% ही कर पाते है अर्थात 80% पानी बिना इस्तेमाल यों ही बह जाता है। अगर बरसात के पानी को संरक्षित करने की योजना पर अमल करें तो पानी की कमी से ही छुटकारा नहीं मिलेगा बल्कि पानी को लेकर होने वाली राजनीति से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।
     
    जल को लेकर होने वाली राजनीति को कैसे दूर किया जा सकता है?
    (a) जल को लेकर कोरी राजनीति करके।
    (b) जल को लेकर राजनीति न करके।
    (c) जल संबंधी कानूनों का निर्माण करके।
    (d) जल संरक्षण की योजना पर अमल करके। VIEW SOLUTION


  • Question 12
    मध्यप्रदेश के देवास जनपद में लोगों के संकल्प और पुरुषार्थ से 1067 तालाब बनाए गए। पर्याप्त संख्या में तालाब न होने से मध्यप्रदेश में पानी की कमी बनी रहती है लेकिन देवास में पानी की किल्लत खत्म हो गई है। ऐसा ही संकल्प् अगर देश के हर गाँव और कस्बे में रहने वाले लोगों में आ जाए तो पानी को लेकर हाहाकार की स्थिति किसी गाँव में नहीं होगी। परंपरागत तालाब संस्कृति को पुर्नजीवित किए बिना हर गाँव में तालाब संस्कृति का पुनर्वास नहीं हो सकता। आज देश के 254 जिलों में पानी की भारी किल्लत है। इससे यहाँ की आबादी को उसकी जरूरत के मुताबिक पानी नहीं मिल पा रहा है। पानी का अत्यधिक दोहन और पानी की खपत बढ़ने के कारण पिछले 30-40 वर्षों में पानी की समस्या तेजी से बढ़ी है। एक तरफ तो पानी की प्रति व्यक्ति माँग निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर देश की आबादी भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में पानी की माँग बढ़ेगी और उसकी उपलब्धता कम होती जाएगी। केंद्रीय मौसम विज्ञान के अनुसार देश की कुल वार्षिक वर्षा 1170 मि.मी. होती है, वह भी महज़ तीन महीने में लेकिन इस अकूत पानी का इस्तेमाल हम महज़ 20% ही कर पाते है अर्थात 80% पानी बिना इस्तेमाल यों ही बह जाता है। अगर बरसात के पानी को संरक्षित करने की योजना पर अमल करें तो पानी की कमी से ही छुटकारा नहीं मिलेगा बल्कि पानी को लेकर होने वाली राजनीति से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।

    देवास निवासियों की जल-समस्या का समाधान हुआ–
    (a) जल संरक्षण हेतू व्यापक रूप से तालाबों का निर्माण करके।
    (b) जल संरक्षण हेतू व्यापक रूप से धरना-प्रदर्शन करके। 
    (c) जल संरक्षण हेतू व्यापक रूप से राजनीति करके।
    (d) जल संरक्षण हेतू व्यापक रूप से कानून-निर्माण करके। VIEW SOLUTION


  • Question 13
    मध्यप्रदेश के देवास जनपद में लोगों के संकल्प और पुरुषार्थ से 1067 तालाब बनाए गए। पर्याप्त संख्या में तालाब न होने से मध्यप्रदेश में पानी की कमी बनी रहती है लेकिन देवास में पानी की किल्लत खत्म हो गई है। ऐसा ही संकल्प् अगर देश के हर गाँव और कस्बे में रहने वाले लोगों में आ जाए तो पानी को लेकर हाहाकार की स्थिति किसी गाँव में नहीं होगी। परंपरागत तालाब संस्कृति को पुर्नजीवित किए बिना हर गाँव में तालाब संस्कृति का पुनर्वास नहीं हो सकता। आज देश के 254 जिलों में पानी की भारी किल्लत है। इससे यहाँ की आबादी को उसकी जरूरत के मुताबिक पानी नहीं मिल पा रहा है। पानी का अत्यधिक दोहन और पानी की खपत बढ़ने के कारण पिछले 30-40 वर्षों में पानी की समस्या तेजी से बढ़ी है। एक तरफ तो पानी की प्रति व्यक्ति माँग निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर देश की आबादी भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में पानी की माँग बढ़ेगी और उसकी उपलब्धता कम होती जाएगी। केंद्रीय मौसम विज्ञान के अनुसार देश की कुल वार्षिक वर्षा 1170 मि.मी. होती है, वह भी महज़ तीन महीने में लेकिन इस अकूत पानी का इस्तेमाल हम महज़ 20% ही कर पाते है अर्थात 80% पानी बिना इस्तेमाल यों ही बह जाता है। अगर बरसात के पानी को संरक्षित करने की योजना पर अमल करें तो पानी की कमी से ही छुटकारा नहीं मिलेगा बल्कि पानी को लेकर होने वाली राजनीति से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।

    वार्षिक वर्षा का कितना प्रतिशत जल बर्बाद हो जाता है ?
    (a) 80 प्रतिशत
    (b) 20 प्रतिशत
    (c) 30 प्रतिशत
    (d) 40 प्रतिशत VIEW SOLUTION


  • Question 14
    मध्यप्रदेश के देवास जनपद में लोगों के संकल्प और पुरुषार्थ से 1067 तालाब बनाए गए। पर्याप्त संख्या में तालाब न होने से मध्यप्रदेश में पानी की कमी बनी रहती है लेकिन देवास में पानी की किल्लत खत्म हो गई है। ऐसा ही संकल्प् अगर देश के हर गाँव और कस्बे में रहने वाले लोगों में आ जाए तो पानी को लेकर हाहाकार की स्थिति किसी गाँव में नहीं होगी। परंपरागत तालाब संस्कृति को पुर्नजीवित किए बिना हर गाँव में तालाब संस्कृति का पुनर्वास नहीं हो सकता। आज देश के 254 जिलों में पानी की भारी किल्लत है। इससे यहाँ की आबादी को उसकी जरूरत के मुताबिक पानी नहीं मिल पा रहा है। पानी का अत्यधिक दोहन और पानी की खपत बढ़ने के कारण पिछले 30-40 वर्षों में पानी की समस्या तेजी से बढ़ी है। एक तरफ तो पानी की प्रति व्यक्ति माँग निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर देश की आबादी भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में पानी की माँग बढ़ेगी और उसकी उपलब्धता कम होती जाएगी। केंद्रीय मौसम विज्ञान के अनुसार देश की कुल वार्षिक वर्षा 1170 मि.मी. होती है, वह भी महज़ तीन महीने में लेकिन इस अकूत पानी का इस्तेमाल हम महज़ 20% ही कर पाते है अर्थात 80% पानी बिना इस्तेमाल यों ही बह जाता है। अगर बरसात के पानी को संरक्षित करने की योजना पर अमल करें तो पानी की कमी से ही छुटकारा नहीं मिलेगा बल्कि पानी को लेकर होने वाली राजनीति से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।

    देश की जल संबंधी समस्या का सर्वोपयुक्त समाधान है —
    (a) वर्षा के जल को संरक्षित करने की योजना बनाना ।
    (b) वर्षा के जल को संरक्षित करने हेतु कानून बनाना ।
    (c) वर्षा के जल को संरक्षित करने पर विचार–विमर्श करना ।
    (d) वर्षा के जल को संरक्षित करने की योजना पर अमल करना । VIEW SOLUTION


  • Question 15
    मध्यप्रदेश के देवास जनपद में लोगों के संकल्प और पुरुषार्थ से 1067 तालाब बनाए गए। पर्याप्त संख्या में तालाब न होने से मध्यप्रदेश में पानी की कमी बनी रहती है लेकिन देवास में पानी की किल्लत खत्म हो गई है। ऐसा ही संकल्प् अगर देश के हर गाँव और कस्बे में रहने वाले लोगों में आ जाए तो पानी को लेकर हाहाकार की स्थिति किसी गाँव में नहीं होगी। परंपरागत तालाब संस्कृति को पुर्नजीवित किए बिना हर गाँव में तालाब संस्कृति का पुनर्वास नहीं हो सकता। आज देश के 254 जिलों में पानी की भारी किल्लत है। इससे यहाँ की आबादी को उसकी जरूरत के मुताबिक पानी नहीं मिल पा रहा है। पानी का अत्यधिक दोहन और पानी की खपत बढ़ने के कारण पिछले 30-40 वर्षों में पानी की समस्या तेजी से बढ़ी है। एक तरफ तो पानी की प्रति व्यक्ति माँग निरंतर बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर देश की आबादी भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में पानी की माँग बढ़ेगी और उसकी उपलब्धता कम होती जाएगी। केंद्रीय मौसम विज्ञान के अनुसार देश की कुल वार्षिक वर्षा 1170 मि.मी. होती है, वह भी महज़ तीन महीने में लेकिन इस अकूत पानी का इस्तेमाल हम महज़ 20% ही कर पाते है अर्थात 80% पानी बिना इस्तेमाल यों ही बह जाता है। अगर बरसात के पानी को संरक्षित करने की योजना पर अमल करें तो पानी की कमी से ही छुटकारा नहीं मिलेगा बल्कि पानी को लेकर होने वाली राजनीति से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।

    निम्नलिखित में से क्या, जल की बढ़ती किल्लत का कारण नहीं है ?
    (a) जल की बढ़ती खपत
    (b) देश की बढ़ती आबादी
    (c) तालाबों का संरक्षण
    (d) जल का अत्यधिक दोहन VIEW SOLUTION


  • Question 16
    ईश्वर का नाम लेकर उस पर विश्वास कर हम मन में शक्ति का एकीकरण कर कार्यरत होते हैं । हमारा विश्वास मज़बूत होता है कि हमारे साथ ईश्वर है । हम इस कार्य में सफल होंगे । आत्मविश्वास को दृढ़ बनाने के लिए ईश्वर का अस्तित्व बनाया गया है । इसके साथ–साथ ‘ईश्वर’ की कल्पना मनुष्य को भयभीत भी करती है । एकांत में भी मनुष्य कोई पाप या गलत काम न कर सके, इसी आधार पर उसे सर्वव्यापी, सर्वद्रष्टा बतलाया है । कण–कण में उसका निवास माना गया है । मनुष्य पर नियंत्रण रखने के लिए किसी न किसी शक्ति की आवश्यकता तो है ही । इसी आधार पर ईश्वर की संकल्पना की गई और इसी प्रकार असफलताओं को रोकने के लिए, अपने दोष पर परदा डालने के लिए ‘भाग्य’ की भी कल्पना की गई । हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं । जैसा कार्य करेंगे, वैसा फल पाएँगे । अतएव भाग्य को आप दोष न दें । चींटी को देखों । वह कितनी बार चढ़ती–गिरती है । आगर वह भाग्यवादी होती तो फिर चढ़ ही न पाती । निरंतर प्रयास करके ही वह सफल होती है । वह भाग्य पर निर्भर नहीं, कर्म करके दिखलाती है । इस कारण बराबर कार्य में लगे रहें । सफलता हाथ आए या फिर असफलता …, सफलता पर प्रसन्न होकर अपनी प्रगति धीमी न करें । असफलता पर घबराकर या निराश होकर मैदान छोड़कर न भागें । अपना कार्य बराबर आगे बढ़ाते रहें । जो उद्यम करते हैं, परिश्रमरत रहते हैं, निरंतर अपने कदम का ध्यान रखते हैं, ये अवश्य ही जो भी इच्छा करते हैं, पा जाया करते हैं ।

    अकर्मण्य अपनी असफलता का कारण किसे मानते हैं ?
    (a) ईश्वर को
    (b) दुर्भाग्य को
    (c) सौभाग्य को
    (d) परिश्रम को VIEW SOLUTION


  • Question 17
    ईश्वर का नाम लेकर उस पर विश्वास कर हम मन में शक्ति का एकीकरण कर कार्यरत होते हैं । हमारा विश्वास मज़बूत होता है कि हमारे साथ ईश्वर है । हम इस कार्य में सफल होंगे । आत्मविश्वास को दृढ़ बनाने के लिए ईश्वर का अस्तित्व बनाया गया है । इसके साथ–साथ ‘ईश्वर’ की कल्पना मनुष्य को भयभीत भी करती है । एकांत में भी मनुष्य कोई पाप या गलत काम न कर सके, इसी आधार पर उसे सर्वव्यापी, सर्वद्रष्टा बतलाया है । कण–कण में उसका निवास माना गया है । मनुष्य पर नियंत्रण रखने के लिए किसी न किसी शक्ति की आवश्यकता तो है ही । इसी आधार पर ईश्वर की संकल्पना की गई और इसी प्रकार असफलताओं को रोकने के लिए, अपने दोष पर परदा डालने के लिए ‘भाग्य’ की भी कल्पना की गई । हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं । जैसा कार्य करेंगे, वैसा फल पाएँगे । अतएव भाग्य को आप दोष न दें । चींटी को देखों । वह कितनी बार चढ़ती–गिरती है । आगर वह भाग्यवादी होती तो फिर चढ़ ही न पाती । निरंतर प्रयास करके ही वह सफल होती है । वह भाग्य पर निर्भर नहीं, कर्म करके दिखलाती है । इस कारण बराबर कार्य में लगे रहें । सफलता हाथ आए या फिर असफलता …, सफलता पर प्रसन्न होकर अपनी प्रगति धीमी न करें । असफलता पर घबराकर या निराश होकर मैदान छोड़कर न भागें । अपना कार्य बराबर आगे बढ़ाते रहें । जो उद्यम करते हैं, परिश्रमरत रहते हैं, निरंतर अपने कदम का ध्यान रखते हैं, ये अवश्य ही जो भी इच्छा करते हैं, पा जाया करते हैं ।

    मनुष्य का भाग्य विधाता कौन है ?
    (a) उसके अपने कर्म
    (b) उसका अपना भाग्य
    (c) उसकी अपनी शिक्षा
    (d) उसका अपना ज्ञान VIEW SOLUTION


  • Question 18
    ईश्वर का नाम लेकर उस पर विश्वास कर हम मन में शक्ति का एकीकरण कर कार्यरत होते हैं । हमारा विश्वास मज़बूत होता है कि हमारे साथ ईश्वर है । हम इस कार्य में सफल होंगे । आत्मविश्वास को दृढ़ बनाने के लिए ईश्वर का अस्तित्व बनाया गया है । इसके साथ–साथ ‘ईश्वर’ की कल्पना मनुष्य को भयभीत भी करती है । एकांत में भी मनुष्य कोई पाप या गलत काम न कर सके, इसी आधार पर उसे सर्वव्यापी, सर्वद्रष्टा बतलाया है । कण–कण में उसका निवास माना गया है । मनुष्य पर नियंत्रण रखने के लिए किसी न किसी शक्ति की आवश्यकता तो है ही । इसी आधार पर ईश्वर की संकल्पना की गई और इसी प्रकार असफलताओं को रोकने के लिए, अपने दोष पर परदा डालने के लिए ‘भाग्य’ की भी कल्पना की गई । हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं । जैसा कार्य करेंगे, वैसा फल पाएँगे । अतएव भाग्य को आप दोष न दें । चींटी को देखों । वह कितनी बार चढ़ती–गिरती है । आगर वह भाग्यवादी होती तो फिर चढ़ ही न पाती । निरंतर प्रयास करके ही वह सफल होती है । वह भाग्य पर निर्भर नहीं, कर्म करके दिखलाती है । इस कारण बराबर कार्य में लगे रहें । सफलता हाथ आए या फिर असफलता …, सफलता पर प्रसन्न होकर अपनी प्रगति धीमी न करें । असफलता पर घबराकर या निराश होकर मैदान छोड़कर न भागें । अपना कार्य बराबर आगे बढ़ाते रहें । जो उद्यम करते हैं, परिश्रमरत रहते हैं, निरंतर अपने कदम का ध्यान रखते हैं, ये अवश्य ही जो भी इच्छा करते हैं, पा जाया करते हैं ।

    ईश्वर की संकल्पना क्यों की गई है ?
    (a) हमें कुमार्ग पर जाने से रोकने के लिए ।
    (b) हमें पुण्य करने का महत्तव समझाने के लिए ।
    (c) हमें भाग्य में विश्वास करना सिखाने के लिए ।
    (d) जीवन में डर–डर कर आगे बढ़ने के लिए । VIEW SOLUTION


  • Question 19
    ईश्वर का नाम लेकर उस पर विश्वास कर हम मन में शक्ति का एकीकरण कर कार्यरत होते हैं । हमारा विश्वास मज़बूत होता है कि हमारे साथ ईश्वर है । हम इस कार्य में सफल होंगे । आत्मविश्वास को दृढ़ बनाने के लिए ईश्वर का अस्तित्व बनाया गया है । इसके साथ–साथ ‘ईश्वर’ की कल्पना मनुष्य को भयभीत भी करती है । एकांत में भी मनुष्य कोई पाप या गलत काम न कर सके, इसी आधार पर उसे सर्वव्यापी, सर्वद्रष्टा बतलाया है । कण–कण में उसका निवास माना गया है । मनुष्य पर नियंत्रण रखने के लिए किसी न किसी शक्ति की आवश्यकता तो है ही । इसी आधार पर ईश्वर की संकल्पना की गई और इसी प्रकार असफलताओं को रोकने के लिए, अपने दोष पर परदा डालने के लिए ‘भाग्य’ की भी कल्पना की गई । हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं । जैसा कार्य करेंगे, वैसा फल पाएँगे । अतएव भाग्य को आप दोष न दें । चींटी को देखों । वह कितनी बार चढ़ती–गिरती है । आगर वह भाग्यवादी होती तो फिर चढ़ ही न पाती । निरंतर प्रयास करके ही वह सफल होती है । वह भाग्य पर निर्भर नहीं, कर्म करके दिखलाती है । इस कारण बराबर कार्य में लगे रहें । सफलता हाथ आए या फिर असफलता …, सफलता पर प्रसन्न होकर अपनी प्रगति धीमी न करें । असफलता पर घबराकर या निराश होकर मैदान छोड़कर न भागें । अपना कार्य बराबर आगे बढ़ाते रहें । जो उद्यम करते हैं, परिश्रमरत रहते हैं, निरंतर अपने कदम का ध्यान रखते हैं, ये अवश्य ही जो भी इच्छा करते हैं, पा जाया करते हैं ।

    चींटी हमें क्या संदेश देती है ?
    (a) उठने के लिए गिरना आवश्यक है |
    (b) सफलता बार-बार गिरने से मिलती है |
    (c) सफलता हेतु सतत प्रयास आवश्यक है |
    (d) गिरने के लिए उठना आवश्यक है |  
      VIEW SOLUTION


  • Question 20
    ईश्वर का नाम लेकर उस पर विश्वास कर हम मन में शक्ति का एकीकरण कर कार्यरत होते हैं । हमारा विश्वास मज़बूत होता है कि हमारे साथ ईश्वर है । हम इस कार्य में सफल होंगे । आत्मविश्वास को दृढ़ बनाने के लिए ईश्वर का अस्तित्व बनाया गया है । इसके साथ–साथ ‘ईश्वर’ की कल्पना मनुष्य को भयभीत भी करती है । एकांत में भी मनुष्य कोई पाप या गलत काम न कर सके, इसी आधार पर उसे सर्वव्यापी, सर्वद्रष्टा बतलाया है । कण–कण में उसका निवास माना गया है । मनुष्य पर नियंत्रण रखने के लिए किसी न किसी शक्ति की आवश्यकता तो है ही । इसी आधार पर ईश्वर की संकल्पना की गई और इसी प्रकार असफलताओं को रोकने के लिए, अपने दोष पर परदा डालने के लिए ‘भाग्य’ की भी कल्पना की गई । हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं । जैसा कार्य करेंगे, वैसा फल पाएँगे । अतएव भाग्य को आप दोष न दें । चींटी को देखों । वह कितनी बार चढ़ती–गिरती है । आगर वह भाग्यवादी होती तो फिर चढ़ ही न पाती । निरंतर प्रयास करके ही वह सफल होती है । वह भाग्य पर निर्भर नहीं, कर्म करके दिखलाती है । इस कारण बराबर कार्य में लगे रहें । सफलता हाथ आए या फिर असफलता …, सफलता पर प्रसन्न होकर अपनी प्रगति धीमी न करें । असफलता पर घबराकर या निराश होकर मैदान छोड़कर न भागें । अपना कार्य बराबर आगे बढ़ाते रहें । जो उद्यम करते हैं, परिश्रमरत रहते हैं, निरंतर अपने कदम का ध्यान रखते हैं, ये अवश्य ही जो भी इच्छा करते हैं, पा जाया करते हैं ।

    गद्यांश में समर्थन किया गया है –
    (a) धर्मवाद का |
    (b) ईश्वरवाद का |
    (c) भाग्यवाद का |
    (d) कर्मवाद का |
      VIEW SOLUTION


  • Question 21
    'कमरे में आते ही भाई साहब का वह रौद्र रूप देखकर प्राण सूख जाते |' – रेखांकित पदबंध है –
    (a) सर्वनाम पदबंध
    (b) विशेषण पदबंध
    (c) संज्ञा पदबंध
    (d) क्रियाविशेषण पदबंध VIEW SOLUTION


  • Question 22
    'सुलेमान उनकी बातें सुनकर थोड़ी दूर पर रुक गए |'– इस वाक्य में क्रिया पदबंध है –
    (a) उनकी बातें सुनकर
    (b) थोड़ी दूर पर
    (c) रुक गए
    (d) बातें सुनकर थोड़ी दूर VIEW SOLUTION


  • Question 23
    'उसने ततौरा को तरह–तरह से अपमानित किया |' – इस वाक्य में रेखांकित पदबंध का प्रकार है –
    (a) विशेषण पदबंध
    (b) क्रियाविशेषण पदबंध
    (c) सर्वनाम पदबंध
    (d) क्रिया पदबंध VIEW SOLUTION


  • Question 24
    ' फैलते हुए प्रदूषण ने पंछियों को बस्तियों से भगाना शुरू कर दिया |' – रेखांकित पदबंध का भेद है –
    (a) संज्ञा पदबंध
    (b) सर्वनाम पदबंध
    (c) क्रिया पदबंध
    (d) विशेषण पदबंध VIEW SOLUTION


  • Question 25
    वह तलवार को अपनी तरफ़ खींचते-खींचते दर तक पहुँच गया।' -रेखांकित पदबंध का भेद छाँटिए।
    (a) क्रिया पदबंध
    (b) विशेषण पदबंध
    (c) क्रियाविशेषण पदबंध.
    (d) सर्वनाम पदबंध VIEW SOLUTION


  • Question 26
    निम्नलिखित में से उपयुक्त सरल वाक्य छाँटिए-
    (a) जो कुछ पढ़ो, उसका अभिप्राय समझो।
    (b) भाई साहब उपदेश देने की कला में निपुण थे।
    (c) मैं उनकी लताड़ सुनता और आँसू बहाने लगता।
    (d) वे तो वही देखते हैं जो पुस्तक में लिखा है। VIEW SOLUTION


  • Question 27
     खिड़की के बाहर अब दोनों कबूतर रात-भर खामोश और उदास बैठे रहते हैं।
    – रचना की दृष्टि से वाक्य है -
    (a) सरल वाक्य
    (b) संयुक्त वाक्य
    (c) मिश्र वाक्य
    (d) संकेतवाचक वाक्य VIEW SOLUTION


  • Question 28
    'नूह ने उसकी बात सुनी और दुःखी हो मुद्दत तक रोते रहे।'
    – इस वाक्य का सरल वाक्य के रूप में रूपांतरित वाक्य है -
    (a) जब नूह ने उसकी बात सुनी तब वे दुःखी हो गए और मुद्दत तक रोते रहे।
    (b) नूह उसकी बात सुनकर दुःखी हो मुद्दत तक रोते रहे।
    (c) नूह ने दुःखी होकर उसकी बात सुनी और मुद्दत तक रोते रहे।
    (d) चूँकि नूह ने उसकी बात सुनी इसलिए वे दुःखी हो मुद्दत तक रोते रहे। VIEW SOLUTION


  • Question 29
    निम्नलिखित वाक्यों में संयुक्त वाक्य है -
    (a) संसार की रचना कैसे भी हुई हो लेकिन धरती किसी एक की नहीं है।
    (b) सहसा नारियल के झुरमुटों में उसे एक आकृति कुछ साफ हुई।
    (c) बार-बार तताँरा का याचना भरा चेहरा उसकी आँखों में तैर जाता था।
    (d) मेरे जीवन में यह पहली बार है कि मैं इस तरह से विचलित हुआ हूँ। VIEW SOLUTION


  • Question 30
    'सालाना इम्तिहान में मैं पास हो गया और दरजे में प्रथम आया।'
    रूपांतरित करने पर इस वाक्य का मिश्र वाक्य होगा -
    (a) सालाना इम्तिहान मे मैं पास होकर दरजे में प्रथम आया।
    (b) सालाना इम्तिहान हुआ, मैं पास हो गया और दरजे में प्रथम आया ।
    (c) मैं पास हो गया और दरजे में प्रथम आया क्योंकि सालाना इम्तिहान हुआ।
    (d) जब सालाना इम्तिहान हुआ तो मैं उसमें पास हो गया और दरजे में प्रथम आया। VIEW SOLUTION


  • Question 31
    निम्नलिखित छह प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए:
    'नरहरि' शब्द किस समास का उदाहरण है ?
    (a) अव्ययीभाव समास
    (b) द्विगु समास
    (c) तत्पुरुष समास
    (d) कर्मधारय समास VIEW SOLUTION


  • Question 32
    निम्नलिखित छह प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए: 
    तत्पुरुष समास का उदाहरण है-
    (a) थोड़ा-बहुत
    (b) आगे-पीछे
    (c) परिंदे-चरिंदे
    (d) शब्द-रचना VIEW SOLUTION


  • Question 33
    निम्नलिखित छह प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए:
    अव्ययीभाव समास का उदाहरण नहीं है-
    (a) बेवक्त
    (b) बेहतर
    (c) बेकार
    (d) बेराह VIEW SOLUTION


  • Question 34
    निम्नलिखित छह प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए:
    'आँचरहित' शब्द के लिए सही समास विग्रह है-
    (a) आँच से रहित
    (b) आँच और रहित
    (c) आँच में रहित
    (d) रहित आँच के VIEW SOLUTION


  • Question 35
    निम्नलिखित छह प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए:
    उत्तर पद प्रधान होता है
    (a) बहुव्रीहि समास का
    (b) अव्ययीभाव समास का
    (c) द्वंद्व समास का
    (d) तत्पुरुष समास का VIEW SOLUTION


  • Question 36
    निम्नलिखित छह प्रश्नों में से किन्हीं चार प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए:
    'शब्दहीन' शब्द के लिए सही समास विग्रह और भेद का चयन कीजिए- 
    (a) शब्द है जो हीन - कर्मधारय
    (b) हीन है जो शब्द - तत्पुरुष
    (c) शब्द से हीन - कर्मधारय
    (d) शब्द से हीन - तत्पुरुष VIEW SOLUTION


  • Question 37
    'निराशा के बादल छँटना'- मुहावरे का सही अर्थ हैं-
    (a) कुछ अच्छा होना
    (b) परेशान होना
    (c) उदासी दूर होना
    (d) दु:खी हो जाना VIEW SOLUTION


  • Question 38
    'व्यंग्य करना' वाक्यांश के लिए उपयुक्त मुहावरा है-
    (a) सूक्ति बाण चलाना
    (b) आड़े हाथों लेना
    (c) दाँतों पीसना आना
    (d) बहुत फज़ीहत करना VIEW SOLUTION


  • Question 39
    ईश्नर को पाने के लिए _________ ही पड़ता है। -रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए उपयुक्त मुहावरे का चयन कीजिए।
    (a) बेराह चलना
    (b) आपा खोना
    (c) मुहँ की खाना
    (d) लोहा मानना VIEW SOLUTION


  • Question 40
    मुहावरे और अर्थ के उचित मेल वाले विकल्प का चयन कीजिए।
    (a) घुड़कियाँ खाना-साहस प्राप्त होना
    (b) तलवार खींचना-सब कुछ नष्ट करना
    (c) पन्ने रँगना-व्यर्थ में लिखना
    (d) आग-बबूला होना-अपने वश मे रहना VIEW SOLUTION


  • Question 41
    'आटे-दाल का भाव मालूम होना' मुहावरे के अर्थ है-
    (a) किसी को सबक सिखाना
    (b) कठिनाइयों का ज्ञान होना
    (c) चीजों के भाव पता चलना
    (d) खरीदारी के गुरों का ज्ञान होना VIEW SOLUTION


  • Question 42
    निम्नलिखित पठित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए -
    जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
    सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि।।
    पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
    ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ।।

    ‘जब मैं था’ में ‘मैं’ किसका प्रतीक है ?
    (a) कवि
    (b) ईश्वर
    (c) जगत
    (d) अहंकार VIEW SOLUTION


  • Question 43
    निम्नलिखित पठित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए -
    जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
    सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि।।
    पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
    ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ।।

    कवि ने सच्चा ज्ञानी किसे माना है?
    (a) जो बहुत अधिक शिक्षित हो
    (b) जो बिलकुल ही अशिक्षित हो
    (c) जो धार्मिक नियमों को माने
    (d) जो सबके प्रति प्रेम-भाव रखे VIEW SOLUTION


  • Question 44
    निम्नलिखित पठित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए -
    जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
    सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि।।
    पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
    ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ।।

    ईश्वर-ज्ञान कैसे संभव है ?
    (a) भक्ति-भाव पूर्ण भजन से
    (b) तीर्थ यात्रा पर जाने से
    (c) पर्याप्त दान-पुण्य करने से
    (d) अहंकार के नष्ट होने से VIEW SOLUTION


  • Question 45
    निम्नलिखित पठित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए -
    जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
    सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि।।
    पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
    ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ।।

    निम्नलिखित कथनों में से सत्य कथन छाँटिए -
    (a) ईश्वर और अज्ञान का निवास साथ-साथ ही होता है।
    (b) ईश्वर और मैं-भाव साथ-साथ निवास नहीं कर सकते।
    (c) ईश्वर और अहंकार में परस्पर विरोध भाव नहीं है।
    (d) ईश्वर और अहंकार में परस्पर सहयोग का भाव होता है। VIEW SOLUTION


  • Question 46
    वामीरो घर पहुँचकर भीतर ही भीतर कुछ बेचैनी महसूस करने लगी। उसके भीतर तताँरा से मुक्त होने की एक झूठी छटपटाहट थी। एक झल्लाहट में उसने दरवाजा बंद किया और मन को किसी और दिशा में ले जाने का प्रयास किया। बार-बार तताँरा का याचना भरा चेहरा उसकी आँखों में तैर जाता। उसने तताँरा के बारे में कई कहानियाँ सुन रखी थीं। उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था। किंतु वही तताँरा उसके सम्मुख एक अलग रूप में आया। सुंदर, सभ्य, बलिष्ठ किंतु बेहद शांत और भोला। उसका व्यक्तित्व कदाचित वैसा ही था जैसा वह अपने जीवन-साथी के बारे में सोचती रही थी। किंतु एक दूसरे गाँव के युवक के साथ संबंध परंपरा के विरुद्ध था। अतएव उसने उसे भूल जाना ही श्रेयस्कर समझा।

    वामीरो के लिए तताँरा को भूलना क्यों आवश्यक था ?
    (a) तताँरा से मिलकर उसका मन बेचैन हो गया था।
    (b) तताँरा ने उसे गीत गाने को विवश किया था।
    (c) वह उसके जीवन-साथी की कल्पना पर खरा नहीं था।
    (d) दूसरे गाँव के युवक से संबंध रखना परंपरा के विरुद्ध था। VIEW SOLUTION


  • Question 47
    वामीरो घर पहुँचकर भीतर ही भीतर कुछ बेचैनी महसूस करने लगी। उसके भीतर तताँरा से मुक्त होने की एक झूठी छटपटाहट थी। एक झल्लाहट में उसने दरवाजा बंद किया और मन को किसी और दिशा में ले जाने का प्रयास किया। बार-बार तताँरा का याचना भरा चेहरा उसकी आँखों में तैर जाता। उसने तताँरा के बारे में कई कहानियाँ सुन रखी थीं। उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था। किंतु वही तताँरा उसके सम्मुख एक अलग रूप में आया। सुंदर, सभ्य, बलिष्ठ किंतु बेहद शांत और भोला। उसका व्यक्तित्व कदाचित वैसा ही था जैसा वह अपने जीवन-साथी के बारे में सोचती रही थी। किंतु एक दूसरे गाँव के युवक के साथ संबंध परंपरा के विरुद्ध था। अतएव उसने उसे भूल जाना ही श्रेयस्कर समझा।

    वामीरो घर पहुँचकर कैसा महसूस कर रही थी ?
    (a) आह्लादित
    (b) संयत
    (c) संकुचित
    (d) असहज VIEW SOLUTION


  • Question 48
    वामीरो घर पहुँचकर भीतर ही भीतर कुछ बेचैनी महसूस करने लगी। उसके भीतर तताँरा से मुक्त होने की एक झूठी छटपटाहट थी। एक झल्लाहट में उसने दरवाजा बंद किया और मन को किसी और दिशा में ले जाने का प्रयास किया। बार-बार तताँरा का याचना भरा चेहरा उसकी आँखों में तैर जाता। उसने तताँरा के बारे में कई कहानियाँ सुन रखी थीं। उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था। किंतु वही तताँरा उसके सम्मुख एक अलग रूप में आया। सुंदर, सभ्य, बलिष्ठ किंतु बेहद शांत और भोला। उसका व्यक्तित्व कदाचित वैसा ही था जैसा वह अपने जीवन-साथी के बारे में सोचती रही थी। किंतु एक दूसरे गाँव के युवक के साथ संबंध परंपरा के विरुद्ध था। अतएव उसने उसे भूल जाना ही श्रेयस्कर समझा।

    ‘तताँरा से मुक्त होने की झूठी छटपटाहट’ का आशय है -
    (a) सहानुभूति और दिखावे के लिए मुक्त होने का दिखावा करना।
    (b) वह सचमुच ही तताँरा की यादों से मुक्त होना चाहती थी।
    (c) उसे तताँरा के तरीके और बातों पर गुस्सा आ रहा था।
    (d) वह तताँरा के तौर-तरीके से बहुत अधिक प्रभावित थी। VIEW SOLUTION


  • Question 49
    वामीरो घर पहुँचकर भीतर ही भीतर कुछ बेचैनी महसूस करने लगी। उसके भीतर तताँरा से मुक्त होने की एक झूठी छटपटाहट थी। एक झल्लाहट में उसने दरवाजा बंद किया और मन को किसी और दिशा में ले जाने का प्रयास किया। बार-बार तताँरा का याचना भरा चेहरा उसकी आँखों में तैर जाता। उसने तताँरा के बारे में कई कहानियाँ सुन रखी थीं। उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था। किंतु वही तताँरा उसके सम्मुख एक अलग रूप में आया। सुंदर, सभ्य, बलिष्ठ किंतु बेहद शांत और भोला। उसका व्यक्तित्व कदाचित वैसा ही था जैसा वह अपने जीवन-साथी के बारे में सोचती रही थी। किंतु एक दूसरे गाँव के युवक के साथ संबंध परंपरा के विरुद्ध था। अतएव उसने उसे भूल जाना ही श्रेयस्कर समझा।

    वामीरो की कल्पना वाला तताँरा कैसा था?
    (a) अद्भुत – साहसी
    (b) सभ्य – भोला
    (c) भोला – शांत
    (d) सुंदर – सभ्य VIEW SOLUTION


  • Question 50
    वामीरो घर पहुँचकर भीतर ही भीतर कुछ बेचैनी महसूस करने लगी। उसके भीतर तताँरा से मुक्त होने की एक झूठी छटपटाहट थी। एक झल्लाहट में उसने दरवाजा बंद किया और मन को किसी और दिशा में ले जाने का प्रयास किया। बार-बार तताँरा का याचना भरा चेहरा उसकी आँखों में तैर जाता। उसने तताँरा के बारे में कई कहानियाँ सुन रखी थीं। उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था। किंतु वही तताँरा उसके सम्मुख एक अलग रूप में आया। सुंदर, सभ्य, बलिष्ठ किंतु बेहद शांत और भोला। उसका व्यक्तित्व कदाचित वैसा ही था जैसा वह अपने जीवन-साथी के बारे में सोचती रही थी। किंतु एक दूसरे गाँव के युवक के साथ संबंध परंपरा के विरुद्ध था। अतएव उसने उसे भूल जाना ही श्रेयस्कर समझा।
    गाँव की क्या पंरपरा थी?

    (a) अपने गाँव के युवक से संबंध – निषेध की।
    (b) दूसरे गाँव के युवक के संबंध – निषेध की।
    (c) तताँरा जैसे युवक के साथ संबंध – निषेध की।
    (d) याचक जैसे युवक के साथ संबंध – निषेध की। VIEW SOLUTION


  • Question 51
    निम्नलिखित पठित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिएः
    बाइबिल और दूसरे पावन ग्रंथों में नूह नाम के एक पैगंबर का जिक्र मिलता है। उनका असली नाम लशकर था। लेकिन अरब में उन्हें नूह के लकब से याद किया जाता है। वह इसलिए कि वह सारी उम्र रोते रहे। इसका कारण एक ज़ख्मी कुत्ता था। नूह के सामने से एक बार एक घायल कुत्ता गुज़रा। नूह ने उसे दुत्कारते हुए कहा, ‘दूर हो जा गंदे कुत्तें !’ इस्लाम में कुत्तों को गंदा समझा जाता है। कुत्ते ने उनकी दुत्कार सुनकर जवाब दिया, ‘न मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ, न तुम अपनी पसंद से इन्सान हो। बनाने वाला सबका तो वही एक है।’
    मट्टी से मट्टी मिले, खो के सभी निशान।
    किसमें कितना कौन है, कैसे हो पहचान।।
    नूह ने जब उसकी बात सुनी तब दुःखी हो मुद्दत तक रोते रहे। ‘महाभारत’ में युधिष्ठिर का जो अंत तक साथ निभाता नज़र आता है, वह भी प्रतीकात्मक रूप में कुत्ता ही था।

    सभी जीवोंं का जन्म किसकी मर्ज़ी से होता है?
    (a) स्वयं की
    (b) धर्म की
    (c) कर्म की
    (d) ईश्वर की VIEW SOLUTION


  • Question 52
    निम्नलिखित पठित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिएः
    बाइबिल और दूसरे पावन ग्रंथों में नूह नाम के एक पैगंबर का जिक्र मिलता है। उनका असली नाम लशकर था। लेकिन अरब में उन्हें नूह के लकब से याद किया जाता है। वह इसलिए कि वह सारी उम्र रोते रहे। इसका कारण एक ज़ख्मी कुत्ता था। नूह के सामने से एक बार एक घायल कुत्ता गुज़रा। नूह ने उसे दुत्कारते हुए कहा, ‘दूर हो जा गंदे कुत्तें !’ इस्लाम में कुत्तों को गंदा समझा जाता है। कुत्ते ने उनकी दुत्कार सुनकर जवाब दिया, ‘न मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ, न तुम अपनी पसंद से इन्सान हो। बनाने वाला सबका तो वही एक है।’
    मट्टी से मट्टी मिले, खो के सभी निशान।
    किसमें कितना कौन है, कैसे हो पहचान।।
    नूह ने जब उसकी बात सुनी तब दुःखी हो मुद्दत तक रोते रहे। ‘महाभारत’ में युधिष्ठिर का जो अंत तक साथ निभाता नज़र आता है, वह भी प्रतीकात्मक रूप में कुत्ता ही था।

    नूह सारी उम्र क्यों रोते रहे?
    (a) लशकर होने के कारण
    (b) पैगंबर होने के कारण
    (c) प्रायश्चित – भाव के कारण
    (d) अस्वस्थ होने के कारण VIEW SOLUTION


  • Question 53
    निम्नलिखित पठित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिएः
    बाइबिल और दूसरे पावन ग्रंथों में नूह नाम के एक पैगंबर का जिक्र मिलता है। उनका असली नाम लशकर था। लेकिन अरब में उन्हें नूह के लकब से याद किया जाता है। वह इसलिए कि वह सारी उम्र रोते रहे। इसका कारण एक ज़ख्मी कुत्ता था। नूह के सामने से एक बार एक घायल कुत्ता गुज़रा। नूह ने उसे दुत्कारते हुए कहा, ‘दूर हो जा गंदे कुत्तें !’ इस्लाम में कुत्तों को गंदा समझा जाता है। कुत्ते ने उनकी दुत्कार सुनकर जवाब दिया, ‘न मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ, न तुम अपनी पसंद से इन्सान हो। बनाने वाला सबका तो वही एक है।’
    मट्टी से मट्टी मिले, खो के सभी निशान।
    किसमें कितना कौन है, कैसे हो पहचान।।
    नूह ने जब उसकी बात सुनी तब दुःखी हो मुद्दत तक रोते रहे। ‘महाभारत’ में युधिष्ठिर का जो अंत तक साथ निभाता नज़र आता है, वह भी प्रतीकात्मक रूप में कुत्ता ही था।

    गद्यांश का संदेश है –
    (a) हमें सबके प्रति असंवेदनशील होना चाहिए।
    (b) हमें सबके प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
    (c) हमें किसी गलती के लिए ताउम्र रोना चाहिए।
    (d) ताउम्र रोना ही सही मायने में प्रायश्चित है। VIEW SOLUTION


  • Question 54
    निम्नलिखित पठित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिएः
    बाइबिल और दूसरे पावन ग्रंथों में नूह नाम के एक पैगंबर का जिक्र मिलता है। उनका असली नाम लशकर था। लेकिन अरब में उन्हें नूह के लकब से याद किया जाता है। वह इसलिए कि वह सारी उम्र रोते रहे। इसका कारण एक ज़ख्मी कुत्ता था। नूह के सामने से एक बार एक घायल कुत्ता गुज़रा। नूह ने उसे दुत्कारते हुए कहा, ‘दूर हो जा गंदे कुत्तें !’ इस्लाम में कुत्तों को गंदा समझा जाता है। कुत्ते ने उनकी दुत्कार सुनकर जवाब दिया, ‘न मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ, न तुम अपनी पसंद से इन्सान हो। बनाने वाला सबका तो वही एक है।’
    मट्टी से मट्टी मिले, खो के सभी निशान।
    किसमें कितना कौन है, कैसे हो पहचान।।
    नूह ने जब उसकी बात सुनी तब दुःखी हो मुद्दत तक रोते रहे। ‘महाभारत’ में युधिष्ठिर का जो अंत तक साथ निभाता नज़र आता है, वह भी प्रतीकात्मक रूप में कुत्ता ही था।

    ‘मट्टी से मट्टी मिले, खोकर सभी निशान’ का आशय है –
    (a) मृत्यूपरांत सभी जीवों का निजी अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
    (b) मिट्टी, मिट्टी में ही मिलाई जा सकती है।
    (c) सभी जीवों का निर्माण मिट्टी से नहीं है।
    (d) सभी जीवों का अस्तित्व स्वयं उसके वश में है। VIEW SOLUTION


  • Question 55
    निम्नलिखित पठित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिएः
    बाइबिल और दूसरे पावन ग्रंथों में नूह नाम के एक पैगंबर का जिक्र मिलता है। उनका असली नाम लशकर था। लेकिन अरब में उन्हें नूह के लकब से याद किया जाता है। वह इसलिए कि वह सारी उम्र रोते रहे। इसका कारण एक ज़ख्मी कुत्ता था। नूह के सामने से एक बार एक घायल कुत्ता गुज़रा। नूह ने उसे दुत्कारते हुए कहा, ‘दूर हो जा गंदे कुत्तें !’ इस्लाम में कुत्तों को गंदा समझा जाता है। कुत्ते ने उनकी दुत्कार सुनकर जवाब दिया, ‘न मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ, न तुम अपनी पसंद से इन्सान हो। बनाने वाला सबका तो वही एक है।’
    मट्टी से मट्टी मिले, खो के सभी निशान।
    किसमें कितना कौन है, कैसे हो पहचान।।
    नूह ने जब उसकी बात सुनी तब दुःखी हो मुद्दत तक रोते रहे। ‘महाभारत’ में युधिष्ठिर का जो अंत तक साथ निभाता नज़र आता है, वह भी प्रतीकात्मक रूप में कुत्ता ही था।

    नूह ने कुत्ते को क्यों दुत्कारा?
    (a) वह उनसे अधिक ज्ञानी था।
    (b) वह उन्हें काफी खतरनाक लगा।
    (c) उन्हें कुत्ते पसंद नहीं थे।
    (d) वे कुत्ते को गंदा मानते थे। VIEW SOLUTION
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